बता चुकी हूँ जो बात फिर न बताऊँगी, नयी उम्मीद, नयी है आरजू चिराग भी नया ही जलाऊंगी, जिसका नाम है मेरी पहचान उससे आज जमाने को मिलाऊंगी, अब मुझे किसी से डर नहीं गर आँधियाँ भी आयीं तो, वो मुझे बुझा न पाएगीं,
फूल राहों में बिछाकर खुद काँटों पे चलता है, चिराग जो बनाता है खुद अँधेरों में रहता है। गरीब मत समझना उस भूखे भिखारी को, दुआओं का सारा खजाना उसके दामन में रहता है।। -ए.के.शुक्ला(अपना है!)