लोगों की भीड़ थी पर वहाँ मेला नहीं था, गैरों के बीच में कभी अकेला नहीं था, अब कुछ ऐसे टूट चुका हूँ कि बिखर गया हूँ, कभी किसी ने मेरे जज़्बातों से ऐसे खेला नहीं था।
झूठी ख्वाहिशों की गिरफ्त में उलझे इस तरह की उनके सिवा कभी कुछ दिखा नहीं पल पल मिटते रहे जिसके साथ के खातिर उसे कभी मेरे जज़्बात से फर्क पड़ा नहीं हर पल उसका ही जिक्र रहा लबों पर ख़याल कभी उसका जहन से मिटा नहीं टूटा वहम झूठे अरमानों का इस कदर की चाह कर भी अब ये दिल संभालता नहीं