तेरी कृपा का पात्र हूँ मैं,
श्याम सुन्दर बुझ रही दिप्ती मात्र हूँ,
रखना सदा मुझको अपनी शरण में स्वामी,
विश्वास सहित सब्र का सौहार्द हूँ मैं,
देव मेरे भाग्य में हो पाएँगी,क्या कृपा तेरी?
तेरी दृष्टि को तरसता,सृष्टि का विप्लाव मात्र हूँ मैं,
प्रार्थना है रखना अपनी कृपा मुझ पर,
सदैव स्वामी मेरे,
तन से नहीं मन से भी,
तेरी दया संज्ञान हूँ मैं,,,,!
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