इश्क़ लिखकर रात काटी, इश्क़ पढ़ कर रात काटी
इश्क़ जी कर रात काटी, इश्क़ मर कर रात काटी-
तेरी हंसी पे सब कुछ
लुटाने को जी चाहता है
तुझे देख के बस तुझे ही देखूँ
निगाहों में तुझे भरने का जी चाहता है
यूँ तो कुछ नहीं है दिल के खाली मकान में
पर तुझे देखती हूँ तो बसाने को जी चाहता है
" Raag "-
मेरा इश्क़ की गलियों में जाना नहीं हुआ है
ना उन गलियों के पास से होकर गुजरी हूं
तबाह होते देखा है मैंने किसी को
इसलिए कुछ अल्फ़ाज़ लिख लेती हूं-
जी तो चाहता है कि तुझे दिल में छुपा लूँ मैं
मगर न कभी वक़्त ने इजाजत दी ना तुमने-
'जी' भारत में आदर व प्रेम व्यक्त करने हेतु आम प्रचलित संबोधन है। 'आर्य' शब्द बिगड़ कर ( अपभ्रंश होकर ) 'अज्ज' हुआ और 'जी' इसी का संक्षिप्त सहज रूप है।'
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उनके आगोश में सिमटने को फिर जी चाहता है,
सोए हुए अरमान जगाने को फिर जी चाहता है,
वो राज़ी हो के न राज़ी मेरी इस बात से मगर,
आज उनको अपनी धड़कन सुनाने को जी चाहता है।-
मुझसे किनारा कर लिया है तो मेरे गुनाह ना पुछो
कहीं में बेगुनाह निकला तो तुम जी नही पाओगे,।
शादाब कमाल-