किस बात पे शर्मिंदा हो,
शुक्र है तुम चुनिंदा हो।
चैन मिलता है मौत के बाद,
दर्द है अगर तो ज़िंदा हो।
गर किसी से चोट लग जाये,
ज़रुरी नही वो दरिंदा हो।
जो जिस्म पुरा ढक नही पाये,
किस काम का वो पोशिंदा हो।
दुसरो के हुनर देख लो,
हर बात पर क्यों निंदा हो।
उड़ने के लिये आसमां चाहिये
हो हवा या परिंदा हो।-
😜
"मैं आईना हूँ तुमको तुम्हारी तरह ही दिखाई दूँगा।"😊
मुझे समझना बहुत आसान है... read more
दिल की हाँडी में सासें रखने दो ज़रा,
हया की प्लेट से उसे ढ़कने दो ज़रा।
अभी तो कहीं बदन में आग लगी है,
कच्चा-पक्का इश्क़ है पकने दो ज़रा।
छुयेंगी बूँदे तो मुसलसल धूआँ उठेगा,
कुछ देर और तवे को तपने दो ज़रा।
वक़्त को गुज़र जाने दो हौले-हौले,
इंतज़ार को ज़बाँ से टपकने दो ज़रा।
स्वाद कैसा है ये "सागर" बतायेगा,
जो बना है थोड़ा सा चखने दो ज़रा।-
जलती है जब शमा परवाने मचलते हैं
मौसम भी चिराग़ को देख बदलते हैं।
ये दिन मोहब्बत के, ये वस्ल की राते,
जिस्म मौम के हर घर में पिघलते हैं।
टूटती हैं कलियाँ काँटों के काघों पर,
हर जख़्म पे दीवाने बर्फ ही मलते हैं।
गुमनाम रहती है हया शहर से "सागर"
हुस्न के खोटे सिक्के बाज़ार मे चलते हैं।-
धरती पे कह दूँ आसमान पे कह दूँ,
गीता पे कह दूँ या कुरान पे कह दूँ।
चलो आज सारे अल्फ़ाज़ सजा के,
लहराते हुये तिरंगे की शान पे कह दूँ।
हँसते हुये लगाई अपनी जान की बाज़ी,
सरहद से ना लौट हर जवान पे कह दूँ।
जिसने बनाया है मिट्टी को भी सोना,
गाँव में बसे उस किसान पे कह दूँ।
इस देश के कितने ही नाम है "सागर",
भारत पे कह दूँ, हिन्दुस्तान पे कह दूँ।-
मोहब्बत का मौसम है सुर्ख गुलाब है,
नज़र की नज़र पे हया का हिजाब है।
तेरा मयखाना तो दगाबाज़ है साक़ी,
पी के भी चढ़ती नहीं कैसी शराब है।
हुस्न की बारिश मुख़्तसर क्यों हुई,
मेरा ये सवाल है तेरा क्या जवाब है।
अजी धड़कन को मेरी कल बढ़ा देना,
आज दिल की हालत थोड़ी ख़राब है।
नींद गवा के हुये हैं बदनाम "सागर",
नफ़े में नुकसान है ये कैसा हिसाब है।-
दिल अभी नादान है, तो इश्क़ करने दो,
हर दर्द से अंजान है, तो इश्क़ करने दो।
आशियाँ बसायेगा कल किसी शहर में,
आज ये मेहमान है, तो इश्क़ करने दो।
हर मोड़ पे मिला है मुझे अजनबी कोई,
एक से पहचान है, तो इश्क़ करने दो।
मेहफ़िल में गया था मैं शर्म औढ़ कर,
रास्ता वीरान है, तो इश्क़ करने दो।
देखना किसी को मुश्किल था कल तलक,
आज वो आसान है, तो इश्क़ करने दो।
तन्हा था, परेशान था, बेनाम था "सागर",
अब इतने कदरदान हैं, तो इश्क़ करने दो।-
अख़ीर क्या है? इक इश्क़ के इम्तेहां में,
कोई ख़ामोश परेशां है कोई कह के पशेमाँ है।-
ग़म ना करो मेरी परछाई के लिये,
मैं लड़ लूँगा अकेला सच्चाई के लिये,
सच कह नहीं पाये तुम मेरे वास्ते,
एक झूठ ही कह दो, अच्छाई के लिये।
कर के तबाह अहल-ए-चमन चले हो,
इक पौधा लगा देना रानाई के लिये।
"सागर" नाम है मेरा, तुम कहीं और,
कोई नाम ढूँढ लेना गहराई के लिये।-