बेतुके तर्क मतलब साधने की फिराक में है
नयी उम्र को तरजीह देने का वक्त आ गया है।
प्रीति-
जितना सवाल जितना जलील करना है
कर ले ए_राहगीर
क्योंकि जिस दिन ये
रूहानी निखार अंतिम पड़ाव से गुजर गई
उस दिन मेरी खामोशी की हुंकार से
तेरा ज़र्रा ज़र्रा अक्श_ए_लफ्ज़ कांप उठेगी-
सिगरेट की हर कश में मेरी यादों को राख़ करते रहें वो
चाय की हर घूंट में उन्हें ताज़ा किया मैंने
इश्क़ मेरा ,मेरी तरज़ीह तवज़्ज़ोह-
जब चुप रह जाओगे
उस दिन बेबसी पर सारा जहान बोल पड़ेगा..
जो चुप चाप तमाशा देखा करते थे
वो बेज़ुबान भी तुम्हारे ख़िलाफ़ बोल पड़ेगा..
मिल जाएगी तरजीह किसी और को
वो बेईमान बिना नाप तोल कर बोल पड़ेगा..
इंतेज़ार शारेह-ए-हाल-ए-दिल रहेगा
मेरे मुआफ़िक़ कब उनमें मेरा प्यार बोल पड़ेगा..-
तरजीह देती रही मैं उसको,हर बात पर,
बदले में वो मुझे,अपनी बीवी बोलता था।-
मन देखता है अथाह को अपनी थाह पाने के लिए
कितने अनुबंध टूट जाते हैं समय के साथ आने के लिए
मसला ये नहीं के प्रति क्षण की सोच बहुत है
दिक्कत ये है, हम तय नहीं कर पाते तरजीह किसे दें-
अपने ही संगमरमर पर फिसलकर, गिरा पड़ा है वो,
जिसने तोहीन की थी गीली मिट्टी की, बरसों पहले।-
खुशियों की कोई राह ही मिलती नहीं ढूँढे
ख़ुश रहना अपने आप में, ज़रिया है ख़ुशी का-
जाने ये रिश्ते कैसे हैं पंख लगा के उड़ जाते हैं
जिन्हें दिल दो वो तरजीह भी नहीं दे पाते हैं-