आंँखो में आंँसू ना होते अगर...
तो सैकड़ों टुकड़े होते दिलो-जिगर...-
इश्क़ तेरे शहर में एक और कत्ल हो गया
नजरों से बरसाएं तीर जिगर के पार हो गया-
खामोशी पढ़ने को हुनर चाहिये
दर्द पढ़ने को जिगर चाहिये
बैठो कभी आँखों में आँखें डाल के
मेरी कहानी तुम्हें अगर चाहिये-
ज़िन्दगी चलती रही, रोज़ नए बहाने लिए,
हर शाम लौटा परिंदा, मुँह में कुछ दाने लिए
यूँ तराशा मुझे, के कर दिया मुझ को पत्थर,
लोग मिलते हैं, फ़कत फूल चढ़ाने के लिए
जो खुदा है, वो बैठा है किसी फ़क़ीर के घर,
मंदिर-ओ-मज़जिद तो बने बैर बढ़ाने के लिए
यूँ बारहा अब जो मैं तुझ को याद करता हूँ,
भूल चुका हूँ तुझे, खुद को यह समझाने के लिए
ना खुद के लिए और न ज़माने के लिए,
अश्क़ बहते हैं जिगर की आग बुझाने के लिए
काश मैं रोक लेता तुझे, तो यूँ न तड़पता रहता,
तू भी कब निकला था मुझे छोड़ के जाने के लिए..-
हर्फ़, जिगर, हयात, जिस्म ये सब जिससे आबाद है।
वो रूह के दरमियां मिरे वालिद की लौह बुनियाद है।।-
एकाध इंच की कमी भी चलती हैं,
इन्किलाब के लिए जिगर मांगता हैं!-
वक़्त कितना भी दूर क्यों ना करदे
पर वो प्यारे से रिश्ते हमेशा दिल❤️ के बेहद
पास होते हैं...!-
तेरे सिगरेट पीने से बस एक परेशानी है मुझे,
लब तेरे छूती है तो मेरा जिगर जलता है।-
इफ़रात है ग़मों की तो ख़ुशियाँ भी कम नहीं
इस वास्ते भिगोते कभी आँख हम नहीं
मैं पस्त हो चुका हूँ मगर गाँठ बाँध ले
मुझको हरा सके कभी तुझमें वो दम नहीं
जो रूठ जाए दोस्तो छोटी सी बात पर
महबूब है किसी का वो मेरा सनम नहीं
अफ़वाह उड़ रही थी कि वो अश्क़-बार है
जब सामना हुआ है तो आँखें भी नम नहीं
वो हो के मिह्रबान कभी जान बख़्श दे
हम बे-गुनाह लोगों के ऐसे करम नहीं
तेरा करम हो हम पे गुज़ारिश ही क्यों करें
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं
'सालिक' ज़ियादा की तो ज़रूरत नहीं मुझे
जितना भी दे दिया है ख़ुदा ने वो कम नहीं-
इक़ तुम हो के शिगाफ़ ए जिगर सीना नहीं आया
और इक़ हम हैं के तुम्हारे बग़ैर जीना नहीं आया-