'तमाशा खूब हो जाता'
कभी जो रूठ जाऊॅं तो
मनाने कोई नहीं आता
महफ़िल छोड़ जाऊॅं तो
बुलाने कोई नहीं आता
मगर जब हार जाऊॅं तो
तमाशा ख़ूब हो जाता!
(कविता अनुशीर्षक में)-
इश्क़ में मशहूर तो एक दिन मुझे भी होना था !
तुम्हें तमाशा करके और मुझे बदनाम होके !!-
फ़िर दोहराएंगे तमाशा, मज़हबी गोटियां फेंकी जाएंगी
मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर सियासी रोटियां सेंकी जाएंगी-
शुमार नहीं था मेरी फ़ितरत में तमाशा करना,
जानते हम भी सब कुछ थे बस ख़ामोश रहे!!-
बनावटी दुनिया में इंसानियत का तमाशा देखा,
आज हाथ उठे भी मदद को तो दिखावे के लिए !-
बाद हमारे मरने के सब चीखेंगे चिल्लायेंगे
बाद हमारे जाने के भी बहुत तमाशा होना है।।-
लगा के "आग" शहर को,"बादशाह" ने कहा,
उठा है आज दिल में "तमाशे" का शौक बहुत,
झुका के सर सभी "शाह-पस्त" बोल उठे,
"हुजूर" का शौक "सलामत" रहे,
"शहर" तो और भी बहुत हैं..!!!!-
कितना भी दर्द छुपा हो सीने में फिर भी मुस्कुराते रहिए,
अगर गिरा एक भी आसूँ आपका, तो तमाशा हो जायेगा।
गले लगाकर आसूँ पोंछने वालें सिर्फ चंद लोग मिलेंगे...
मगर बेवजह, वजह जानने वालों का ताँता लग जाएगा।।-
भरी महफ़िल में इक तमाशा सा बना दिया मुझको .
सबसे बिन बुलाया कोई मेहमान बता दिया मुझको .
हिचकियाँ मेरी पानी पीने से ही रुक जाती है अब ,
लगता है अब तो उसने सच में भुला दिया मुझको .
तुम्हे जी भर देखने का ख्वाब भी पूरा होने न दिया ,
तेरी यादों ने फिर कच्ची नींद में जगा दिया मुझको .
कसम यूँ लेकर उसकी बेवफाई को'राज़'रखने की ,
अपनों की भीड़ में फिर बेवफा बता दिया मुझको .-