चलो अब रहने दो, हम रह लेंगे
तुमसे जुदाई का ग़म सह लेंगे
एक साँस ही लेनी है आख़िर हमें
वह भी अपनी आत्मा से कह लेंगे
और इश्क़ में उस ख़ुदा ने दिया क्या!
तुमने कभी भी मोहब्बत किया क्या??
इश्क़ की मुख़ालफ़त हम क्या करें
कोई अरमाँ भी नहीं जो अब दवा करें
हमको ना-गवार गुजरा है ये जहां
अब हर शय ही तुम्हारा है, हुआ करे
और पूछो उस रांझे से तू जिया क्या?
तुमने कभी भी मोहब्बत किया क्या ??-
बताकर फूल हूँ काँटों से यूँ अनजान रखा
वो जान थी मेरी पर मुझे ही मेहमान रखा-
ज़िन्दगी-ए-मशरूफ़ियत में सब ख़ाक कर बैठा
दिल राख था पहले से ही फिर राख कर बैठा
सुन ओ ज़माने क्या तुम्हें इतनी भी ना क़दर
छलनी ही था बदन मेरा क्यों चाक कर बैठा-
दिल सर्द हो रहा है
कुछ दर्द हो रहा है
घुटन-जलन है ऐसी
सब गर्द हो रहा है-
वो जिनके धूप में
सूरज से ज़्यादा चेहरे चमचमाते हैं
वो जिनके पलकों के झुकने के पल
जहान भी झुक जाते हैं
वो जिनकी चाल की अदाओं से
बुलबुल भी ज्ञान लेती है
वो जिनके अधरों के रसपान को
मेरी धड़कन ठान लेती है
वो जिनकी मद-भरी आँखों से
प्याले में नशा उतरता है
वो जिनके लम्बे-लम्बे गेसू देख
बादल भी आहें भरता है
वो कटि सुराही-सी मगर
वो गर्दन जैसे हो सिंगार
दो कर में मानो हो चमन
दो पग में हैं जन्नत हज़ार-
कह दे शागिर्दों से फंदा तैयार कर
जो ना मिले ना उसे अख़्तियार कर
झूठी है दुनिया, क़रीबी- फ़रेबी
झूठे हैं सच भी, तो झूठा ही प्यार कर
जीवन तमस् है, क्या आशा-निराशा
है करना अक़ीदा तो दुश्मन से यार कर
बेमौत मरते हैं हमसब हैं ज़ाहिल
चालाक हैं वो ना तू ऐतबार कर
मग़रिब से मशरिक़ भी मिल जाएँगे पर
वफ़ा ना मिलेगी तू सब्र हज़ार कर
ले चल ओ माँझी, जहाँ तेरी मर्ज़ी
कृष्णा हो यमुना या गंगा की धार पर-
अपेक्षित मानव हमेशा उपेक्षित होता रहता है!
अपेक्षा जितनी अधिक होंगी उत्कंठा आपका गला उतना ही दबाएगी!
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खुशियों की पावन बेला, सुगंधित फूल लाते हैं।
हर्षोल्लास में जन-जीवन सब दुःख भूल जाते हैं।
दीप जले तन-मन में, अब क्या घर है, क्या है द्वार,
हृदय के पट तू खोल रे मन, सिया-राम आते हैं।-
हमें शौक नहीं इस जहां में सुख पाने का
हम साथ तेरे हर तकलीफों में जी लेंगे।
ग़र सुनना तुम्हें पसंद, मेरे अल्फाज़ों को,
ख़ुदा जानता है, तेरी तारीफों में जी लेंगे।
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हम संस्कारी, हम शीलगुणी, हम धैर्यवान दिखलाते हैं।
ज़ब सरहद पर हलचल होती तब हम तलवार उठाते हैं।
हम रात-दिवस की मेहनत से हर कल को आज बनाते हैं।
सब बन्दूकें ढोते रह गए, हम 'चंद्रयान' भिजवाते हैं।-