और फिर एकदिन तुम्हें भी
मिलेगी आज़ादी
तुम्हारे कई रातों के संघर्ष से
लायब्रेरी की सीट से
परीक्षाओं के लिए दूसरे शहर जाने से
Notes बनाने से
Test-Series लगाने से
और तमाम तानो से
फिर उस दिन मनाना तुम भी
अपनी आजादी का जश्न
बस धैर्य रखना ... 😊-
आधुनिक अछूत थे बेरोज़गार
किसी निमंत्रण सूची में उनका नाम नहीं था
उनकी चुप का कोई अनुवादक नहीं था
वे एक रिक्तता से आते थे
एक रिक्तता में जाने के लिए
नौकरी ही उनका आरम्भ थी
नौकरी ही अंत
वे हँसते थे
पर विश्वसनीय नहीं थी उनकी हँसी
बहुत कठकरेज थे बेरोज़गार
वे अपनी लाश पर भी हंस सकते थे।-
एक दिन रास्ते चलते हुए
किसी सक्स ने कह दिया की
यूं अंधेरों में न निकला
करो अकेले,
अब उन्हें क्या पता
भीड़ मे चलने का हुनर होता तो
अपने ही शहर
में गुमसुदा न होते हम...😊-
माँ❤️❤️🙏
तपती धूप में छांव के जैसी सावन में बरसात के जैसी
शहरों में भी गाँव के जैसी होती है माँ....
अंधियारे में दीपक जैसी रेगिस्तान में पानी जैसी
सूखे में हरियाली जैसी होती है माँ.....
पीड़ा में आराम के जैसी तन्हाई में साथ के जैसी
गर्मी में पुरवाई जैसी होती है माँ....
बातों में खामोशी जैसी आसमान में तारों जैसी
हसरत में अरमानों जैसी होती है माँ....
संकट में मुस्कान के जैसी बेचैनी में चैन के जैसी
जीवन में हर सांस के जैसी
होती है माँ.....!❤️🙏-
कोई अल्फाज नहीं समझता
कोई एहसास नहीं समझता
कोई जज्बात नहीं समझता
कोई हालात नहीं समझता
कोई तन्हाई नही समझता
कोई ज़ख्म नही समझता
कोई दर्द नही समझता
कोई मुस्कुराहट के पीछे
का गम नही समझता
ये अपनी अपनी समझ की
बात है शिवम.......
कोई कोरा कागज भी समझ
लेता है
तो कोई पूरी किताब भी
नहीं समझता..☺️-
एक मासूम सा चेहरा सहम गया।
चलता कारवां यू ठहर ग्या।.........
लोगो के बीच मे वो एकांत था।
हजार बातो मे यू शांत था।........
आगे बढ़ गई मंजिल
ऐसे पीछे वो छुटा था।........
कहते लोग की सुधर गया,
वो बस जाने कैसे वो टूटा था।.......
नफ़रत की आग में यू ऐसे सिकता रहा।
खामोशी रोज़ ख़रीदती रही
वो रोज़ बिकता रहा।☺️-
मन जरा उदास है,
कुछ फुरसत के पल चाहता है।
लोगों के सवालों से दूर,
अपनें संग कुछ वक्त चाहता है।
न कोई कोलाहल हो,न कोई बात हो।
बस अंतर्मन के द्वंद्व युद्ध का हल चाहता है।
पीड़ा स्वयं की है,सब धूमिल सा है,
मन में लगे घाव का मरहम चाहता है।
मन जरा उदास है,कुछ फुरसत के पल चाहता है।
कुछ शाम ख़ुद के संग,
कुछ सुबह बस ख़ुद के नाम हो।
ये मन फिर से उम्मीदों की पतंग चाहता है।
नदी के किनारे अकेले बैठनें का सुकूॅंन
तो अपने घर लौटते पक्षियों का दीदार,
मोबाइल और घर की चारदीवारी से इतर,
स्वच्छंद आकाश की मानसिक सैर चाहता है।
हाॅं ये मन कुछ पल के लिए महफिलों से बैर चाहता है।
ऐसा नहीं है की किसी से नाराजगी है,
पर खुद की समस्याओं का ये मन खुद हल चाहता है।
हाॅं ये मन कुछ फुरसत के पल चाहता है।।-
ख़्वाबों के सिरहाने बैठ जाता हूँ अक्सर ,
ख़ुद ही ख़ुद से रूठ जाता हूँ अक़्सर..!
माँ पूछती है , सब ठीक तो है ना
झूठ कहता हूं , पर टूट जाता हूँ अक़्सर..!
ज़िन्दगी की गाड़ी के लिए, वक़्त से पहले पहुंचता हूँ हमेशा,
जाने कैसे हरबार , नीचे छूट जाता हूँ अक़्सर...!
बस यूं ही कभी कभी ख़्वाबों के सिरहाने बैठता तो हूँ
पर ख़ुद ही ख़ुद से रूठ जाता हूँ अक़्सर..!
😊😊😊-
नौकरी न मिल पाने
का दुःख हमें भी है
पढ़ने के बाद भी अनपढ़ सा
रह जाने का दुःख हमें भी है ।
ये झूठे हितैषी बनकर
पैसों पर ताना मारने वालों से कहो,
अपनी ख्वाहिशों को छिपाते हुए ,
पैसे न कमाने का दुःख हमें भी है ☺️।-
😊😊😊
वे लड़के जो कम उम्र मे अपनी ज़िम्मेदारियो से प्रेम कर लेते है
किसी और चीज़ से चाह कर भी प्रेम नही कर पाते
कभी पूछने पर भी वो नही बता पाते
अपना प्रिय भोजन
अपना प्रिय रंग
अपने जीवन का प्रिय क्षण
एवं अपने बचपन की सबसे प्रिय याद भी
शायद वे भुला चुके होते हैं ख़ुद के अस्तित्व को भी..😊!
😊😊😊-