पल्लव सागर   ("Sagar- Ocean Of Love")
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Joined 1 August 2018


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Joined 1 August 2018

वो दिल में समाए, ठहरे, चले गए,
ये इश्क़ था या कोई वहम था।

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देश में युवा भटक रहा है,
किसान पेड़ पर लटक रहा है,
क्योंकि हम आज़ाद हैं।

कहीं हो रहा नाम करण,
कहीं हो रहा चीर हरण,
क्योंकि हम आज़ाद हैं।

ज़ूबां पे मीठे बोल नहीं है,
गाड़ी में पेट्रोल नहीं है,
क्योंकि हम आज़ाद हैं।

गोली एक है खाने की,
गोली एक चलाने की,
क्योंकि हम आज़ाद हैं।

बेवह ही जो डोल रहा हूँ
मैं ये सब क्यों बोल रहा हूँ,
क्योंकि हम आज़ाद हैं।

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ना कोई नियम ना कोई कायदे है,
आलस की चादर के बड़े फ़ायदे हैं।

ना पैसा, ना मेहनत ना वक़्त लगे,
किसी की ज़रुरत नही, ना पराये ना सगे।

बस एक छोटा सा ही तो काम करना है,
दिल और दिमाग लगा के आराम करना है।

ना गद्दे ना बिस्तर ना तकिये की वारंटी है,
कुछ मिले ना मिले सुकून मिलने की गारंटी है।

उस मेहनती नस्ल का होने दो जो भी होना है,
मुझको माँफ करो आज चादर तान के सोना है।

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वो नाराज़ हैं मेरे आने से,
दो मिसरे सुनाने से।

हम भी उन्हे सता लेते हैं,
बस इसी बहाने से।

वो तो रहते है तन्हा,
दूर इस दिवाने से।

गिले-शिकवे कम नहीं।
अपने भी ज़माने से।

मैं कहता हूँ ज़रा सुनिये,
क्यों डरते हैं बुलाने से।

वो कहते है तुम हो "सागर"
हमे नफ़रत है नहाने से।

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क्यों बढ़ गया है मौत का ये सिससिला,
मैंने सड़क पे ज़िन्दगी ख़ामोश देखी है।

शायद ख़ूदा तूने कोई पैगाम भेजा है,
ख़्वाब में मैंने गिल-ए-फिरदौस देखी है।

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ये किस अंदाज़ में इश्क़ जता रहे हो,
ऐसा लग रहा है जैसे जूँ खा रहे हो।
🤣🤣🤣😜😜😜😂😂😂

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इस महक में खो जाने दो,
कुछ और नज़दीक आने दो।

बढ़ने दो धड़कन का शोर,
ये हया का पर्दा हटाने दो।

तेरी नज़र जो झुक गई है,
मेरी नज़र से मिलाने दो।

वक्त़ ने आँख बंद कर ली,
अब तो ना कोई बहाने दो।

छूये बिना इस जिस्म को,
पहले अरमान जगाने दो।

जल रही है आग "सागर" में।
प्यार से उसे बुझाने दो।

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मत दो दिलासे बस इतना काम करो,
मुझे सोने दो, तुम भी आराम करो।

लेटा हूँ मैं बिस्तर पे कुलर लगा के,
कर दो रहम, जीना ना हराम करो।

रहने दो जी-हुज़ूरी अपनी चापलूसी,
किसी और दर पे जा के सलाम करो।

छोड दो ये हाय और हेलो का तमाशा,
दोनो हाथ जोड़ो, जय श्री राम करो।
!! जय श्री राम!!

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हम सब की प्यारी YQ दीदी को रक्षाबंधन की शुभकामनायें रब ये यही दुआ है की YQ परिवार यूँ ही बढ़ता रहे और आप नये एवं पुराने सभी लेखकों का सदा मार्ग दर्शन करती रहें।
🙏🙏🙏🙏😊😊😊🙏🙏🙏🙏

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उसकी झुकती नज़र को देख के हैरां हूँ
ज़माने पे होते असर को देख के हैरां हूँ

कि मे हेरां हूँ बिन पिये मदहोश होने पे,
मंज़र फिज़ा-ए-दहर को देख के हैरां हूँ।

चलते हुये उसका दफ़अतन मूड जाना,
या ख़ूदा हुस्न कहर को देख के हैरां हूँ।

जगमगा गया आसमान नूर से उसके,
रात में होती सहर को देख के हैरां हूँ।

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