...... स्त्री......
स्त्री होना इक नदी के समान ही होने जैसा था.... बहुत पहले
जैसे नदी खुद का रास्ता बना लेती है
उसी तरह स्त्री भी अपना रास्ता खुद तैय करती थी...!!
पर फिर.... पुरुष रुपी बांध उसके जीवन में ना जाने क्यों ईश्वर ने भेज दिया
जिसने उसके बहने के सारे रास्ते बंद कर दिये
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