Salik Ganvir   (© सालिक गणवीर)
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Joined 9 November 2018


Joined 9 November 2018
15 HOURS AGO

मंदिर में भगवान बहुत हैं
सीढ़ी पर शैतान बहुत हैं (१)

आने के इम्कान बहुत हैं
घर पर तो मेहमान बहुत हैं (२)

कोई नहीं सुनता है मेरी
वैसे तो याँ कान बहुत हैं (३)

कम हैं आदमज़ाद जहाँ में
कहने को इंसान बहुत हैं (४)

पुन्य उन्हें क्यों मिलता है कम
देते तो वो दान बहुत हैं (५)

जीने के दो-चार ही ज़रीए
मरने के सामान बहुत हैं (६)

ख़ुश होना था देख के मुझको
लेकिन वो हैरान बहुत हैं (७)

भीड़ भरी शहरों की सड़कें
पर गलियाँ सुनसान बहुत हैं (८)

एक फिसड्डी से वो हारे
दिखने में बलवान बहुत हैं (९)

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28 JUN AT 12:13

है कहाँ जाना ये बता दे मुझे
या कोई रास्ता दिखा दे मुझे (१)

साथ मेरे अगर नहीं चलना
अपने रस्ते से तू हटा दे मुझे (२)

मैं लुटाता हूँ मुफ़्त में ख़ुशियाँ
ग़म अगर बेचना हो ला दे मुझे (३)

कैसे जीते हैं लोग दुनिया में
कोई तरक़ीब तू सिखा दे मुझे (४)

मैं यही चाहता हूँ जीवन में
तू हँसा कर भले रुला दे मुझे (५)

मैं नहीं मानता ग़लत हूँ मैं
हूँ ग़ुनहगार तो सज़ा दे मुझे (६)

कोर्ट जाना न कचहरी मुझको
तू यहीं फ़ैसला सुना दे मुझे (७)

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20 JUN AT 8:04

झुकाएगा वो अपना सर मगर आहिस्ता आहिस्ता
दुआओं का भी होता है असरआहिस्ता आहिस्ता

मियाँ तुम रात में सोते हो जल्दी उठ भी जाते हो
मगर रातों की होती है सहर आहिस्ता आहिस्ता

बहुत जल्दी में रहता हूँ मैं फिर भी प्लेन पकड़ा था
तू ऐसा कर कटे मेरा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता

यहाँ कोई न रोकेगा न टोकेगा तुझे प्यारे
तुझे अब जो भी करना है तू कर आहिस्ता आहिस्ता

अभी तो मैंने सीखा है कि उड़ता है कोई कैसे
उसे कहना वो काटे मेरे पर आहिस्ता आहिस्ता

ज़रूरी है उसे गर देखना तो देख लो झट से
दिल -ए नादाँ न देखा कर उधर आहिस्ता आहिस्ता

तुम्हारी सड़कें पक्की थीं तो पहुँचे हो बहुत पहले
मुझे भी मिल ही जाएगी डगर आहिस्ता आहिस्ता

बनाना इक मकाँ दुनिया में तो आसान है लेकिन
किसी का भी हो बनता है वो घर आहिस्ता आहिस्ता

उधर वो जल्दी जाता है ख़ुदाया इल्म है मुझको
न जाने क्यों चला आया इधर आहिस्ता आहिस्ता

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13 JUN AT 13:14

ज़िन्दगी तेरा क्या किया जाए
जी लिया जाए या मरा जाए (१)

उसको हर हाल में उठाना है
कितना गिरना है वो बता जाए (२)

ज़िन्दगी-भर मैं साथ हूँ तेरे
तू बता दे कहाँ चला जाए (३)

दुश्मनों के भी घाव भर देंगे
ज़ख्म अपना तो सी लिया जाए (४)

ग़म तो बाँटे ख़ुशी नहीं बाँटे
ऐसे लोगों से अब बचा जाए (५)

पास उसके जिसे भी जाना हो
रास्ते से मुझे हटा जाए (६)

पास रहके भी दूर रहते हैं
ऐसे लोगों से क्यों मिला जाए (७)

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10 JUN AT 7:42

मिट्टी है अब जिस्म तेरा कल सोना था
आज बहुत सस्ता है कल तक मँहगा था (१)

आज अँधेरा है यारो लेकिन कल तक
"रौशन मेरे घर का कोना कोना था" (२)

सूखा-सूखा आज सभी को दिखता है
सुनते हैं कि इक रोज़ यहाँ भी दरिया था (३)

काश हमारी दाद कभी तुम सुन पाते
यार सिकंदर शे'र तुम्हारा बढ़िया था (४)

सो न सका मैं आज की शब भी जागा हूँ
सर के नीचे कल भी मेरे सरिया था (५)

बैठ गया है वो क्यों थक कर रस्ते मे
उठ कर उसको आगे बढ़ते जाना था (६)

दौड़ती रहती है आगे ये ज़ीस्त मगर
मौत करे पीछा तो अच्छा लगता था (७)

पुन्य किया है जब से सूखा रहता हूँ
पाप करो तो इक दिन धोना पड़ता था (८)

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3 JUN AT 7:36

हर पल बस हथियार की बातें करते रहिए
बेबस और लाचार की बातें करते रहिए (१)

नफ़रत अपने दिल में भर कर रख सकते हैं
मुँह से लेकिन प्यार की बातें करते रहिए (२)

सडकों पर पैदल चलना भी आसाँ होगा
इन्नोवा या थार की बातें करते रहिए (३)

टूटी-फूटी इक साइकिल है घर में लेकिन
बाहर मोटर कार की बातें करते रहिए (४)

मुझ पे सारे शब्दों के मत बाण चलाएँ
हाँ लेकिन बौछार की बातें करते रहिए (५)

सौ-सौ डॉक्टर जब मुठ्ठी में रहते हैं तो
अब उनसे बीमार की बातें करते रहिए (६)

जाहिर मत करिये मन में जो कड़वाहट है
लोगों से गुड़मार की बातें करते रहिये (७)

होती नहीं हैं प्यार -महब्बत की बातें अब
उनसे तो तकरार की बातें करते रहिये (८)

अब तो 'सालिक' हफ़्ते-भर घर में रहता है
हर दिन है इतवार की बातें करते रहिए (९)

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27 MAY AT 5:09

रोटी कुत्ते को डालता है कोई
मुझको अब ऐसे पालता है कोई (१)

कल निकाला है इस तरह मुझको
जैसे घर से हकालता है कोई (२)

उसको डर है वो गिरने वाला है
वर्ना किसको सँभालता है कोई (३)

ये समझ लो वो जाएगा ऊपर
गर किसी को उछालता है कोई (४)

उसने ऐसे लगाया पैरों में
ख़ूँ नहीं मेरा आलता है कोई (५)

अब पशेमाँ भी मैं नहीं होता
ख़ाली जेबें खँगालता है कोई (६)

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17 MAY AT 6:25

अहल-ए-दुनिया को दिखाउँगा तमाशा कैसे
मैं नहीं जानता सर्कस में हूँ आया कैसे (१)

सुन मेरे दोस्त मुझे इतना बता दे तू आज
धीमी आवाज़ भी सुन लेता है बहरा कैसे (२)

उसने हौले से खरोचा था बदन मेरा कल
एक ही दिन में हुआ घाव ये गहरा कैसे (३)

हक़-बयानों प मेरे तुझको यक़ीं आया नहीं
अब तिरे झूठ पे कर लूँ मैं भरोसा कैसे (४)

उम्र-भर जिसने उजालों की तरफ़दारी की
उसकी दुनिया में किया तुमने अँधेरा कैसे (५)

ज़िन्दगी-भर तेरा मश्कूर रहूँगा लेकिन
अंधी आँखों को मिरी ख़्वाब दिखाया कैसे (६)

कल तलक तो ये लबालब ही भरा था 'सालिक'
प्यास लगते ही मुझे सूखा है दरिया कैसे (७)

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13 MAY AT 19:48

भूले से मेरे दोस्त कभी ख़त भी लिखा कर
गर आ नहीं सकता तो मुझे फ़ोन किया कर (१)

ख़ामोशी है महफिल में यहाँ भीड़ बहुत है
हो जाए अगर बोर जम्हाई तू लिया कर (२)

उसने मेरी लाइफ में अँधेरा ही किया है
वैसे उसे कहते हैं सभी लोग दिवाकर(३)

आनंद मैं लेता हूँ यही सोच मुझे भी
आता है मजा उसको हर इक बार सता कर (४)

मम्नून हूँ मैं उसका भी ता-उम्र रहूँगा
अहसान किया जिसने मेरी ज़ीस्त में आ कर (५)

गर सच की हिफाज़त के लिये हो ये ज़रूरी
बेख़ौफ़ यहाँ झूठ भी तू बोल दिया कर (६)

उस दिन तू अगर आए अचंभा नहीं होगा
हैरान मुझे कर दे कभी छम से तू आ कर (७)

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2 MAY AT 22:31

अब तलक मोम बन चुका होगा
फिर भी वो धूप में खड़ा होगा (१)

ख़्वाहिशें दफ़्न हो गई होंगीं
आदमी ख़ाक हो गया होगा (२)

मेरी ख़ुशियाँ ज़रूर छोटी हैं
पर मेरा ग़म बहुत बड़ा होगा (३)

फिर से करवट बदल रहा माज़ी
आज लगता है रतजगा होगा (४)

बासी अख़बार की तरह शब में
वो भी फुटपाथ पर बिछा होगा (५)

ये अँधेरा पसंद था उसको
क्या उजालों से वो डरा होगा (६)

माँ बँधाने लगी उसे ढारस
बाप ने फिर कहा-सुना होगा (७)

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