यूँ ही कब तक डरा करे कोई
मौत का सामना करे कोई (१)
मुफ़्त में गर किसी को देना हो
मशविर: दे दिया करे कोई (२)
मयकदा पास तो नहीं लेकिन
दूर कब तक रहा करे कोई (३)
क्या ज़मीं दोज़ करके मानेगा
और कितना दबा करे कोई (४)
वक़्त के साथ भर ही जाएँगे
ज़ख्म जितने दिया करे कोई (५)
दोस्त आबाद हो गए सारे
हम है बर्बाद क्या करे कोई (६)
बद्दुआएँ मिली हैं लोगों से
मेरे हक़ में दुआ करे कोई (७)
सारे "सालिक" से कहते रहते हैं
हाए उसकी सुना करे कोई (८)-
ज़ीस्त तुझको जिया नहीं जाता
क्या करूँ मैं मरा नहीं जाता (१)
सबसे पहले तुम्हीं तो जाते थे
अब कोई दूसरा नहीं जाता (२)
सब तो आता है जेल के अंदर
क्या बताऊँ मैं क्या नहीं जाता (३)
क्यों न अब जान ही तू ले मेरी
ज़ुल्म तेरा सहा नहीं जाता (४)
पढ़ लिया कर कभी मेरी आँखें
मुँह से जब कुछ कहा नहीं जाता (५)
जब कहा उसने तुम निकल जाओ
कह दिया मैंने जा नहीं जाता (६)
छोड़ दें कह दो बीच रस्ते में
साथ उनके चला नहीं जाता (७)
सारे ख़ामोश हैं मगर 'सालिक'
हमसे क्यों चुप रहा नहीं जाता (८)-
ज़ीस्त मेरी ख़राब की तुमने
पानी माँगा शराब दी तुमने (१)
मैं ने काँटे तलब किए तुमसे
दे दी टहनी गुलाब की तुमने (२)
मेरी ख़्वाहिश थी रूबरू देखूँ
डाला रूख़ पर नक़ाब ही तुमने (३)
इक तो लूटी हैं रात की नींदें
फिर चुराये हैं ख़्वाब भी तुमने (४)
सबसे ख़ुद ही सवाल तुमने किया
दे दिया फिर जवाब भी तुमने (५)
चीखूँ मैं ज़ोर से या चिल्लाऊँ
रग जो दुखती है दाब दी तुमने (६)-
रोज़ रोते हैं गले लग के किसी लाश से हम
फिर भी सबसे यही कहते हैं कि सब अच्छा है
आबिद मलिक-
तुझसे होती जो शिकायत तो तुझी से करता
जब गिला होता किसी से तो उसी से करता (१)
पास अंबार दुखों का ही रहा जीवन-भर
सुख मिले होते तो इज़हार ख़ुशी से करता (२)
आप तो खा़ली हैं क्यों कुछ नहीं कहते उनसे
मैं हूँ भर-पूर गिला कैसे कमी से करता (३)
आप ने तो न कभी कुछ भी कहा है मुझसे
कुछ भी कहते तो शिकायत मैं सभी से करता (४)
ख़ुश्क होते न मेरे होंठ न सूखी आँखें
प्यास होती न गिला मैं भी नमी से करता (५)
टूटता दिल न ही मायूसी ये तारी होती
मैं न उम्मीद कभी हाए किसी से करता (६)
ये तो मालूम न था फूल भी चुभ जाते हैं
वर्ना मैं प्यार किसी नागफनी से करता (७)
क्या करूँ दिल ही नहीं पास मिरे वर्ना मैं
टूट कर प्यार जो करता तो तुम्ही से करता (८)-
टूटता दिल न ही मायूसी ये तारी होती
मैं न उम्मीद कभी हाए किसी से करता
ये तो मालूम न था फूल भी चुभ जाते हैं
वर्ना मैं प्यार किसी नागफनी से करता-
तुझसे होती जो शिकायत तो तुझी से करता
जब गिला होता किसी से तो उसी से करता (१)
पास अंबार दुखों का ही रहा जीवन-भर
सुख मिले होते तो इज़हार ख़ुशी से करता (२)
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मैंने जाहिल जिन्हें समझा वो सियाने निकले
जितने दुश्मन हैं मेरे दोस्त पुराने निकले (१)
मैं लड़कपन में समझता था जिसे नूरजहाँ
अस्ल में वो सभी शमशाद के गाने निकले (२)
शे'र जब उनको सुनाया तो कहा था कल वाह
हमने तारीफ़ जिसे समझा वो ताने निकले (३)
खोज अपनी ये मुकम्मल कभी होगी या नहीं
मिल नहीं पाया कभी हम वही पाने निकले (४)
हसरतों का गला घोटा तो कभी क़त्ल किया
और हम हँसते हुए ख़ून बहाने निकले (५)
ज़िन्दगी-भर तो जगह दी न किसी को उसने
लोग पागल हैं उसे दिल में समाने निकले (६)
आपकी बात प मैं कैसे करूँ आज यक़ीं
आपने जो भी कहा सच वो फ़साने निकले (७)
एक वो हैं कि कभी रूठ न पाए 'सालिक'
एक तुम हो कि उन्हें आज मनाने निकले (८)-
क्या हमें फ़ुटपाथ पर ही रोज़ चलना चाहिए
या सभी सड़कों का हुलिया भी बदलना चाहिए (१)
इस तमाशे में भले ये जाँ चली जाए मिरी
दिल मगर हर हाल में उनका बहलना चाहिए (२)
अपने साँचे में उन्हें हम ढाल तो सकते नहीं
तो हमें फिर उनके ही साँचे में ढलना चाहिए (३)
दर्द से गर चीखते हैं हम किसी दिन दोस्तो
उफ़ कभी उनके लबों से तो निकलना चाहिए (४)
शाम होते ही हवा में ज़ह्र घुल जाता है दोस्त
सुब्ह बागों में तुम्हें हर दिन टहलना चाहिए (५)
ना उमीदी की हदें दिल पार कर जाए मगर
रात भर उम्मीद की शम्एँ तो जलना चाहिए (६)
मैं तेरी ख़ुशियों की खातिर फोड़ दूँ सर भी मगर
इन पहाड़ों को दुखों के अब पिघलना चाहिए (७)-