Kavit Kumar   (❤कवित❤)
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Joined 5 January 2018


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Joined 5 January 2018
22 JUN AT 18:53

चित्त के दृष्टि पटल पर फिर एक उदासी छाई है।
नैनों में अश्रु को लेकर फिर याद तुम्हारी आई है।

विचारों के इस भंवर में मन विचलित सा लगता है।
भाव बहुत हैं हृदय में सब अलिखित सा लगता है।

कठिन समय की चौखट पर उर में एक उल्लास है।
जो मुझको बांधे रखता है तुमसे जुड़ा एहसास है।

यूँ तो हमको ये दूरी नित एक कहर सी लगती है।
बस तेरे होने की खुशबू अदृश्य लहर सी लगती है।

शामें उलझा कर कैसे खुद को तुम सुलझाओगे।
ख़ामोशी एक नज़्म सी है बस मुस्कुराते जाओगे।

अधूरा रिश्ता होकर भी खूबसूरत दर्पण दिखा गया।
अब जिंदगी भर के लिए वो प्रेम लिखना सीखा गया।

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13 JUN AT 11:10

बिना अभिलाषा के ये हृदय तुम्हारी और मुड़ा था।
बस मेरा कृष्ण जानता है मैं तुमसे निस्वार्थ जुड़ा था।

सब सम्मुख था तुम्हारे मैंने कुछ भी नहीं छुपाया था।
शब्दों में पिरोकर मैंने प्रेम का सहज अर्थ बताया था।

तुम्हारे सरल स्वभाव में मुझे हमेशा प्रीत नजर आयी।
जब-जब तुम मुस्कुराए मुझे अपनी जीत नजर आयी।

अपनेपन की सौंधी सी खुशबू सांसों में महकती थी।
जैसे चंदन की डाली पर कोयल कोई चहकती थी।

छूकर हृदय को स्नेह से मैंने अपना कदम बढ़ाया था।
खुद को करके तुम्हें समर्पित अपना हाथ बढ़ाया था।

ये प्रेम का निर्मल अर्थ मेरे जीवन का आधार रहेगा।
मुझे हर मोड़ पर प्रिये तुम्हारा ऐसे ही इंतज़ार रहेगा।
❤कवित❤

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9 JUN AT 8:37

बहुत दर्द होता है राधे.....
अब कैसे ये तन्हाई सुकून बनेगी।
क़ल़म भी रख दी है मैंने
अब ये ख़ामोशी ही जुनून बनेगी।।

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7 JUN AT 18:34

जब नज़दीकियों में दर्द के निशाँ हो।
तो बेहतर है कि कुछ फ़ासले रवाँ हो।

मन को भी कुछ उड़ाने अता कीजिए।
कोई बंधन ना हो बस दुआ कीजिए।

ना बंधो ना बांधो बस एक बहाव बनो।
प्रेम में कोई पिंजरा नहीं परवाज़ बनो।

निर्भरता हो ना अधिकार की कसक हो।
बस ये ख़ामोशी, ज़मीं और फ़लक हो।

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6 JUN AT 16:13

किसी और को दिल के कूचों में हमसे लाया ना गया।
इक तुम्हारे ख़्यालों से ही अपना हाथ छुड़ाया ना गया।

बस लेकर इक तस्वीर चलते हैं इन निगाहों में कब से,
जमाल-ए-यार हमसे अब तलक यूँ भुलाया ना गया।

सुना था सुकून मिलता है जला के सब ख़त यार के,
इक इक लफ़्ज़ अज़ीज़ इतना है हाथ लगाया ना गया।

सब कसूर है कुर्बत का जो सुकून-ए-दिल कैद किए है,
किसी अहल-ए-दिल को यूँ इतना कभी सताया ना गया।

इस कदर बेज़ार है किस्मत हमारी और उनकी जानिब से,
तवक्को किसी मोजिज़ा का हमको ख़ुदा दिलाया ना गया।

नाज़ करता था जिस मकां में वो कभी रहने पर 'कवित',
ऐसे उजाड़ा है वो गुलशन कि अब तलक बसाया ना गया।
❤कवित❤

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6 JUN AT 13:47

गर हवाओं ने छेड़ी है ख़ामोशी की साज़।
तो अश्क़ों ने भी समेट रखे हैं कितने राज़।।
जो बुझाना चाहते हैं इन ख़्वाबों की लौ को,
उनके लिए रखे हैं कुछ जलते से अल्फ़ाज़।।

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5 JUN AT 16:12

ग़म-ए-फुर्क़त में क्या अब खुद को ढाला जाए !
कहाँ तक अब इस तन्हा दिल को सँभाला जाए !

ख़्वाबों को उम्मीद की किरण कोई मिलेगी कैसे
जब तक खुद को उजालों में न निकाला जाए !

सुर्ख़ होठों पर बैठी है कोई ख़ामोशी कब से
फ़ज़ा में लफ़्ज़ों का घुला रंग ज़रा उछाला जाए !

कमी अपने ही लहजे में कोई रही होगी शायद
फ़क़त ये इल्ज़ाम किसी और पर न डाला जाए !

तलब फूलों की जब इस दिल को लगी है 'कवित'
काँटों की राह से भला खुद को क्यों टाला जाए !

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4 JUN AT 16:37

हसरतें जलके काग़ज़ पे बिखर गई
वो अश्क़ छुपाए लिखता रहा !
हैरां होता हूँ लोगों को देखकर
दर्द कितनी आसानी से बिकता रहा..!!

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4 JUN AT 9:12

ज़ुल्म होता देखकर अब चुप मत रहना !
मजबूत इरादों से अपनी बात को कहना !

अबला की ये गूँज कब तक सुनते रहेंगे
जरूरी है सबला बनकर जवाब देते रहना!

पैरों में बँधी ये जंजीरे तोड़ कर दिखा दो
नये दौर के बहाव में अब तुम्हें है बहना !

मन में दबी बात को दिल खोलकर बोलो
आघात और अत्याचार अब नहीं सहना !

इतिहास को तुम रूप बदल कर दिखा दो
रीति-रिवाजों का ये कैसा नकाब है पहना !

खुद की शक्ति को इक बार तो पहचानो
आत्मशक्ति से बढ़कर कोई नहीं है गहना !

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2 JUN AT 16:53

जब खुले हों बाल उसके,
हया आँखो से जाती हो,
जब यूँ ही बेपरवाह सी
नज़र वो आती हो,
तब देखना उसको तुम
शायर हो जाओगे।
मयकशी होती है क्या
तुम समझ पाओगे ।।

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