अग़र मैं हारा हूँ तो......ये सिर्फ़ मेरी मात नही है मालिक,
और मैं करता भी क्या भला जब तू ही मेरे साथ नही है मालिक!-
मंज़िलें तेरे अलावा भी कई है लेकिन
ज़िन्दगी और किसी राह पे चलती ही नहीं-
अच्छा हैं तेरी मर्ज़ी का रहमो कर्म अभी जिंदा हैं ख़ुदा,
नहीं तो इंसान अपनी मर्ज़ी से किसी को जीने नहीं देता।-
नजरे झुका कर चलती है
कंगन खनका कर चलती है
तभी शायद कभी आसमां डोल जाता है
कभी धरती हिल जाती है।-
एक अरसा गुजरा है उन बातों को
फ़िर भी तुम मेरे ख्यालों में हो
ऱुह तक भीगा हूँ मैं इस बारिश में
पर अब भी तुम किनारों पर हो
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प्रिय तुम पथ में पुष्प बिछाते थे
प्रिय तेरे बिन काँटों पर चलती हूँ
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यह ज़िन्दगी मेरे हिसाब से क्यों नहीं चलती,
चलती है तो मेरे हिसाब से क्यों नहीं रुकती।
किस्मत की नक्काशी पे हमको भी रोना आया,
रुक जाती है जिस निशां पे फिर दुबारा नहीं चलती।
माना कि मेरे ख्वाबों की मिट्टी अभी गीली है,
क्यों आसमां दिखाती है मगर धरती पर नहीं चलती।
जो दिखता है औरों को शायद मुझको नहीं दिखता,
सीखकर मुहब्बत भी प्रेम के रास्तों पे नहीं चलती।
शोर है या ख़ामोशी अपनी ही ज़िद्द में कैद है,
इशारों पर भी विश्वास के पुल पर नहीं चलती।
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मेरे दिल के आंँगन में वो बलखा कर चलती है,
उसकी पायल की छम-छम मेरे दिल में बजती है।-
इस बात का उसको एहसास भी ना होगा शायद ,
की उसके प्यार के एहसास से चलती है सांसे मेरी ।-