होती है दोस्तों से मुलाक़ात क्या करें
होती नहीं है उनसे मगर बात क्या करें (१)
बदले नहीं हैं मुल्क में हालात क्या करें
हम जीत कर भी खा गए हैं मात क्या करें (२)
हमसे कहा अदू से रहें दूर और ख़ुद
करते रहे उन्हीं से मुलाक़ात क्या करें (३)
मिलते नहीं जवाब हमारे ये जब तलक
हम पूछते रहेंगे सवालात क्या करें (४)
मज़हब हमारा पूछते हैं दोस्तों से वो
लोगों से पूछते हैं कभी ज़ात क्या करें (५)
अब तक किसी ने दी न गुलाबों की पंखुड़ी
मिलती है रोज़ काँटों की सौग़ात क्या करें (६)
जितनी तवील है ये शब-ए-ग़म न हमसे पूछ
उतनी ही छोटी खुशियों की है रात क्या करें (७)-
जब भी हम आपके झाँसे में नहीं आते हैं
नोट क्या सिक्के भी खाते में नहीं आते हैं
अपने घर में ही वो सुलझाते हैं घर के झगड़े
लोग अब भूले से थाने में नहीं आते हैं
फिट कभी हो ही नहीं पाते कहीं वो आखिर
लोग जो आपके साँचे में नहीं आते हैं
हम भी रो लेते हैं जी-भर के अगर रोना हो
अब किसी के भी दिलासे में नहीं आते हैं
लोग आसानी से ढल जाते हैं साँचे में किसी
एक हम हैं कि तराशे में नहीं आते हैं
उनसे हम और तलब क्या करें उनके हम पर
इतने अहसाँ हैं कि कासे में नहीं आते है
जीत के वास्ते थे आठ ज़रूरी लेकिन
इतने नम्बर किसी पासे में नहीं आते हैं
दफ़्न हो जाते हैं वो साथ उसी के 'सालिक'
राज़ ऐसे जो ख़ुलासे में नहीं आते हैं
-
हम भी रो लेते हैं जी-भर के अगर रोना हो
अब किसी के भी दिलासे में नहीं आते हैं
ہم بھی رو لیتے ہیں جی بھر کے اگر رونا ہو
اب کسی کے بھی دلاسے میں نہیں آتے ہیں
-
दरिया अगर हो दूर तो बढ़ती है प्यास और
सूखा पड़ा है गाँव के अब आस-पास और (१)
अहल-ए-जहाँ के तानों से रहता हूँ मैं दुखी
बातों ने उनकी कर दिया मुझको उदास और (२)
कह देता हूँ ग़ज़ल मैं यहीं दोस्तों के बीच
जाकर कहाँ निकालूँ मैं दिल की भड़ास और (३)
फ़रियाद ले के जब मैं गया तब पता चला
दरबार-ए-आम और है दरबार-ए-ख़ास और (४)
देखा है हमने इसको बरहना हज़ार बार
बदलेगा हाए कितने ज़माना लिबास और (५)
जो छक के पी चुके हैं यहाँ मयक़दे मेंं दोस्त
साक़ी उन्हीं को दे रहा इक-दो गिलास और (६)
घर-घर की है कहानी ज़रा ग़ौर कीजिए
बेटी की सास और बहू की है सास और (७)-
अहल-ए-जहाँ के तानों से रहता हूँ मैं दुखी
बातों ने उनकी कर दिया मुझको उदास और
اہل جہاں کے تانوں سے رہتا ہوں، میں دکھی
باتوں نے انکی کر دیا مجھ کو اداس اور
-
मेरा रस्ता बड़े आराम से कट जाता है
जो भी आता है मेरी राह से हट जाता है (१)
कोई बादल की तरह राह में फट जाता है
जो भी चलता है मेरे साथ निपट जाता है(२)
होता रहता है सफ़र यूँ ही मुकम्मल मेरा
साथ चलता है वो रस्ते से पलट जाता है (३)
जिसने दुत्कार दिया था मुझे कुत्ते की तरह
एक दिन वो मेरी बाहों में सिमट जाता है (४)
सिर्फ़ कहने को बराबर तो बटा है सब-कुछ
मेरा हिस्सा ही कई टुकड़ों में बट जाता है (५)
इस तरह उम्र कटी साथ यहाँ दोनों की
दूर हो जा उसे कह दूँ तो लिपट जाता है (६)
ख़्वाब जब देखा है फूलों से भरी राहों का
तब मेरा रस्ता ही काँटों से क्यों पट जाता है (७)-
हम हैं मच्छरदानी में
मच्छर हैं हैरानी में (१)
आते हैं किरदार नये
हर दिन मेरी कहानी में (२)
पीने वाले पीते हैं
ज़ह्र घुला है पानी में (३)
काश बुढ़ापे में होता
जो था जोश जवानी में (४)
उसने मुझको छोड़ दिया
इक दिन खींचा-तानी में (५)
ऊला मिसरा अच्छा था
मगर नहीं दम सानी में (६)
आख़िर भाग गया वो आज
जो था कल निगरानी में (७)
कहते हैं भगवान उसे
माहिर हैं शैतानी में (८)
रावण ही रावण हर-सू
अपनी राम-कहानी में (९)
देख नहीं पाया 'सालिक'
आग छुपी थी पानी में (१०)-
यूँ ही कब तक डरा करे कोई
मौत का सामना करे कोई (१)
मुफ़्त में गर किसी को देना हो
मशविर: दे दिया करे कोई (२)
मयकदा पास तो नहीं लेकिन
दूर कब तक रहा करे कोई (३)
क्या ज़मीं दोज़ करके मानेगा
और कितना दबा करे कोई (४)
वक़्त के साथ भर ही जाएँगे
ज़ख्म जितने दिया करे कोई (५)
दोस्त आबाद हो गए सारे
हम है बर्बाद क्या करे कोई (६)
बद्दुआएँ मिली हैं लोगों से
मेरे हक़ में दुआ करे कोई (७)
सारे "सालिक" से कहते रहते हैं
हाए उसकी सुना करे कोई (८)-
ज़ीस्त तुझको जिया नहीं जाता
क्या करूँ मैं मरा नहीं जाता (१)
सबसे पहले तुम्हीं तो जाते थे
अब कोई दूसरा नहीं जाता (२)
सब तो आता है जेल के अंदर
क्या बताऊँ मैं क्या नहीं जाता (३)
क्यों न अब जान ही तू ले मेरी
ज़ुल्म तेरा सहा नहीं जाता (४)
पढ़ लिया कर कभी मेरी आँखें
मुँह से जब कुछ कहा नहीं जाता (५)
जब कहा उसने तुम निकल जाओ
कह दिया मैंने जा नहीं जाता (६)
छोड़ दें कह दो बीच रस्ते में
साथ उनके चला नहीं जाता (७)
सारे ख़ामोश हैं मगर 'सालिक'
हमसे क्यों चुप रहा नहीं जाता (८)-
ज़ीस्त मेरी ख़राब की तुमने
पानी माँगा शराब दी तुमने (१)
मैं ने काँटे तलब किए तुमसे
दे दी टहनी गुलाब की तुमने (२)
मेरी ख़्वाहिश थी रूबरू देखूँ
डाला रूख़ पर नक़ाब ही तुमने (३)
इक तो लूटी हैं रात की नींदें
फिर चुराये हैं ख़्वाब भी तुमने (४)
सबसे ख़ुद ही सवाल तुमने किया
दे दिया फिर जवाब भी तुमने (५)
चीखूँ मैं ज़ोर से या चिल्लाऊँ
रग जो दुखती है दाब दी तुमने (६)-