चिंगारी लगी छोड़ गए, दामन में वो कभी,
हम ख़ाक हो गए, मगर उनको खबर नहीं..
कश्ती तड़प रही है, मौजों की चाह में,
पानी तो है दरिया में, लेकिन भँवर नहीं..
क्यूँ शक्ल बदलती है, हर रोज़ आज कल,
लगता है आईने को मेरे, थोड़ी सबर नहीं..
कर लूँ मैं हाथ नीचे, के रुसवा खुदा न हो,
शायद के अर्ज़ियाँ में मेरी, कुछ असर नहीं..
अब हाले दिल हमारा, है हर ज़ुबान पर,
डर है के छप ना जाये, अख़बार में कहीं....
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