जलती है,सूखती है,मरती है,कुचली जाती है
जिजीविषा हरी दूब सी है फिर उग आती है
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जिजीविषा है तन - मन में, हम भी पढ़ना चाहते हैं,
मौत ही आ जाए अब तो, बुभुक्षा से ही मारना चाहते हैं।-
"गुजर गया मक्खन का दौर, मशीनों में दही देखता हूं।
खत्म कहां जिजीविषा मेरी,लकड़ियों पे हाथ सेकता हूं।
मौकापरस्त कहां मै, मेहनत ही बेचता हूं।
कद्र कला की नहीं, तभी तो सरेराह बैठता हूं...।"
#क्या_साहेब...-
दोस्ती का अर्थ सब बदलने लगे हैं।
मतलब के लिए सब दोस्ती करने लगे हैं।
यादों का पुल बनाया था साथ हमने
पढ़ाई खत्म दोस्त अब बिछड़ने लगे हैं।
कैसी अजाब अब हमज़बां कोई नहीं यहां
खुद को अपना समझ, आईने से बतियाने लगे हैं।
जिजीविषा थी साथ रहे...पल बीते शाम हुई
पलक झपकी, अब सब अफसाने लगने लगे हैं।
मिलेगा किसी राह तुझे दोस्त कहने वाला "अंजलि"
लगता है मेरे द्वारा झूठे अनुमान लगाए जाने लगे हैं।
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प्रकृति का अप्रतिम सौन्दर्य
जिजीविषा जगाते हैं मुझमें..
चिड़ियों का नीड़ निर्माण
परिंदे की ऊंची उड़ान,
चींटियों का अनवरत प्रयास
झरनों का कलरव संगीत
लहरों का उठना और गिरना
बारिश की बूंदों का टपकना
निरन्तर मुझे जिन्दगी की
ओर ले जाते हैं....
जानती हुं वक्त कम है और
तमस धीरे धीरे बढ़ रहा है
पर दिनकर अपनी बाहें फैलाए
मुझे जिजीविषा के लिए
आमन्त्रण दे रहा है...!!
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जिन्दगी ने चाहे मुझे, कितना गम दिया है।
पर मुस्करा के मैंने हर गम को सहा है।
बच्चों के लिए मेरी सदा"जिजीविषा"रही है।
क्योंकि उनका मेरे सिवा और,कोई नहीं है।
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-परिणीता -
कभी कभी इच्छाओं का समंदर
पूरे उफान पर होता है..
जिजीविषा के चंद्रमा की सुंदरता से
आकर्षित व सम्मोहित इच्छाओं से
ज्यादा सुंदर तथा अमूल्य प्राप्ति
और कुछ नहीं लगती... डर, निराशा के
वहशी बादल आशाओं की उज्ज्वल
चाँदनी में दूर दूर तक नहीं दिखते..
ऐसी विरल मनस्थिति में लिए गए
निश्चय में सर्वोपरि हो तुम,, प्रिय!!
जागृत, सबल, सुदृढ़, अचल,, सदा सुन्दर
"तुम" ... और मैं...
.........
और मैं..
तुम्हारी..
"चिर - परिणीता"...
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कहते हैं,खुशियाँ बाँटने बढ़ती हैं।
दुख अपना साझा करने से कम होता है। दर्द शब्दों में लिख लेती हूँ। खुशी हो या गम आप सभी से साझा कर लेती हूँ।yqdidi की सराहना पोस्ट पर और आप सभी के लाइक और कमेन्ट से नई उर्जा मिलती है। ना जाने क्यों मेरी आँखें भर आयीं ? हर हाल में मेरी "जिजीविषा" रही। "जिजीविषा" पर yqdidi की सराहना मिली-
मौन सी है हर दिशा
थम गई जिजीविषा
खत्म होगी क्या कभी
ये अंतहीन प्रतीक्षा??-
अंबार लगी अपेक्षाओं की भीड़ में ,
माना थोड़ी बेमानी हैं ।
हैरान मुझे कर जाती हैं,
जिसने मर कर जीने की ठानी हैं।
प्रीति
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