टूटता दिल न ही मायूसी ये तारी होती
मैं न उम्मीद कभी हाए किसी से करता
ये तो मालूम न था फूल भी चुभ जाते हैं
वर्ना मैं प्यार किसी नागफनी से करता-
तुझसे होती जो शिकायत तो तुझी से करता
जब गिला होता किसी से तो उसी से करता (१)
पास अंबार दुखों का ही रहा जीवन-भर
सुख मिले होते तो इज़हार ख़ुशी से करता (२)
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मैंने जाहिल जिन्हें समझा वो सियाने निकले
जितने दुश्मन हैं मेरे दोस्त पुराने निकले (१)
मैं लड़कपन में समझता था जिसे नूरजहाँ
अस्ल में वो सभी शमशाद के गाने निकले (२)
शे'र जब उनको सुनाया तो कहा था कल वाह
हमने तारीफ़ जिसे समझा वो ताने निकले (३)
खोज अपनी ये मुकम्मल कभी होगी या नहीं
मिल नहीं पाया कभी हम वही पाने निकले (४)
हसरतों का गला घोटा तो कभी क़त्ल किया
और हम हँसते हुए ख़ून बहाने निकले (५)
ज़िन्दगी-भर तो जगह दी न किसी को उसने
लोग पागल हैं उसे दिल में समाने निकले (६)
आपकी बात प मैं कैसे करूँ आज यक़ीं
आपने जो भी कहा सच वो फ़साने निकले (७)
एक वो हैं कि कभी रूठ न पाए 'सालिक'
एक तुम हो कि उन्हें आज मनाने निकले (८)-
क्या हमें फ़ुटपाथ पर ही रोज़ चलना चाहिए
या सभी सड़कों का हुलिया भी बदलना चाहिए (१)
इस तमाशे में भले ये जाँ चली जाए मिरी
दिल मगर हर हाल में उनका बहलना चाहिए (२)
अपने साँचे में उन्हें हम ढाल तो सकते नहीं
तो हमें फिर उनके ही साँचे में ढलना चाहिए (३)
दर्द से गर चीखते हैं हम किसी दिन दोस्तो
उफ़ कभी उनके लबों से तो निकलना चाहिए (४)
शाम होते ही हवा में ज़ह्र घुल जाता है दोस्त
सुब्ह बागों में तुम्हें हर दिन टहलना चाहिए (५)
ना उमीदी की हदें दिल पार कर जाए मगर
रात भर उम्मीद की शम्एँ तो जलना चाहिए (६)
मैं तेरी ख़ुशियों की खातिर फोड़ दूँ सर भी मगर
इन पहाड़ों को दुखों के अब पिघलना चाहिए (७)-
दर्द-ओ-ग़म से हो भरी ये ज़िंदगी तो क्या करें
बाँटने वाला नहीं कोई ख़ुशी तो क्या करें (१)
दुश्मनों से ज़िन्दगी-भर लड़ तो सकते हैं यहाँ
दोस्त ही करने लगें गर दुश्मनी तो क्या करें (२)
रोज़ हम मिलते रहेंगे इस जगह उसने कहा
ख़्वाब में भी वो नहीं आया कभी तो क्या करें (३)
आनलाइन जिसने जूए की लगा दी लत हमें
मुफ़्त में अब खेलता है वो रमी तो क्या करें (४)
आज तक तो बात जिसने सीधे मुँह न की कभी
अब वही करता है हमसे मसखरी तो क्या करें (५)
काम करने हैं बहुत लेकिन बताते जाइए
आज का दिन हो जहाँ में आख़िरी तो क्या करें (६)
कोशिशें तो लाख हमनें कीं मगर क्या कीजिए
बात उनसे ही नहीं अब तक बनी तो क्या करें (७)-
नहीं थी घोंसले में जब जगह बाहर निकल आए
परिंदों का भी क्या कीजै सभी के पर निकल आए (१)
जिन्हें बेकार कहता था ज़माना कल तलक यारो
ख़ुदा के फ़ज्ल से इक दिन वही बिहतर निकल आये (२)
मुझे लगता था फूलों के ही होंगे हार हाथों में
मगर कुछ यार ऐसे थे लिए ख़ंजर निकल आए (३)
यक़ीनन सिर-फुटौवल तो यहाँ अब रोज़ ही होगी
जहाँ कुछ काँच के घर थे वहीं पत्थर निकल आए (४)
हमें कुछ भी नज़र आया नहीं हम लोग ज़िंदा हैं
न जाने क्या दिखा है तुर्बतों से सर निकल आए (५)
हक़ीमों ने तो मिल जुलकर हमारी जान भी ली है
जिन्हें ज़ल्लाद कहते हैं वो चारागर निकल आए (६)
न पानी पी सके ख़ुद भी न औरों को दिया पीने
समुंदर भी इन्हीं तिश्नालबों के घर निकल आए (७)-
किसी ने छाँट दिया तो किसी ने काट दिया
जुड़ाव आपसे था आप ही ने काट दिया (१)
बड़ा कठिन था सफ़र ज़ीस्त का मगर यारो
"ये रास्ता मिरी आवारगी ने काट दिया" (२)
बताए कोई परिंदे कहाँ बसाएँ घर
दरख़्त जिसने लगाया उसी ने काट दिया (३)
क़तार लंबी है राशन की क्या मिलेगा मुझे
मेरा तो नाम ही मिल कर सभी ने काट दिया (४)
जो लम्हा चाहा था शेयर करूँ मैं तेरे साथ
तिरे बग़ैर वो पल ज़िन्दगी ने काट दिया (५)
न अड़चनों की तरह था किसी के रस्ते में
पहाड़ को है गिला क्यों नदी ने काट दिया (६)
बग़ैर बिल्ली के मैं दो क़दम चला न कभी
भले ही रस्ता किसी आदमी ने काट दिया (७)-
सुब्ह होते ही जैसे शाम हुई
ज़िंदगी इस तरह तमाम हुई (1)
आज दिन में दिखा वही चहरा
रात की नींद फिर हराम हुई (2)
कैसे आज़ाद हम कहें इसको
यूँ लगे नस्ल अब ग़ुलाम हुई (3)
दर्द आये हमारे हिस्से में
हर ख़ुशी जब तुम्हारे नाम हुई (4)
ख़ास तो थी मगर न जाने क्यों
वो मुलाक़ात कैसे आम हुई (5)
वो मिला मुझसे बाद मरने के
चाह मिलने की पर मुदाम हुई (6)-