Kavit Kumar   (❤कवित❤)
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Joined 5 January 2018


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18 HOURS AGO

तितलियाँ फूलों से यूँ रूठी होती हैं।
जैसे डालियो में अदा होती है शोखी होतीं है।

मैं उससे कोई बात पूछूँ तो यूँ टाल देती है,
लड़कियाँ भी यार कितनी झूठी होती हैं।

निगाहें मिलें तो पलकों से पर्दा कर लेती हैं,
अदा में भी एक मासूम सी रूठी होती हैं।

चलते-चलते रुककर देखे, फिर मुस्कुराए,
सच मानो, यही अदाएँ सबसे अनूठी होती हैं।

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2 OCT AT 18:40

न जाने किस बात पर आज ये दिल इतना रो गया।
कोई टुकड़ा था दिल का जो शायद कहीं खो गया।

सोचो कितनी खूबसूरती से पिरोया है मैंने तुमको,
जिस जिसने तुमको पढ़ा तुम्हारा कायल हो गया।

बस लिखा तुमको और आज तस्वीर से बात की,
सब भुला के आज बस तुम्हारे ख़्यालों में सो गया।

तुम्हारे खातिर मैंने उल्फ़त की शबनम बिछायी थी,
कैसे तुम्हारा इक फैसला दूरियों के काँटे बो गया।

कि आया इक ऐसा बादल वो हिज्र का मेरी जान,
मेरी नींदें छीन ली और तुम्हारा चेहरा भिगो गया।

अब आँखें बंद करके भी ख़्वाब आते नहीं कवित,
फ़कत इतना अधूरा करके क्यों आज मुझे वो गया।
❤कवित❤

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1 OCT AT 17:27

बीते हर एक लम्हे पर कहानी लिखी जाएगी !
सब दी हुई यादों की निशानी लिखी जाएगी !

ज़िंदगी और मौत का सफ़र तय किया है जिन्होंने,
उन अश्कों की ख़ामोश जुबानी लिखी जाएगी !

जो ख़्वाब अधूरे थे, जो टूटे थे किनारों पे,
उन सब की दिल की भी रवानी लिखी जाएगी !

जो राह में ठहरे थे, जो छूट गए कारवाँ से,
उनकी भी थमी हुई कहानी लिखी जाएगी !

हर जख़्म पे मरहम भी, हर दर्द का मौसम भी,
इस दिल की हर एक निशानी लिखी जाएगी !

और आख़िर में कवित जज़्बात होंगे लिखे,
कि उनकी भी चुप्पी में रवानी लिखी जाएगी !

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30 SEP AT 20:47

हमें देखते ही जो चेहरे पे ये नक़ाब ओढ़ा गया है।
आह कितने सलीके से इस दिल को तोड़ा गया है।

मैंने रखी थी तुम्हारे ख़ातिर कुछ नज़्म सँभाल के,
आज बिना पढ़े ही कुछ पन्नों को क्यों मोड़ा गया है।

जहाँ से वापसी का कोई रास्ता होता नहीं जानाँ,
बस उसी दहलीज़ पे ले जाके हमको छोड़ा गया है।

कितनी बे-रुख़ी से तोड़ी थी तुमने ये निशानी अपनी,
मुश्किल से तुम्हारी तस्वीर को आज जोड़ा गया है।

न तबीब मर्ज पकड़ पाया न कोई रफू काम आई,
इतनी बारीकी से कवित रूह तक तोड़ा गया है।
❤कवित❤

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29 SEP AT 15:10

एक ख़याल उठा कुछ मन में यूँ
क्यों विचलित शब्दों का भाव हुआ।

इतना व्यथित हूँ मैं आज प्रिये
जैसे हादसों का सब हिसाब हुआ।

तुम संगीत स्वर सा लगते थे
क्यों अधूरा मेरा आज साज़ हुआ‌।

बस कुछ पद चिन्ह से उभरे हैं
कि सूना आँगन मय ख़्वाब हुआ।

न हिम्मत मिली न तेरी पहचान प्रिये
बस खुद से ही सवाल जवाब हुआ।

एक बसंत ऋतु की प्रतीक्षा में
जैसे आस लगाता कोई गुलाब हुआ।

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28 SEP AT 9:58

कितनी नज़्म आज भी हैं अधूरी
कितनी बार मैं कुछ सवाल छोड़ देता हूँ।
एक वो है जो मुस्कुराने की ज़िद करती है मुझसे
एक मैं हूँ जो हर दफ़ा ये वादा तोड़ देता हूँ।।

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26 SEP AT 17:55

मैं पुराने जमाने का लड़का वो नई सदी सा ख़्वाब थे!
मैं एक शज़र का पत्ता हूँ वो बेशक एक गुलाब थे!

कुछ इल्म नहीं था हमको राह ए मोहब्बत का जानाँ,
किस बात पे गुस्सा हो जाए कुछ ऐसे उनके मिजाज थे!

मैं उनको छू करके अक्सर पैमाना उठाना भूल गया,
वो नशा ही इतना गहरा था जैसे पुरानी कोई शराब थे!

गर लिखूँ कभी जो उनको तो सब कुछ कमतर ही लगे,
इस फिज़ा ने उनसे रंग लिए वो इतनी हसीं शवाब थे!

मैं लफ़्ज़ों की इस दुनिया में क़ल़म उन्हीं से लाया हूँ,
किसी और को मैं कैसे पढ़ता वो खुद में इक किताब थे!

वो पूछा करते थे मुझसे कुछ कहते नहीं कभी कवित'
कैसे उनको समझाऊँ इस ख़ामोशी में ही सब जवाब थे!

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25 SEP AT 9:06

Attention plz...
सभी girls अपनी privacy को ज्यादा serious लें,
माहौल खराब होता जा रहा है यहाँ।😡😡
बहुत सोच समझकर किसी comment का जवाब दें।
किसी unknown person को especially....
क्योंकि बाद में resolve के लिए option कुछ दिया ही नहीं है आज तक yq.....
They just ignore report 😡
So just read the comment and immediately block it.

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23 SEP AT 12:23

एक आरज़ू है कि अब ये सहरा सजल बन जाए!
उसके देख लेने भर से कोई फूल कमल बन जाए!

एक हम हैं जो यूँ ही अल्फ़ाज़ों में बस उलझते रहे,
एक वो है जिसके छूने से ही रचना ग़ज़ल बन जाए!

गर वो ठहर जाए तो ये मौसम भी मुस्कुराने लगे,
वो चल दे जिस राह वो मंज़िल भी अचल बन जाए!

उसके बस होने भर से एक ऐसी रोशनी सी उतरे,
उसका नाम लेने भर से ये महफ़िल महल बन जाए!

और क्या ही लिखेगा कवित यूँ तारीफ़ में उसकी,
वो रख दे हाथ जिस शय पर वो सफल बन जाए!

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18 SEP AT 23:40

किसी के जाने पर अब हम रब से गिला नहीं करते।
बस हाथ मिलाकर अब किसी से मिला नहीं करते।

कोई भी दस्तक इस दिल पर तुम देना नहीं जानाँ,
कि चाह कर भी अब ये दरवाजे यूँ खुला नहीं करते।

हर इक मोड़ पे खोकर चला आया हूँ मैं कुछ अपने,
इसी डर से हाथ थाम कर अब हम चला नहीं करते।

कि देता चला आता हूँ सबको दुआएँ इस खातिर,
सुना था टूटे शख़्स कभी किसी का भला नहीं करते।

सोचो कैसे तोड़ा गया होगा उस शख्स को 'कवित'
कि इतनी ख़ामोशी है कि अब लब हिला नहीं करते।

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