खुशियों की पावन बेला, सुगंधित फूल लाते हैं। हर्षोल्लास में जन-जीवन सब दुःख भूल जाते हैं। दीप जले तन-मन में, अब क्या घर है, क्या है द्वार, हृदय के पट तू खोल रे मन, सिया-राम आते हैं।
हमें शौक नहीं इस जहां में सुख पाने का हम साथ तेरे हर तकलीफों में जी लेंगे। ग़र सुनना तुम्हें पसंद, मेरे अल्फाज़ों को, ख़ुदा जानता है, तेरी तारीफों में जी लेंगे।
हम संस्कारी, हम शीलगुणी, हम धैर्यवान दिखलाते हैं। ज़ब सरहद पर हलचल होती तब हम तलवार उठाते हैं। हम रात-दिवस की मेहनत से हर कल को आज बनाते हैं। सब बन्दूकें ढोते रह गए, हम 'चंद्रयान' भिजवाते हैं।
उदास दिन है उदास रातें, नज़ारा और कुछ नहीं। हमारी महफ़िल ग़मों की बातें, हमारा और कुछ नहीं। ज़माना है अभी डूबा नशे में, दो-चार लोगों के। और हम होश में तकिया भिगाते, सहारा और कुछ नहीं।