घरे के ख़ुशियाँ तमाम बनिके
सावन के बौछार बनिके
छठी मैय्या अईहे घरे हमरा
हमरो प्रार्थना स्वीकार करिके..
सभ्भे सारा रिश्ता में प्यार बनिके
माई के दुलार बनिके
छठी मैय्या अईहे घरे हमरा
हमरा पे उपकार करिके..
रंग अहां हजार बनिके
सुंदर सुंदर रंगोली के पुरस्कार बनिके
छठी मैय्या अईहे घरे हमरा
हमरो सपना साकार करिके..-
एक ऐसी पूजा
जिसमे कोई पंडित पुजारी नही होता,
जिसमे देवता प्रत्यक्ष है,
जिसमें डूबते सूर्य को भी पूजते है,
और उगते सूर्य को भी पूजते है,
जिसमें व्रती जाति समुदाय से परे है,
जिसमे सिर्फ लोकगीत गाते है,
जिसमें पकवान घर में बनते है,
जिसमें घाट पर कोई ऊँच-नीच नही है,
जिसमें प्रसाद अमीर-गरीब सभी
श्रद्धा से ग्रहण करते है।
ऐसे सामाजिक सौहार्द शांति समृद्धि और
सादगी के महापर्व छठ की सहृदय शुभकानाएं। 🙏🙏-
मौली चंदन पान सुपारी
खीर ठेकुआ फूल केतारी
सूप नारियल केला
मंडप गंगा दीपक
कलश हल्दी दुब
हे छठी मैया तोहे शत-शत नमन ।-
छठ
आत्मा को मिलता प्रकृती का अंश ,
जो जीवन(प्राण) बन जाता है ।
फिर प्रकृती की गोद में पलता - बढ़ता है यह जीवन ।
प्रकृती के आलिंगन में सदैव रहता है ही यह जीवन ।
आज जीवन को प्रकृती का स्पर्श करवाते हैं ,
छठ का पावन पर्व मनाते हैं ।
निरंकार ब्रह्म के साकार सरल प्रमाण ,
सूर्य और प्रकृती का करते हैं अर्चन ,
जो करता जीवन का अर्जन ।
चार दिवस का उत्सव , नहा - खा , खरना ,
फिर 36 घंटे का निर्जला उपवास ।
तब सूर्य देव को संध्या बेला और अगली सुबह
में देते शीतल जल में खड़े हो अर्ध्य ।।-
गंगा की लहरों पर असंख्य दीप जो जल गए
फलक के सितारे उन्हें देख देख जल गए...
कभी कभी ही सही, ज़मी के सितारों से ये
जहाँ भी सजता है,
यूं गुमां न कर ओ आसमां एक आकाशगंगा
हमारे यहां भी बसता है।...-
उषा रानी किरण के रथ पर आई पिता के द्वार।
सांध्य वधू सूरज प्रियतम संग चली गई ससुराल।
रजनी रानी के माथे पर चांद का टीका,
तम की चादर ओढ़ के बैठी,टंके थे तारे कई हजार।
तीनों बेटी बहुत उदास, जाना मां धरती के पास।
देख उदास पिता गगन ने, बादल को बुलवाया,
और भेज दी प्रिय धरती को मोती की चादर।
ऊषा ने मां धरती को दे सिंदूर सजाया,
सांध्य वधू ने तम चादर पर रंग नया बिखराया।
रजनी रानी ने माता को स्वप्न नया दिखलाया।
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ठार लागे पनिया में जा के
आदित काहे नाही हालि सुनी आए
हो गैलई अब त विहान
सुरुज देव केना बेरी आयेम
एह बेरी ले ले अहिया ओहकरो
जेकरा मंगले हती ऐते कष्ट उठाए !
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फल, ले के रखली डोंगर में
मैना लागेल ललचाए
कहे देली सूगवा से आहिये
आदित अर्ग लेबे जेहिं बेरी आए
मंगली हा रौना माइ से , जब मिली
मैना देबऊ तोहरो खुबे फल चढ़ाय!
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सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ
कल से शुरू हो गया है । छठ के प्रत्येक दिन
का अपना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है ।-