मैं छुप-छुप कर, तेरी गलियों से गुज़रने लगी हूँ,
जबसे मिली हूँ तुमसे, बेहद इश्क़ करने लगी हूँ।-
तुम सोचो.... फिर सोच कर बताना
कब तक चलेगा मेरी पोस्ट पर यूँ
छिप- छिप कर आना 🙊
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छुप-छुप कर देखा है उसे
जब-जब मेरी गली में आया है वो
बहाने से अपने होने का एहसास कराया है वो
पढ़ न ले मेरी नज़रों में ख़ुद को
इसलिए हर बार उससे नज़र चुराया है
छुप-छुप कर किया है मैंनें उसका इंतज़ार
बिखर न जाऊँ कहीं उसे देख
इसलिए ख़ुद को हर बार पर्दे में समेटा है
छुप-छुप कर उसे प्रेम-रस में डूबते सुना है
बना न ले मुझे अपनी गीतों की धुन
इसलिए उसके सुर में सुर मिलाने से हर बार ख़ुद को रोका है
जब-जब चाय पर परिवार संग आया है
बना न ले मुझे अपने परिवार का रंग
इसलिए उसके स्पर्श से हर बार अपने अंग को बचाया है !!-
मैनें देखा है उसे छुप छुप के देखते हुए
अच्छा लगता है उसका यूँ मुझे देखना-
मुकम्मल हूँ तेरे इश्क़ में,
इज़हार तो कीजिये,
यूँ ना हमसे छुप-छुप के प्यार कीजिये.....-
ये जो दूर से तुम हमे छुप- छुप
देखा करते हो ...
गर दिल में प्यार है ,तो पास आकर
बोल क्यों नही देते !!-
तू छुप-छुप कर मुस्काती रही
मैं यूँ ही बात बनाता रहा।
छलकती वो होंठों की लाली
मेरे दिल में छप जाता रहा।
तू सुबह-सुबह की साँस बनी
मैं तेरे लिए रुक जाता रहा।
तेरे लब से निकले गीत थे जो
मेरे कानों में घुल जाता रहा।
तू हाथ थामकर चल दी थी
मैं पीछे-पीछे आता रहा।
तुझे दूर से जो जाते देखा
दिल तेरे साथ था जाता रहा।-
तुझे चाहा सिर्फ तुझे प्यार किया ,
वर्षों छुप छुप के तेरा दीदार किया,
जी भर के रोये हैं जब जब तेरी याद आई,
एक तरफा ये महौब्बत हमी ने सिर्फ़ निभाई।-