Amiraj Kumar Anand   (Amiraj Kumar Anand✍️)
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Joined 25 April 2018


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17 APR AT 20:11

अपेक्षित मानव हमेशा उपेक्षित होता रहता है!
अपेक्षा जितनी अधिक होंगी उत्कंठा आपका गला उतना ही दबाएगी!

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22 JAN AT 20:05

खुशियों की पावन बेला, सुगंधित फूल लाते हैं।
हर्षोल्लास में जन-जीवन सब दुःख भूल जाते हैं।
दीप जले तन-मन में, अब क्या घर है, क्या है द्वार,
हृदय के पट तू खोल रे मन, सिया-राम आते हैं।

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7 JAN AT 13:25

हमें शौक नहीं इस जहां में सुख पाने का
हम साथ तेरे हर तकलीफों में जी लेंगे।
ग़र सुनना तुम्हें पसंद, मेरे अल्फाज़ों को,
ख़ुदा जानता है, तेरी तारीफों में जी लेंगे।

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23 AUG 2023 AT 22:48

हम संस्कारी, हम शीलगुणी, हम धैर्यवान दिखलाते हैं।
ज़ब सरहद पर हलचल होती तब हम तलवार उठाते हैं।
हम रात-दिवस की मेहनत से हर कल को आज बनाते हैं।
सब बन्दूकें ढोते रह गए, हम 'चंद्रयान' भिजवाते हैं।

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26 FEB 2023 AT 23:40

ये जो रस्म है, इस दुनिया का, अनूठा है।
हर कोई जो, साँस ले रहा है, झूठा है।

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1 OCT 2022 AT 23:09

गर इस गोल दुनिया में आपका कोई गोल नहीं है, तो फिर गोल-गोल घूमते रह जाओगे।

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28 JUL 2022 AT 4:56

उदास दिन है उदास रातें,
नज़ारा और कुछ नहीं।
हमारी महफ़िल ग़मों की बातें,
हमारा और कुछ नहीं।
ज़माना है अभी डूबा नशे में,
दो-चार लोगों के।
और हम होश में तकिया भिगाते,
सहारा और कुछ नहीं।

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6 JUL 2022 AT 19:53

हर जगह बिखरी पड़ी मासूमियत से तौबा कर लूँ।
बस एक तेरे ही रुख की मुझको दीद हो।

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9 APR 2022 AT 17:23

बुढ़ापे में भी बच्चे के बीमारियों के सामने खड़ी हो गई।
एक माँ आज फिर उस ख़ुदा से भी बड़ी हो गई।

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19 MAR 2022 AT 21:48

मिल ही जाते हैं चंद लोग ऐसे सफर में ज़नाब।
अपनी कदर ही नहीं रहती उनकी नज़र में ज़नाब।

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