Kavit Kumar   (❤कवित❤)
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Joined 5 January 2018


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18 HOURS AGO

राधे नाम का अब ये कैसा असर हो गया!
कृष्ण तेरे चरणों में ही मेरा बसर हो गया!

कि मैं भटकता रहा बस बरसों यूँ ही,
वृंदावन ही मेरा आखिरी सफ़र हो गया!

न चाह है किसी की न अब लोभ है कोई,
बस भक्ति में ही अपना गुज़र हो गया!

तेरे चरणों की रज जो लगायी माथे से,
सब दर्द भुलाकर मैं कितना निडर हो गया!

मैं इसकी छाँव में बस उम्र भर बैठा रहूँ,
ये मोर पंख भी अब ऐसा शजर हो गया!

इस संसार में प्रभु बस आस है तुझसे,
सँभाल लेना भयभीत मैं अगर हो गया!

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15 AUG AT 15:41

गर ऐसा है तो खुद को तबाह करके देखते हैं!
ये एक गुनाह हम बे-वजह करके देखते हैं!!
तू कितना अपना है ये भी पता चल जाएगा..
शान-ओ-शौकत को अलविदा करके देखते हैं!!

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13 AUG AT 15:55

तुमको नहीं खुद को ही भूलाने की ख़ातिर।
ज़र्रा-ज़र्रा अपना वजूद मिटाते जा रहे हैं।

कि तुम ढलती जा रही हो उस धूप के जैसे,
हम एक-एक पर्दा यादों का हटाते जा रहे हैं।

भीड़ बहुत है मेरे यहाँ तन्हाई की हमदम,
कैसे बताएँ खुद को कैसे छुपाते जा रहे हैं।

बहुत हैरत से ताकते हैं जानाँ यहाँ लोग मुझे,
रोज किसी को एक किस्सा सुनाते जा रहे हैं।

उस मकाँ को एक अरसे से ना बदला कवित,
ख़त की उम्मीद से रिश्ता निभाते जा रहे हैं।

ना इल्ज़ाम देना मुझे इन अँधेरी गलियों का
तुम्हारी ख़ातिर खुद को ही जलाते जा रहे हैं।

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13 AUG AT 7:59

कृष्णा मुझसे क्यों किसी को छला नहीं जाता।
थक गया हूँ आशा लिए अब चला नहीं जाता।

यूँ तो खाली हाथ आया हूँ लेकिन भाव भरे हैं।
तेरे दर पर मैंने टूटे ख्वाबों के कुछ फूल धरे हैं।

गर कृपा हो जाए तेरी तो ये जीवन निखर जाए।
बस तेरे एक दीदार से मेरा ये दुख बिखर जाए।

कितना टूटा हुआ हूँ अंदर से बस तू जानता है।
बस सुकून तेरे चरणों में है मेरा मन मानता है।

ये कैसी बेचैनी है पल पल बस दुख अपार हैं।
गर तू सहारा बने तो ये आँसू भी स्वीकार हैं।

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12 AUG AT 11:38

जो हर साँस में महक सकें, तुम वो हवा बनो!
जिसे तस्बीह में पढ़ सकूं, बस वो दुआ बनो!!

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12 AUG AT 7:20

तू रूह से जुड़ा है इन लफ़्ज़ों से परे,
तेरे होने की तसदीक़ धड़कन करती है!
आता है तेरा जिक्र जब नज़्म में मेरी
लगता है जैसे कायनात सुकून पढ़ती है!!

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11 AUG AT 15:55

तुमने दुआएं ही इतनी दी कि अब मौत नहीं आती!
बहुत ढूँढा हमने खुद को पर राहत कहीं नहीं आती!

भीग कर तेरी यादों में सब ख़्वाहिशें ठंडी हो गई,
गर आग भी लगती है तो तपिश कहीं नहीं जाती!

जिन रास्तों पर चलना था तुम्हें अब वीरान हैं सब,
कदम तो रोज चलते हैं पर मंजिल कहीं नहीं आती!

कि तेरे बाद का हर रिश्ता इतना चुभता है हमको,
अब कोई हाथ भी थाम ले तो वो खुशी नहीं आती!

तुम्हें ख़्वाबों में देखने की जैसे कसम खायी है
हमसे अश्क़ों की अब ये नदियां बहायी नहीं जाती!

कवित खुद से ही जुदा हो गया तेरे जाने के बाद,
अब ज़िंदगी भी ज़िंदगी नहीं मौत भी नहीं आती!

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7 AUG AT 10:21

कि काँपते लबों पे जैसे कोई दुआ ठहर आयी।
आज बरसों बाद उसकी कुछ यूँ खबर आयी।

एक हम हैं जो उससे बात करने को तरसते हैं,
एक ये शाम है जो उसके पलकों से उतर आयी।

एक खुशबू सी फैली है जो आज इन दरीचों में,
कि सुना है वो मेरे मकां के पास से गुजर आयी।

फिके से लगने लगे हैं अब ये नूर उसके आगे,
हर कदम पर उसके ऐसी चाँदनी बिखर आयी।

जिसे खोकर भी कुछ पाने का महसूस होता है
यूँ बनके वो एक ऐसा खूबसूरत सफ़र आयी।

बस तुम चूमोगे हर लफ़्ज़ को पढ़कर के कवित,
गर कभी इस क़ल़म को वो जो थामे नजर आयी।

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2 AUG AT 13:35

बहुत कीमती हैं ये अश्क़ इन्हें यूँ जाया ना करो!
इतनी किसी से वफ़ा की उम्मीद लगाया ना करो!

कि रोज चले आते हो माँगने दुआ में उसको,
अपने फैसले पे ख़ुदा को इतना सताया ना करो!

भले कोई मुख़ालिफ़ ही सही इन साँसों का तेरी,
इक बशर को तुम ऐसे यूँ रकीब बताया ना करो!

वो तेरा होता तो कर देता अब तलक फैसला तेरा,
रोज एक दिया उसके नाम का जलाया ना करो!

कि बहुत दर्द देते हैं ये टूट के चाहने वाले कवित'
फ़कत एक इंसा को तुम यूँ ख़ुदा बनाया ना करो!

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1 AUG AT 8:50

तेरे नाम की एक पुरानी चिट्ठी है मेरी मेज़ पर,
हर इतवार उसे बिना पढ़े मैं वापस रख देता हूँ…..
जैसे अक्सर तुझसे हार जाता हूँ !! 🙇🏻‍♂️🙇🏻‍♂️✍🏻✍🏻

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