जीवन इक बोझ सा क्यों है ,क्यों खालीपन रहा सबकुछ करके भी खुश क्यों नहीं रह सकी आखिर श्राप क्यों है ये जीवन ,क्यों जिंदगी का खालीपन कभी नही गया,क्यों अधूरी रही पूरी जिंदगी हमेशा दूसरों की खुशी में खुश रहने की कोशिश भी अधूरी रही ,आखिर क्यों है ये जीवन क्यों जीना दूसरों के लिए ,मेरा कुछ भी कभी मेरा नहीं रहा सब छिनता गया धीरे धीरे क्या सांस लेना जीवन है ,बहुत मन भर गया जीवन से,बहुत अभागन हूं दूर जाना चाहती हूं ,मुक्त होना चाहती हूं इस जीवन से अब कोई इच्छा नही ये सांसें बोझ है हर एक दिन जैसी थोड़ा थोड़ा खत्म हो रही हूं,शायद अभी कुछ कर्मों का लेख बाकी रह गया है इसलिए मुक्ति नहीं अभी ,ऐसे ही थोड़ा थोड़ा मरना है, बेरंग जिंदगी के दिखावटी रंग भी उड़ गए अब सब कुछ रंगहीन है,हर रंग श्राप हो गया, बेरंग जिंदगी को दिखावटी रंगों से ओढ़े रखा,वो सारे रंग छीन लिए,ईश्वर की हर सजा स्वीकार थी,ये सजा कैसे माफ कर दूं,ऐसा क्या गुनाह किया था, बस एक उपकार करके ही माफी है मुझे इस जीवन से मुक्त कर दे
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