अतीत के संकेरे गलियारों में ना मालूम क्यों अक्सर चहल पहल रहती है बाहर की चकाचौंध और भागमभाग बस एक दायरे तक वक़्त कैसे रुठता है लौटना कभी उल्टे पैर सांसो की डोर से लटककर झांकना तन्हाई के सिवा कुछ भी नही मिलेगा मुस्कुराते चेहरे भी मायूस लगेगें दर्द का वो कोना भले आज खंडहर हो चुका है जख़्म यादों में अब भी हरे हैं पिघलता तो अक्सर है चांद भी रह-रहकर शायद तुम्हें पूर्णमासी के बाद ना दिखता हो गुम नहीं होता है एहसास उसका यूं तसव्वुर में चाहो तो किसी भी सितारे से पूछ लो... रातों का भी अपना मजा है दिन में साथ होकर भी रातों को उलाहने देती है ये ज़िंदगी हमसाया है तो फिर क्यों साथ छोड़ देती है!
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Fetching #तस्सवुर Quotes
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