Salik Ganvir   (© सालिक गणवीर)
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Joined 9 November 2018


Joined 9 November 2018
23 HOURS AGO

अब तलक मोम बन चुका होगा
फिर भी वो धूप में खड़ा होगा (१)

ख़्वाहिशें दफ़्न हो गई होंगीं
आदमी ख़ाक हो गया होगा (२)

मेरी ख़ुशियाँ ज़रूर छोटी हैं
पर मेरा ग़म बहुत बड़ा होगा (३)

रोटियाँ गाय खा चुकी होगी
साँड दर पर वहीं खड़ा होगा (४)

बासी अख़बार की तरह शब में
वो भी फुटपाथ पर बिछा होगा (५)

ये अँधेरा पसंद था उसको
क्या उजालों से वो डरा होगा (६)

माँ बँधाने लगी उसे ढारस
बाप ने फिर कहा-सुना होगा (७)

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18 APR AT 17:01

हँसता था ख़ूब हँसने से रग़बत उसे भी थी
मेरी तरह मज़ाक़ की आदत उसे भी थी (१)

इस तरह साथ उसके कटी है ये ज़िन्दगी
शिकवा मुझे भी था तो शिकायत उसे भी थी (२)

बातों का ओर-छोर न होता था उन दिनों
बे-रोज़गार मैं था फ़राग़त उसे भी थी (३)

जो दिल में दर्द था उसे रोकर बहा दिया
आराम था मुझे भी तो राहत उसे भी थी (४)

मौक़ा मिला तो मैं ने भी इनकैश कर लिया
था फाइदा मुझे तो रिआ'यत उसे भी थी (५)

इक मैं ही वो नहीं जिसे हासिल था ये हुनर
महफिल को लूटने की महारत उसे भी थी (६)

मुझसे कहा गया कि पलटकर न देखना
मुड़कर न देखने की हिदायत उसे भी थी (७)

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13 APR AT 14:04

वो तो कहता है हूँ मैं आज़ाद यारो क्या करूँ
अस्ल में है वो मेरा सैयाद यारो क्या करूँ(१)

हो न जाऊँ मैं कहीं बर्बाद यारो क्या करूँ
उसको रखना है मुझे आबाद यारो क्या करूँ(२)

वो तभी हद से ज़ियादा ख़ुश हुआ है दोस्तो
जब कभी रहता हूँ मैं नाशाद यारो क्या करूँ(३)

सुर्ख़ रखना है गुलाबों को चमन में यार के
ख़ून को अपने बना दूँ खाद यारो क्या करूँ(४)

आज भी हालत तो मेरी है ग़ुलामों की तरह
सिर्फ कहने को हूँ मैं आज़ाद यारो क्या करूँ(५)

भूलना जिस आदमी को चाहता हूँ आज मैं
कल वो आएगा सभी को याद यारो क्या करूँ(६)

हुक्म जिसको दे रहा था कल तलक 'सालिक' मियाँ
अब उसी से करता है फ़रयाद यारो क्या करूँ(७)

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3 APR AT 21:14

हैं ये किस काम के बेशुमार आदमी
आख़िरश काम आते हैं चार आदमी (१)

आदमी को तुम अब आदमी मत कहो
भीड़ में बन गया है क़तार आदमी (२)

बोझ अपनी कमीजों का ढोता रहा
खूंँटियों पर टँगा तार-तार आदमी (३)

मह्ज़ दो रोज़ की ज़िन्दगी के लिये
मर रहा है यहाँ कितनी बार आदमी (४)

ये नज़ारा दिखेगा इसी मुल्क़ में
पीठ पर आदमी के सवार आदमी (५)

वादा अच्छे दिनों का हुआ था मगर
आज भी कर रहा इंतिज़ार आदमी (६)

इतना लिख-पढ़ गया है मगर क्यों मुझे
आज भी लग रहा है गँवार आदमी (७)

हज़्म ये कर गया जाने क्या-क्या यहाँ
ले नहीं पा रहा पर डकार आदमी (८)

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29 MAR AT 16:30

अब तो बेरोज़गार हैं हम भी
अपने घर दरकिनार हैं हम भी (१)

सिर्फ़ काँटें ही मिल सके हमको
वैसे फ़स्ल-ए-बहार हैं हम भी (२)

धज्जियाँ आपकी उड़ीं लेकिन
हो गए तार-तार हैं हम भी (३)

आप जाहिल हैं कोई बात नहीं
यार थोड़े गँवार हैं हम भी (४)

अब किसी काम के नहीं यारो
एक मुठ्ठी ग़ुबार हैं हम भी (५)

एक तुम ही नहीं हो दुनिया में
इश्क़ में सोगवार हैं हम भी (६)

जब से देखा है आप को बेचैन
देखिये बे-क़रार हैं हम भी (७)

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21 MAR AT 21:02

अब भी तुम्हारे पाँवों के नीचे दबा हूँ मैं
मुझको ये लग रहा था कि उठ कर खड़ा हूँ मैं (१)

तुझको मुग़ालता है कि बर्बाद हो गया
तू आ के देख ले मुझे अच्छा-भला हूँ मैं (२)

तूने मुराद पूरी की हर शख़्स की मगर
अब तक समझ न पाया है क्या चाहता हूँ मैं (३)

पानी नहीं दिया न मुझे खाद दी कभी
रहमत ख़ुदा की देख कि अब तक हरा हूँ (४)

यारो हिचक रहे हो वहाँ जाने से मगर
सौ बार उस गली से ही आया-गया हूँ मैं (५)

जितनी भी चोट करनी है कर लीजिए हुज़ूर
अंदर से हूँ मैं नर्म प बाहर कड़ा हूँ मैं (६)

जिस जगह मुझको छोड़ा था हूँ आज भी वहीं
अब तक ख़जाने की तरह यारो गड़ा हूँ मैं (७)

'सालिक' मुझे यहाँ कोई पहचानता नहीं
इस शह्र के हर आदमी को जानता हूँ मैं (८)

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14 MAR AT 8:32

समय के साथ बदलता नहीं ज़माना क्या
नया जो है कभी होता नहीं पुराना क्या (१)

चले भी मर्जी से अपनी रुके भी मर्ज़ी से
हवा का होता है यारो कोई ठिकाना क्या (२)

वो बात करता है ऐसी कि मैं भी हैराँ हूँ
ये कल जो तिफ़्ल था अब हो गया सियाना क्या (३)

चलो उगाएँ नई फ़स्ल अब ख़यालों की
फिर इनको बेच लाएँगे आब-ओ-दाना क्या (४)

जिसे भी देखो वही छाँव ढूँढता है यहाँ
लगा हुआ है मिरे घर में शामियाना क्या (५)

ज़रूर आएगा मिलने कहा तो था लेकिन
बनाएगा वो नया और इक बहाना क्या (६)

ख़ुशी भी उसने ही थी जो बाँट दी सब में
उसी ने जोड़ दिए ग़म उसे घटाना क्या (७)

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8 MAR AT 8:40

तुम रोज़ झूठी क़समें ही खाओ तो क्या करूँ
हर दिन नया बहाना बनाओ तो क्या करूँ (१)

सोचा था मैं ने फूल उगाओगे ज़िस्म पर
काँटें मेरे बदन पे उगाओ तो क्या करूँ (२)

मैं चाहता था मिलना अकेले में आपसे
सारे ज़हाँ को साथ जो लाओ तो क्या करूँ (३)

खेतों में मुझसे धान उगाया नहीं गया
सरसों हथेलियों प उगाओ तो क्या करूँ (४)

सोया नहीं मैं आज भी आती नहीं है नींद
फिर भी हसीन ख़्वाब दिखाओ तो क्या करूँ (५)

सुनना मैं चाहता था महब्बत की दास्ताँ
नफ़रत भरी कहानी सुनाओ तो क्या करूँ (६)

मैं चाहता था भीड़ में खो जाऊँ अब कहीं
मेले से मुझको ढूँढ के लाओ तो क्या करूँ (७)

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21 FEB AT 22:47

आफ़त में फँस गई है मेरी जान देखकर
ख़ुश है वो मुझको इतना परेशान देखकर (१)

उड़ लेना आँखें मूँदकर आकाश में ज़रूर
चलना मगर ज़मीं प तू नादान देखकर (२)

सबकुछ जो जानता था वो पेश आया ऐसे आज
हैरान हूँ मैं उसको यूँ अंजान देखकर (३)

कालर पकड़ के दोस्तो खानी पड़ी थी लात
तब से पकड़ रहा हूँ गिरेबान देखकर (४)

मिलने तो आ गए थे सुदामा जी कृष्ण से
लौटे मगर वो गेट पे दरबान देखकर (५)

दहशत है भीड़-भाड़ में कोई कुचल न दे
है ख़ौफ़ इस गली को भी सुनसान देखकर (६)

आगे बढ़ा तो मुश्किलें बढ़ती चली गई
मैं तो चला था रास्ता आसान देखकर (७)

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8 FEB AT 8:41

ज़िंदगी को तमाम करना है
मौत का इंतिज़ाम करना है (१)

चैन से सोने दीजिए मुझको
उसकी नींदें हराम करना है (२)

रैली ग़म की निकाल कर इक दिन
शह्र का रस्ता जाम करना है (३)

पास आने लगे मुसीबत तो
दूर से ही सलाम करना है (४)

नाम करना है हर ख़ुशी उसके
और ग़म अपने नाम करना है (५)

वो न पास आए फिर कभी 'सालिक'
जाते-जाते ये काम करना है (६)

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