Vishaal Shashwat...  
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Joined 30 April 2019


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31 MINUTES AGO

"आँखों में चुभते किसी काँटें सा, कोई अनचाहा सा बोझ हो जाते हैं ।
हाँ साहिब... ये बेरोज़गार लड़के ख़ुद के ही कफ़न-दोज़ हो जाते हैं ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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25 APR AT 21:57

"आलम-ए-तसव्वुर में हम तो उन्हें ही दौलत-ए-हयात समझ बैठे साहिब..
उफ़्फ़.. ख़ुदा ही रहम् करे हम पर.. हम जैसे तो उनके क़रीब हज़ारों हैं ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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24 APR AT 9:17

"हर आदमी...
हर आदमी का यहाँ दुश्मन आज बना फिर रहा ।

꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
ना जाने क्यों...
रोज़ ही वह किसी ना किसी नज़र में गिर रहा ।।

꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
नहीं झाँकता...
गिरेबाँ अपना... शौक़ उसे अख़बार बनने का है,

꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
कि- सुर्ख़ियां बनाता,
दूसरों की... ख़ुद का हाल उसे नहीं दिख रहा ।।"
✍️- Vishaal "SHASHWAT..."

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23 APR AT 17:26

"पावन से भावों की बहती अविरल धारा का, सदा ही बहते रह जाना भी क्या ख़ूब है ।
सम्बन्धों से ही तो बढ़ती सुंदरता जीवन की, इसका बढ़ते रह जाना भी क्या ख़ूब है ।।
आघात मन पर देकर... बाद मरहम लगाने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है ओ साहिब..
कि-साँसों की बगिया में प्रेमपुष्पों का खिलना और खिलते रह जाना भी क्या ख़ूब है ।।"
✍️- Vishaal "SHASHWAT..."

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23 APR AT 10:11

"स्पंदित हो तुम्हारे हॄदय में प्रेम हमारा,
जो तुम इसे अपनी धड़कन बना लो ।
कि- मैं फिरूँ बन बाँवरा प्रेम-गलिन में...
जो ख़ुद को तुम मुझमें रमा लो ।।
꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
मैं बन जाऊँ तुम्हारा श्याम सलोना...
गर तुम राधिका रूप में आ जाओ प्रिये,
कि- हो जाये सुरमयी प्रेम-तान मेरी,
जो मुझे तुम चूड़ियों की छनछन में बसा लो ।।
꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
होंगी प्रेम-ऋचाएँ अवतरित स्वयं ही,
मैं उन्हें मुस्कुरा कर प्रेम-ग्रंथों में गढ़ दूँगा,
कि- महक उठे हर इक शब्द मेरा,
जो तुम हो मलंगित उन्हें प्रेम से गुनगुना लो ।।
꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
कुछ ऐसी हैं प्रेम कामनाएँ मेरी साथिया...
अब क्या ही बखान प्रेम का करे "शाश्वत"
गर हो स्वीकार तुम्हें प्रेम मेरा...
तो अपने रोम-रोम में तुम मुझे समा लो ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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22 APR AT 9:13

"तन के घावों को देखे ना कोई, "देखे मन के घावों को.." ये अरमां तुम क्यों पाले हो ।
अश्क़ों के समन्दर में गोते लगें तो लगने दो, "पुकारो उन्हें.." इतने क्यों मतवाले हो ।।
है माना मैंने... दुनिया है इंसानों की पर इंसान अब इंसान का सगा कहाँ रहा साहिब..
कि- है लाज़िम... ख़ुद ही संभालो ख़ुद को "शाश्वत." जैसे अब तक तुम संभाले हो ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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20 APR AT 11:33

"निगलने को दौड़ पड़ती है इक ख़ामोशी घर की... दूजी इस अन्तस् की...
ऐ ज़िन्दगी.. अब तू ही बतला, सौंप दूँ या ख़ुद को मुक़म्मल ख़त्म करूँ ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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18 APR AT 21:46

"अब
तलक़
बहुत हुई मनमानी दिल तेरी...
चल अब यहीं कहीं ठहर जा ।

सुनता रहूँ
तेरी ही हरदम मैं,
लाज़िम नहीं...
चल अब ख़्वाबों के आसमाँ से उतर जा ।।

बन कर
ग़ुलाम तेरा
मैं भटकता रहा,
पर अब मुझे ये मंज़ूर नहीं...

कि-
राब्ता रखना हो
ग़र मुझे तो औक़ात में आ...
वरना ले धड़कन अपनी.. कहीं गुज़र जा ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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17 APR AT 9:39

"भर जाता है जब मन... तो लोग दूरियों को WIDE कर देते हैं ।
राह ताकतीं थीं अँखियाँ जिसकी, उसे लोग HIDE कर देते हैं ।।
रिश्ते अब जज़्बातों पर मुन्हसिर कहाँ, बस उंगलियों पर थिरकते हैं,
कि- ख़्वाब ता-ज़ीस्त के सजा साहिब, उसे लोग SIDE कर देते हैं ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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17 APR AT 7:38

"रेज़ा-रेज़ा से
अरमाँ हुए सारे..
फ़क़त
दूरियाँ ही मयस्सर
हुईं
दरमियाँ हमारे...
🍂
फिर
फ़र्क़ कहाँ पड़ता,
साहिब...
कि- ग़ुनाह
मेरा था...
या ग़ुनहग़ार तुम थे ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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