एक दिन मेरी तरह...वो भी तडपेगी,
रोयेगी तस्वीर मेरी...सीने से लगाकर
एक दिन वो...रौशनी को भी तरसेगी,
जो जश्न मना रही है...मेरा घर जलाकर।
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जिज्ञासा क्या है
एक कौतूहल मात्र है
या सोच है मन की
या प्यास है जीवन की
क्या हो गर ये ना हो
समझ न होगी
प्यार न होगा
जरूरत का
अहसास न होगा
हम न होंगे
तुम न होगे
ये सुंदर
संसार न होगा
जिज्ञासा है आधार सभी का
जिज्ञासा है सार सभी का
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दिये सब जवाब,किया हर खुलासा
तुम्हारी क्यों, मिटती नही जिज्ञासा
हर इल्ज़ाम पर दी, कितनी सफ़ाई
क्यों रह जाता शक फिर, ज़रा सा
मजबूरी,आँखे,लव,सब है लाजवाब
कुएँ,समंद्र, मयख़ाने से लौटा,प्यासा
ताने, उलाहने, बेसव्री छोड़ भी दो
तुम्ही से तो है हर उम्मीद,हर आशा
चुप रहूँ, पूछते हो, क्या सोचते हो
बात कुछ नही, झूठा दिया दिलासा
हक़ है तुम्हे,करता इन्कार नही,'राज',
रखो भरोसा भी, होगी नही निराशा-
उम्मीद
हमारा 'पालना' है,
जिज्ञासा
हमारी जननी ;
हम पुनः शिशु होते हैं
स्वयं के
पुनर्निर्माण में !
— % &-
जिज्ञासा
क्या है जिज्ञासा,
है किसी चीज़ को पाने की आशा...!!
जैसे सुन्दर शब्द को जोड़,
एक खूबसूरत कविता की रचना करती कवि की भाषा...!!
समुंदर में मार्ग बना,
खोज लिया नया देश कुछ ऐसी है जिज्ञासा...!!
खगों की बोली समझ जैसे ढून्ढ रहे हैं विधाता,
ऐसे ग्रह की चाह जहा नहीं है,
अभी तक कोई आता-जाता...!!
मानव की कल्पना को हकीकत में परिवर्तन का प्रयत्न है जिज्ञासा,
मृतक शरीर में प्राण फूँक कर रहे जीवित कुछ ऐसी है ये ज्ञाता...!!
चल रहे हैं शोध बनने को विधाता,
ऐसा है रूप धरती आज कल जिज्ञासा...!!
-©Saurabh Yadav...📝
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Na Po Wri Mo (कविता लेखन)
विषय-- 😇 जिज्ञासा 😇
जिज्ञासा है जो इस दिल में
उसको मेरा है सलाम
पाना है वह ख्वाब मुझे
जो मेरे है अरमान....
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हम जिज्ञासा को खुद पर हावी होने देते है...
ज़ब ज्यादा खोदने लगते है जिज्ञासा की
पथरीली जमीन को हम...
इससे जिज्ञासा शांत होने की बजाय
और ज्यादा कंकरो से भर जाता है
मन की सपाट भूमि|
...
हाँ सच है जिज्ञासा ही हमारी मार्गदर्शक
बनती है,,
अंधकार भरे मन मे रौशनी की....
परन्तु निर्धारित सीमा के भीतर ही |
मानव मन का आधार कौतूहल
...
पर आधार का भार ज्यादा मन
पर ढोना क्यों...
छोड़ देना ही उत्कृष्ट है जिज्ञासु मन
को बहते जल के समान...
क्योंकि बहता जल अपना मार्गदर्शन
स्वयं करता है...
स्वयं का स्वामी होने के लिए...
जिज्ञासा शांति से ज्यादा ध्यान
मन के मार्ग को देना उचित है|-
تجسّس میں جانے کتنی راتیں حرام ہوئی
معیوب ہمی ہوئے جب حقیقت عیاں ہوئی
तजस्सुस में जाने कितनी रातें हराम हुई
मा'यूब हमी हुए जब हकीकत 'अयाँ हुई-