अपने लहजे में वफ़ा घोलता नहीं है,
दिल के पन्ने भी कभी खोलता नहीं है।
मैं मुतमइन हूँ कि मिलेगा जवाब उसका,
इक वो है कि कभी कुछ बोलता नहीं है।।-
मैं लिख दूँ ये ज़िंदगी तुझको गर तेरी रज़ा हो,
कसूरवार गर मैं हूँ इश्क़ में तो ये मेरी सजा हो।-
ना बहका गर आज भी,तो ये पहली दफ़ा नहीं है,
आज भी उनके तसब्बुर से बड़ा कोई नशा नहीं है।-
जो बाँधे है हमें बरसों,वो एक एहसास है कोई,
वरना यूँ शिद्दत से कहाँ,लफ़्जों को चूमता है कोई..-
कैफ़ तिरी आँखों में गर देखले कोई,
छूट जायेंगे इन हाथों से ये पैमाने सारे...-
बस लेनी है कुछ सवालों पर गवाही उसकी,
जिसकी ख़ातिर मेरा सब सुकून खो गया है..-
अब बज़्म-ए-यार ना सही मिल गया है साक़ी
आज भुला के सब अज़ाब तुम झूम सकते हो...-
किसी के पैरों में मज़हब ने डाल दी बेड़ियां,
और किसी की तक़दीर उसके साथ नहीं होती।-
मजबूरी थी कुछ जो तुमसे दूर रहना पड़ा।
शब ए हिज्र की चोट को रोज सहना पड़ा।।
काश कि तुम भी कभी हमें समझ पाते,
कितनी बेबसी में तुम्हें बेवफ़ा कहना पड़ा।।-
रुह से बाँध रक्खा था उन्होंने,
मैं खुद को बेकरार ना करता तो क्या करता।-