Rakesh Raj Bhatia   (राकेश राज (R.Bhatia))
1.4k Followers · 47 Following

Joined 30 June 2017


Joined 30 June 2017
9 FEB AT 20:47

तपती धूप में ठंडक के एहसास जैसा,
मीठा नहीं है कुछ भी सारी कायनात में,
उस पहले प्यार की पहली मिठास जैसा।।

-


22 SEP 2024 AT 13:06

" बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी "

गर्म मौसम में भी हैं शीत हवाओं जैसी।
ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।।

महक उठें तो ये गुलों का काम करती हैं,
चहकती हैं तो चिड़ियों का काम करती हैं,
एक परिवार तक नहीं रहती है ये सीमित,
घरों को जोड़ने में पुलों का काम करतीं हैं।
शहर की भीड़ को बना देती हैं गाँवों जैसी।
ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी,

लाडली होती जाती है जैसे-२ बड़ी होतीं हैं,
कड़े इन्तिहानों में तो ये और कड़ी होती हैं,
बन जाती हैं सहारा अक्सर दो घरों का ये,
सुख दुःख में साथ आपनों के खड़ी होतीं है,
असर करतीं हैं बातें इनकी दवाओं जैसी।
ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।

वो लोग जो यहाँ यूँ दोहरी निगाह रखते हैं,
जैसे दिल में छिपा कर वो गुनाह रखते हैं,
दुआएँ माँगने जाते है दर पर देवी के मगर,
अपने मन में सिर्फ बेटे की चाह रखते हैं,
अपने मन वो जैसे यूँ कोई गुनाह रखते है,
इबादतें उनकी तो है राज़ गुनाहों जैसी।
ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।।

राकेश राज़ भाटिया
थुरल-काँगड़ा हिमाचल प्रदेश
सम्पर्क- 9805145231, 7018848363

-


4 AUG 2024 AT 13:50

"दोस्ती"

हर खुशी दोस्ती है, हर आनंद दोस्ती है।
रिश्तों के इन फूल की, सुगंध दोस्ती है।

यह वक्त बदल देता है हर इक सय को,
पर वक्त की कहाँ यह पाबंद दोस्ती है।

अमीर और गरीब का फर्क जो मिटा दे,
श्रीकृष्ण को सुदामा की पसंद दोस्ती है।

बिना कुण्डली जोड़े जो चलता है ताउम्र,
ऐसा ही एक अनोखा ये सबंध दोस्ती है।

हर एक रिश्ता चुना हमारे लिए ख़ुदा ने,
खुद चुना हमने जिसे वो स्वछंद दोस्ती है।

जिकर हो न हो पर है दोस्तों को अर्पण,
मेरी हर कविता का यूँ यह छंद दोस्ती है।

-


27 AUG 2023 AT 20:28

3. " दिल की खता "

इस दिल की खता का ज़रा सा हर्ज़ाना भर लूँ।
हुआ है जुर्म इश्क़ का तो कुछ जुर्माना भर लूँ।

फ़कीर हो गया हूँ मैं तो इस दौलत की ख़ातिर,
चाहत की दौलत से दिल का खज़ाना भर लूँ।

छलक रही है शबनम उनकी आँखों से आज,
मैं भी जरा इस दिल का खाली पैमाना भर लूँ।

आ रहा है वक्त सख्त यूँ तेरे चले यूँ जाने के बाद,
सोचता हूँ कि तेरी यादों से मैं आशियाना भर लूँ।

बहुत दूर जाना है मुझको अब बिछड़ कर तुझसे,
सफर के लिये दिल में यह गुजरा जमाना भर दूँ।

-राकेश राज़ भाटिया
थुरल-काँगड़ा हिमाचल प्रदेश
सम्पर्क- 9805145231, 7018848363

-


4 AUG 2023 AT 21:27

इस आव ए हयात ए इश्क़ में हम तो ताहिर न होने दिये।
उस एक बुत की ही बुतपरस्ती ने यूँ काफिर न होने दिये।

लबों पर हम हंसी तो ले आये पर आँखे नम रह ही गई,
हम गुम को छुपा लेने में इतने भी तो माहिर न होने दिये।

गवाही देने निकला था मेरे सच्चे इश्क़ की जो मेरे हक़ में,
वो गवाह उसने दिल की अदालत में हाजिर न होने दिये।

उसने अपने हरेक एहसास को दिल में कुछ यूँ दवा लिया,
मेरे इश्क़ की 'आहटों के राज़' कभी जाहिर न होने दिये।

-


30 JUL 2023 AT 22:58

मेहनत की स्याही से लिखा,
हर अक्षर सुनहरा होता है।
अनमोल है पसीने का कतरा,
जो माथे पर ठहरा होता है।
तलवारों से रण जीतने का,
वो दौर कब का बीत चुका है,
अब'शब्दों के प्रहार'का असर,
खंजर से भी गहरा होता है।
बन जाते हैं राज़ वो एहसास,
जिन पर ज्यादा पहरा होता हैं।

-


26 JUL 2023 AT 14:10

खाक में इस देह को कब का मैंने मिला दिया होता।
तेरे गम ने अगर यूँ जीने का न होसला दिया होता।

जमाना यूँ तो न हँसता मेरे इन सपनों की मौत पर,
वक्त रहते अगर इनकी लाशों को दफना दिया होता।

बार-बार न यूँ माँगा करो कसम तुम्हें भूल जाने की,
'भुलाना आसान होता तो' कब का भुला दिया होता।

हर हाल में अगर तुम्हें यूँ पाना ही मेरा मकसद होता,
तुम तक पहुँचने वाला झूठ का पुल बना दिया होता।

अगर रखना न होता तेरी जफ़ा को यूँ राज़ की तरह,
तो मैंने भी इश्क़ को एक नुमाइश बना दिया होता।

-


22 JUL 2023 AT 11:13

यकीं हो चुका है इन्हें अब अपने परों की ताक़त पर।
अब न चल सकेंगे ये परिंदे, यूँ गैरों की नसीहत पर।


बचपन कूद चुका है लगाकर छलांग नीड़ से बाहर,
चढ़ती उम्र असर हो गया है अब इनकी तबीयत पर।


अपाहिज़ ही न बना दें कहीं अब ये गैरजरूरी बंदिशें,
अब पहरे लगाना ठीक नहीं है यूँ मन की हसरत पर।


'उड़ने दो इश्क़ के परिंदों को'अम्बर की ऊँचाइयों तक,
इनका भी तो पूरा हक़ है इन चाहतों की बसीहत पर।


'राज़'इनको भी तो पता चले चाहत की पाकीज़गी का,
यकीं इनको भी जरा होने दो यूँ इश्क़ की ईबादत पर।

-


21 JUL 2023 AT 14:55

ये प्यारा सा दिल मेरा उसके लिये यूँ बेकरार होता गया।
मैंने जितना उसे नाजरंदाज़ किया और प्यार होता गया।

कुछ बेरुखी आज तेरी और कुछ सितम इस जमाने के,
दर्द सहने को दिल ये मेरा रफ़्ता रफ़्ता तैयार होता गया।

कसम तो खाई थी मैंने भी ज़िन्दगी में कभी न पीने की,
वो नजर यूँ ही मिलाता गया, मुझ पर खुमार होता गया।

भूल ही जाऊंगा उसे हर वक़्त मैं तो इस ख़याल में था,
जो थोड़ा प्यार था उसके लिए वो यूँ बेसुमार होता गया।

मेरी गज़लों को पढ़ता रहा और दिल के राज़ जान गया,
जिससे छुपाया राज़ मैंने वो ही मेरा राज़दार होता गया।

-


20 JUL 2023 AT 18:36

महफ़िल में लोग यूँ ही उलझे रहे, तेरे लिबास में।
हमने देख ली पाकीज़गी तेरे आँखों के अंदाज़ में।

-


Fetching Rakesh Raj Bhatia Quotes