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IIT GUWAHATI
Mechanical
Traveller
यूँ ही तेरे ख्यालों में,
आज फिर मेरी शाम बीती
लाल से उस आसमाँ को,
निगाहें तेरा चेहरा मान बैठी
खो गया मैं उस समां में ,
तुझे ढूढ़ने एक अनजान से जहां में
वहां तुझसे मेरी जब मुलाकात होगी
लफ़्ज़ों से न सही पर इशारों में ही तुझसे बात होगी
फिर कैद कर लूंगा तुझे मैं अपनी निगाहों में
मिलता रहूँगा तुम्हे हर एक राहों में
सासों को थाम तुझे देखा करूँगा
तेरी ख़ामोशी में जवावों को ढूँढा करूँगा
फिर रातों के आगोश में तुझसे मुलाकात होगी,
इस दिल की बस सदा यही आस होगी
फिर चल दूंगा कुछ ठिठककर शायद
तेरे ख्यालों में मेरी एक और शाम गुलजार होगी-
जो पूछ बैठा आज खुद से तू बता चाहत है क्या
इल्म होता है ये मुझको ये बला राहत है क्या-
बैचैन से दिल को भी
अब कोई आराम नहीं है
थोडा तो सब्र रख लूं
ऐसा भी कोई पैगाम नहीं है-
दुबले पतले ,सूखे सुपडे
टूटी चप्पल, मैले कुर्ते
कंधों पर बोझा लादे लोग
शहरों से गाँव को जाते लोग-
क़त्ल होता है हो जाने दो
कल मरता है उसे अभी ही मर जाने दो
जी भी लेगा तो क्या हासिल
मर कर ही चर्चे हो जाने दो-
"ये जंगल है"
अंधेरे ही अंधेरे हैं
शहरों की सुबह सबेरो में
अब ख़ुद से भी यहां कौन मिले
सूनी सड़क दुपहरों में
चलते गिरते फिरते सड़ते
दिल भी पत्थर हो जाते
गलियों में जब हम खो जाते
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चलते चलते ख़यालों में, बेरंग से नजारों में
गफलत में ,बवालों में
उलझा रहता हूँ बेबस सा कुछ सवालों में कि
क्या मुक़ाम मुश्क़िल होते हैं?-
एक अरसा गुजरा है उन बातों को
फ़िर भी तुम मेरे ख्यालों में हो
ऱुह तक भीगा हूँ मैं इस बारिश में
पर अब भी तुम किनारों पर हो
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बेतरतीब से ढेरों ख्यालों में
मैं आस बांध कर बैठा हूँ
दुनिया भर के किस्सों में
मैं उलझा उलझा रहता है
कोई बात जुबानी करता है
मैं बात रूहानी सुनता हूँ
नुक्कड़ गलियों और मोड़ों पर
मैं खुद से मिलता रहता हूँ-