धर्मेंद्र साहू "MrDk✍️"   (mr_dk_writes✍️)
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Joined 26 June 2019


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Joined 26 June 2019

शायद कमी रह गई थी कहीं रहमत में
पाज़ेब वो खनकने लगे थे फ़ितरत में

भला राहों में कैसे किसी को यूँ दुहाई देते
फ़र्क़ दिखने लग जाता उनके तबियत में

बताओ दिल की तुम बात क्यूँ नहीं सुनते
धड़कता रहता है जो किसी की चाहत में

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रंजिश तेरे-मेरे दिल का, यूँ गहरा न होता।
हमारे-तुम्हारे गुफ़्तगू में, अगर पहरा न होता।।

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तुम्हीं से शुरू हुए सिलसिले
तुम्हीं पे जाकर ये खतम है

हर मर्ज़ की दवा है मुस्कान
क्या खबर तुम्हें क्या वहम है

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सादगी भरी तेरी सूरत, मुझको बेचैन करता है।
जुबाँ से बोल न पाते पर, बात ये नैन करता है।।

तन्हाइयों में ये दिल, छुप छुप के आँहें भरता है।।
मंजिल हो तुम मेरे दिल की, हाँ ये दिल कहता है।।

तेरे दीदार के खातिर आँखे,हर पल कैसे तड़पता है?
तस्वीर तेरी पाकर के, खुद ही खुद से सम्हलता है।।

रब से दुआओं में मांगूँ तुझे, दिल तुझपे ही मरता है।
तेरी इन यादों के दरमियाँ, ये पागल दिल बहलता है।।

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मतलब की जिंदगी जीने की, जो है रश्म हमें नहीं पता।
यहाँ इश्क़ कितना है, किसे किससे हमें नहीं पता।।

पाठशाला की ओर, बढ़ रहे हैं नादान, मस्ती में।
मिलेगी उन्हें ख़िदमत, या नहीं हमें नहीं पता।।

पता नहीं कैसे पहुँच गए है , हम इस मंज़िल तक।
ख़ुशनसीबी है हमारी, हमें तो रास्ता तक नहीं पता।।

मोहब्बत में सारी उम्र बीता दी हमने, दर्द सहते - सहते।
बेवफ़ाई कहते हैं किसे? बताओ हमें ये तक नहीं पता।।

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बेवफ़ाई की ख़्वाब आँखों से,
कभी पानी बनकर के छलक जाता है।
जब भी देखता हूँ,
इश्क़ की महफ़िल में बैठे किसी मासूम को,
सच बताऊँ तो, उसपे मुझे बहुत तरस आता है।।

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करीब-करीब समझ रहा हूँ, लोगों की करीबियां।
बातों से, जज़्बातों से, है मतलब की नजदीकियां।।

मंज़िल से आते हैं कुछ लोग, गलियारों में, राहों में।
अदब से जान लो, तुम जिंदगी की बारीकियाँ।।

मान है, सम्मान भी वही है, खुश्बू-सा बिखर जाओ।
दीदार करो तुम पुष्पों का, मत हिलाओ ये डालियां।।

कोई पास है कोई दूर है, यहाँ कुछ ऐसा ही दस्तूर है।
जिंदगी भी इक गज़ल है, 'धर्मेंद्र' मिलाओ तुम क़ाफिया।।

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साँसों में उतर रही है खुश्बू,
दिल में मेरे ज़ख्म समाया है।

सम्हल जाओ, ऐ मेरे हमनवा!
सुना है मैंने, गुलाबों का मौसम आया है।

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कृपया अनुशीर्षक में पढ़िए

"तुम हो"

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बच्चों वाली ज़िन्दगी,
हर किसी को पसंद है,
पर हर कोई यहाँ,
बच्चा नहीं होता।

सच्चाई भरी ज़िंदगी में,
प्रेम की तिश्नगी में,
तलाश लो तुम ही,
हर कोई यहाँ सच्चा नहीं होता।।

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