पल्लव सागर   ("Sagar- Ocean Of Love")
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Joined 1 August 2018


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Joined 1 August 2018

कभी है मोहब्बत कभी जुदाई है,
कभी है वफ़ा कभी रुसवाई है।

मेरे दामन में तो बस दाग़ आये हैं
सज़ा कैसी ये मैंने वेवजह पाई है।

वो कहते है मैं कोरा ही अच्छा था,
क्यों मुझपे यूँ कलम आज़माई है।

जल गया तो भी गल गया तो भी,
मेरी याद यहाँ किसको आई है।

जाहिल ज़माने की अदालत में,
अँधों और बहरो की सुनवाई है।

तुमने मुझे संदूक मे रख के "सागर"
ज़रा सी दरियादिली तो दिखाई है।

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बर्ग-ए-गूल पे सूर्खी का इंतज़ार हो तो?
महबूब की पसंद गर गुलज़ार हो तो?

छू लो इस कदर सरफरोश हो जायेें,
ये लज़्ज़त-ए-लम्स बार-बार हो तो।

मकतब-ए-फिक्र की फिक्र क्यों करे,
जब दौनो पे एक सा ख़ूमार हो तो।

धड़कन को ज़रा सा तेज़ हो जाने दो,
मेरे दिल पे तेरे दिल को एतबार हो तो।

तेरे रोकने पे मुझको एतराज़ ना होगा,
मेरे इनकार पे तेरा जो इंनकार हो तो।

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बिन कपडे बिन रोटी रहने में क्या जाता है,
दर्द दो पल का है सहने में क्या जाता है।

अजी हमे कौन सा उनके साथ रहना है,
सब्र से काम लो, कहने में क्या जाता है।

लहू का रंग लाल उनका भी अपना भी,
दो बूँद बह जाये, बहने में क्या जाता है।

दो दीवारें और एक दरवाज़ा है बस उसका
घर बना ही नहीं तो ढ़हने में क्या जाता है।

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साकि से ले के जाम तक,
आगाज़ से अंजाम तक।

तुम ठहर जाओ जो पास मेरे,
मोहब्बत हो जायेगी शाम तक,

रुबरू हो के हो महव-ए-गुफ़्तुगू,
सर-ए-सहर से रात के क़याम तक।

ये सफ़र आ साथ मे पूरा करे हम,
दर्द-ए-ग़म से मसर्रत-ए-पैगाम तक।

कुछ ऐसा लिख तू भी "सागर" हो जाये,
शुरू हो तेरे नाम से जाये मेरे नाम तक।

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देर से सही, होगी रेहमत की बरसात मौला,
तेरे दर से ना गया कोई ख़ाली हाथ मौला।

बदल के शक्ल आता है अारिफ़-ए-रहनुमा,
बड़ी तकदीर से मिलता है तेरा साथ मौला।

किसी एक का नही है ताजदार-ए-मदीना,
सुनता है सभी के सभी मामलात मौला।

ग़म नही बस ख़ुशी बाँटो अमीर-ए-शहर,
सबकी कार-कर्दगी देखता है हर रात मौला।

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कोई शायर है कोई दीवाना है,
कोई नया है कोई पूराना है।

दिलफेंक आशिकों की कमी नही,
बेपनाह इश्क़ गुज़रा ज़माना है।

कोई लिखता है कोई पढ़ता है ग़ज़ल,
किसी का काम अल्फ़ाज़ चुराना है।

किसी एक से करो वफ़ा तो माने,
बेवफाई तो बस एक बहाना है।

जिसने ग़म दिया वो तो अजनबी है,
एक दिन तो उसको भी चले जाना है।

सीखी है "सागर" ने बस कलमकारी,
हर हर्फ है तीर और दिल निशाना है।

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इश्क़ का तेरे चेहरे पे असर आयेगा
मेरी नज़र से देखो तो नज़र आयेगा

तुम कहो तो तुमको आईना दिखा दूँ,
एतबार तेरे दिल को इस कदर आयेगा।

पलकों पे रखा है जो ख़्वाब छोटा सा,
मुसलसल हर बार मुख़्तसर आयेगा।

ढूँढता है हर जगह सुकून के दो पल
वो हो के तेरे पास दर बदर आयेगा।

तू रहे जहाँ वो नशेमन है "सागर" का,
कर के पूरा वहीं तो, हर सफर आयेगा।

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चाँद में तुम्हे देख जिया करते थे कभी।
ख़्वाहिशें तुम्हारी किया करते थे कभी,

अब तो रोज़ाना, उनको देख के हँसते हैं,
साथ जिनके हम भी पिया करते थे कभी।

कि इज़हार-ए-इश्क़ गुलाब से करने वालों,
यूँ गुलाब तो हम भी दिया करते थे कभी।

उनकी सौहबत से मेरी तन्हाई मिट गई,
जो चाक जिगर के सिया करते थे कभी।

उस दर्द के सैलाब से आज़ाद है "सागर",
बे-वजह के ज़ख्म जो लिया करते थे कभी।

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ज़रा रुक के ज़रा ठहर के जाना है,
एक वादा और कर के जाना है।

मुझे आने में शायद वक़्त लग जाये,
तेरे दामन को ख़ूशी से भर के जाना है।

तिरंगे की शान में सरफरोशी की तमन्ना,
ना रो के जाना है और ना डर के जाना है

जमीं का पहरेदार रग रग में हुब्ब-ए-वतन,
मुझे आज़ादी की तरफ़ बिन पर के जाना है।

मैं सरहद का रख़वाला हूँ ये याद रखना,
या तो कर के आना है या मर के जाना है।

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वो दिल में समाए, ठहरे, चले गए,
ये इश्क़ था या कोई वहम था।

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