धर्मेंद्र साहू "MrDk✍️"   (mr_dk_writes✍️)
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Joined 26 June 2019


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Joined 26 June 2019

शायद कमी रह गई थी कहीं रहमत में
पाज़ेब वो खनकने लगे थे फ़ितरत में

भला राहों में कैसे किसी को यूँ दुहाई देते
फ़र्क़ दिखने लग जाता उनके तबियत में

बताओ दिल की तुम बात क्यूँ नहीं सुनते
धड़कता रहता है जो किसी की चाहत में

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रंजिश तेरे-मेरे दिल का, यूँ गहरा न होता।
हमारे-तुम्हारे गुफ़्तगू में, अगर पहरा न होता।।

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भरी दोपहरी में मिले हो तुम मुझे छाँव की तरह।
सजी-धजी सी तुम शहर, मैं एक गाँव की तरह।।

ठहरा हुआ हूँ मैं समंदर, तुम हो नाव की तरह।
भरे हुए खुश्बू से तुम, मैं पवन बहाव की तरह।।

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दर्द न था, बेवजह ही चीख लिए।
बता न पाए, हम थोड़ा लिख लिए।।

बखूबी हँसना सीख लो तुम 'धर्मेंद्र'
रोना तो तुम पैदा होते ही सीख लिए।।

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भरे पड़े हो तुम अंदर से
पूछते हैं लोग समंदर से

आवाज़ दूँ आएगा जलधर
दोस्ती मेरी उस पुरन्दर से

ठाट-बाट से भरा जीवन
मिस्मार न हो जाये अंदर से

जड़ पकड़ने की तालीम उसे
पुछ लो तुम कहीं 'धर्मेंदर' से

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दर्द किसको पसन्द यहाँ, अकेले में चीख लेता हूँ।
दर्द-ए-दिल महफूज़ कलम से,पन्नों में लिख देता हूँ।।

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बात दिल की हो,
या दिल की ही कोई बात हो।
खुशी तब होती है,
जब दिल से किसी अपने की सौगात हो।।
जरूरी नहीं कि,
कुछ जरूरती चीजें हो इसमें शामिल।
जरूरी तो बस इतना कि,
बैठकर मीठी-सी दो बात हो।।

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मानो अगर तो जिंदगी एक झमेला है।
मानो अगर तो ये कुछ कठपुतलियों का खेला है।।
यहाँ मुस्कुराओगे भी और आंखे भी नम होगी,
क्योंकि मानो तो ये जिंदगी सिर्फ भावनाओं का रेला है।।

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तुम्हीं से शुरू हुए सिलसिले
तुम्हीं पे जाकर ये खतम है

हर मर्ज़ की दवा है मुस्कान
क्या खबर तुम्हें क्या वहम है

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