Kavit Kumar   (❤कवित❤)
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Wlcm to profile.. #कवित💗
Joined 5 January 2018


Wlcm to profile.. #कवित💗
Joined 5 January 2018
7 DEC 2022 AT 15:38

छू लेता हूंँ तुम्हें लफ़्जों से नज़्म सजाते हुए ।
आदतन भूला नहीं हूँ कुछ भी कलम उठाते हुए।

सूझा नहीं जब कुछ भी तुम्हारे ख़्वाब के सिवा,
आना पड़ा महफिल में ये उल्फ़त छुपाते हुए।

क्या पढ़ते नहीं हो खुद को जो मिलता नहीं जवाब,
दिल बगावत नहीं करता ये खामोशी निभाते हुए।

ये सोच कर भी मैं अब तुमको फोन नहीं करता,
अपने पराए से लगते हैं हर दफ़ा याद दिलाते हुए।

कभी बैठो जो खुद के रूबरू तो पूछना ये जरूर,
कितना वक्त लगा था मैं और तुम से हम तक आते हुए। — % &

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10 SEP 2022 AT 13:04

यूं बिछड़े कि वस्ल का फिर कोई सवाल ना रहा,
लफ्ज़ जाते रहे हमें खुद का भी ख्याल ना रहा।

खालिश दबाये दिल में हिज्र काटा है यूं बहुत,
बस रहबर बना खुदा तो फिर मलाल ना रहा।

लाजिम था मेरा तोड़ना हर शय को तेरे बाद,
सुकूं इक पल भी इस कफस में बहाल ना रहा।

गुजरते हुए वक्त से अब ढलने लगे एहसास,
चेहरा अतीत का अब उतना उजाल ना रहा।— % &

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20 OCT 2020 AT 22:54

दर्द-ए-ग़म के समुंदर में और उतरना नहीं चाहते ।
टूटे हुए तो बहुत हैं पर अब बिखरना नहीं चाहते ।

ले जाओ सब यादें गर मिले सके खुशी उसको,
हम अतीत की आब में और निखरना नहीं चाहते ।

रोज आती है तन्हाई यूं जिंदगी का सौदा करने,
कि मौत को लगता है अब संभलना नहीं चाहते ।

कुछ वादे हैं अपनों से निभा पाए तो अच्छा हो,
देकर किसी को जुबां हम मुकरना नहीं चाहते ।

गर दस्तक दें किसी दिल पर नाम आए ना'कवित'
छूकर किसी की रूह हम यूं गुजरना नहीं चाहते ।

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11 MAY 2020 AT 9:24

अब मिलोगे जानेमन मुझको तुम किस जहां !
मैं हूँ ख़्वाब सनम तेरा जो आंखों से है बयां !

नफ़रत ये दुनिया की जीने नहीं देती है,
खामोश करें हमदम किस-किस की हम जुबां!

तुम वफा की राहों में बस साथ यूं ही देना,
गमों के बादल का मिट जाएगा नामो निशां !

तुम पास ना होकर भी हमसाया सा लगते हो,
तेरी खुशबू से हमदम धड़कन है मेरी जवां !

जिसे ढूंढता हूँ अक्सर वो नज्म तुम्हारी है,
ख्यालों में जिसे पढ़कर लिखता हूं मैं यहां !

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19 MAY 2018 AT 11:25

एक एहसास ही तो था जो अब तमन्ना में तब्दील हो गया है
हम लिख रहे हैं रात भर और सारा जहाँ सो गया है,,
नहीं चाहा था हमने ऐसा जैसा आज हो गया है,
उन्हे देखे हुए आज एक जमाना हो गया है,,,

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28 AUG 2021 AT 19:33

रह-रह कर तिरी यादों ने हिज्र में इतना भिगोया था !
इक शब ऐसी भी आयी जब जी भर के रोया था !

हाथ खड़े कर दिए चरागों ने मिरी तन्हाई के आगे,
मुसलसल दर्द में बिखरते रहे पूरा शहर सोया था !

इक वक्त था जब ढलता था वो अक्स इन आंखों में,
उसके हुस्न को मैंने अपनी इस कलम में डुबोया था !

ले गया मिरी यादों से अपना इक इक हर्फ़ निकाल के,
वो शख्स जिसे कभी मैंने अपनी नज़्म में पिरोया था !

बस ताउम्र बैठे रहे इसी इक उम्मीद पर 'कवित'
काश बिछड़ने वाला समझ पाए उसने क्या खोया था !

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28 AUG 2021 AT 1:04

हमारे बीच फासले हैं ये बात तो समझ आती है
मेरी नींद उड़ा के ना जाने कैसे तुझे नींद आती है

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24 JUL 2021 AT 20:33

बात तुम्हारी तस्वीर से करते-करते
अक्सर ख्यालों में खो जाया करता हूँ...
तुम आज भी बसी हो मेरी एक एक सांस में
इसलिए यादों में ही लिपट कर मैं सो जाया करता हूँ!

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11 JUN 2021 AT 20:45

अब कहां उस नजर में मेरे लिए वफ़ा रहती है!
जिंदगी भी ना जाने क्यों इतनी खफ़ा रहती है!

करीब आकर भी लबों ने दगा दिया है बहुत,
ज़ुबा लफ्जों से अक्सर बे-वफ़ा रहती है!

दिया मर्ज है उसी का जो अलहदा था सबसे,
फिर कैसे किसी से उम्मीद-ए-शफ़ा रहती है!

सब पर इनायत करके मुझे ठुकराया है तुमने,
इक मेरे हिस्से में ही शामिल बस जफ़ा रहती है!

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11 JUN 2021 AT 8:58

फिर से उसी भीगते सावन में मुलाकात के लिए
कुछ यूं दिल इंतिज़ार में है पहली बरसात के लिए

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