Sanjay Chaudhary   (Sanjay Chaudhary 'Devil')
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Joined 2 February 2018


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29 DEC 2020 AT 23:43

एक बूँद आँसू का
आँखों से निकला
लव तक आते आते
सूख गया बिना कुछ कहे
छोड़ गया गालो पर
कुछ शब्द तुम्हारे लिए
क्या तुम समझ गए?

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23 MAY 2020 AT 22:48

मेरी खुशबू है
अभी तक
सौंधी सी
मेरे कर्मों में
मैने दिया है
अभी तक
निवाला हरेक को
मेरे कर्मों से
क्या हुआ
मांग ली जो थोड़ी सी
इज़्ज़त बिना हुज़्ज़त
अपने कर्मो पर
मेहनताना तो नही मांगा
दौलत तो नही मांगी
मांगा है जरा सा अंश
कोई खैरात तो नही मांगी
फिर बदनाम मैं कैसे हूँ
बुझो तो मैं कौन हूँ

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4 APR 2020 AT 23:43

तू समझ मुझको
कि मैं नासमझ हूँ
तू किसी के होठों का जाम है
और मै आज भी मुन्तज़िर हूँ।

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9 SEP 2019 AT 15:10

रखती कस्तूरी स्वयं अंतर्मन में
ढूँढे फिरे फिर भी उपवन में

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6 SEP 2019 AT 20:04

जीत हार का, ज्ञान नही
मैं मूढ़ निरा, विद्वान नही
लेखा जोखा, कुछ पता नही
बस जिया आज, कुछ रखा नही
कल सुबह हो, या सहर मिले
अमृत हो, या फिर जहर मिले
पर मिले, जो मेरा मुस्तकबिल हो
दिल दुखे न किसी का, जो हासिल हो
ऐसा इसलिए कभी, हो सकता नही
इंसान से इंसान से, जो जलता नही
मै तोड़ भरम यह चाहता हूँ
मैं उन्मुक्त गगन ही चाहता हूँ

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5 SEP 2019 AT 0:31

मैं मुकम्मल हुआ मगर अधूरा रहा
तू अधूरी थी फिर भी मुकम्मल रही

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10 MAY 2019 AT 13:13

विडंबना
एक व्यापारी अपनी क्रय विक्रय का मूल्यांकन खुद करता है
एक उद्योग अपने उत्पाद का मूल्यांकन खुद करता है
एक खुदरा व्यापारी अपने मुनाफे की दर खुद तय करता है
कोई भी व्यवसाय या सर्विस देख लीजिए मुनाफा उत्पादक या सर्विस प्रोवाइडर खुद तय करता है..………....…................................... ............. लेकिन जब किसानों की बात आती है तो गवर्मेंट निर्णय लेती है।
यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसे विडंबना ही बोला जाना उच्चतम उचित होगा।
ना मुनाफे की दर तय है
ना श्रम की कोई दर है
ना सुरक्षा की कोई गारंटी है
ना सरकार से कोई आश्वासन है
है तो खेती के लिये खाद लेने जाए तो मिनिमम मूल्य निर्धारित है उच्चतम व्यापारी जो वसूल ले
बस ऊपर वाले कि दया पर निर्भर रहिये और मरते रहिये.......
आप मे से कुछ लोग ये उपज किसी को क्यो बेंचते है तो उनसे मेरा एक सवाल है कि जब आप बीमार होते है तो प्रायः आपको बीमारी पता होती है लेकिन आप डॉक्टर के पास क्यो जाते है।?
अगर मेरी बात सही और सत्य लगे तो शेयर जरूर करे
धन्यवाद
एक छोटी कोशिश
किसानों के लिए

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8 APR 2019 AT 22:12

आज यहाँ कल वहां पीना खाना होता है
परिंदों का कब आशियाना होता है
मुकम्मल हो जाती है खोजते खोजते ज़िन्दगी
नही मिलता फिर भी जो ठिकाना होता है

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5 FEB 2019 AT 22:09


अश्क़ आँखों के अभी सूखे भी ना थे
उसने मुझे बेदर्दी का इल्जाम दे दिया

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27 JAN 2019 AT 23:21

किसी को आसमां दे दिया
किसी को जमीं दे दी
मेरे हिस्से की थी जो
मेरी आँखों को नमी दे दी

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