गुरु-दक्षिणा
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वर्तमान समय मे ,शिक्षा भी बन गयी व्यापार है!
जाति, धर्म,पैसे के आधार पर, गुरु करते व्यवहार है!!
कोई तो आगे बढ़े, बने गुरू द्रोणाचार्य जैसा!
फिर गुरु-दक्षिणा में हम भी,अंगूठा कटाने को तैयार है!!
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गुरु दक्षिणा क्या मै दूं
कुछ देने लायक मै नहीं हूं
सब तो सीखा गुरु से
शत शत नमन-
अज्ञान के तम को दूर भगा कर, ज्ञान का चक्षु जगा दिया।
श्रेष्ठ गुरु से सीख शिष्य ने, सूरज को दीपक दिखा दिया।।
गुरु-दक्षिणा गुरु को समर्पित, जो हमे उत्तम मार्ग दिखाएं।
अर्जित कर के उनकी शिक्षा, जन मानस तक उसे फैलाएं।।-
गुरु दक्षिणा होई गुरु प्रथम सम्मान,
भाव भक्ति होई गुरु प्रथम उपहार।
श्री वाशुदेव कृष्ण होई अर्जुन के तत्वज्ञान,
एकलव्य होई द्रोणाचार्य के ऐतिहासिक गुरु सम्मान।-
एकलव्य ने दिया गुरु को मान ,अगूंठा काट किया गुरु का सम्मान
जो गुरु दक्षिणा एकलव्य ने दिया , इस धरती पर नहीं दे पाया कोई ,गुरु को इतना सम्मान
एकलव्य ने दिया गुरु-शिष्य के रिश्ते को नया आयाम
गुरु ज्ञान, गुरु ही मान , इस जीवन में माँ के बाद गुरु को ही मिला स्थान-
गुरु सम्मान से बढ़कर, नहीं कोई गुरु-दक्षिणा.
दिखावटी धन-सम्पत्ति उनको सुकून देती नहीं.
हो एकलव्य सा भाव, हर पड़ाव पर रखें याद.
मिलावटी भाव-भक्ति, उनको शगुन देती नहीं.-
जन्मों जन्मों की प्यास मेरी मोक्ष की, मेरे गुरु मेरी तृष्णा बुझा दे तू
तुझसे ही निमित्त है मेरा कण कण मुझे अपनी तीव्रता दिखा दे तू
तुझसे जो पाया है मैंने उसका ऋण कैसे उतारूँ बतादे तू
गुरु-दक्षिणा में क्या न्योछावर करूँ मुझे ज्ञात करादे तू-
हे प्रभु ! तुमको अर्पण है सब कुछ मेरा,
माता, पिता और गुरु के माध्यम से किया है तुमने मार्गदर्शन मेरा l
गुरु द्रोण ने मांगा एकलव्य से गुरु दक्षिणा में अंगूठा ,उसी प्रकार स्वीकार करो मेरी हर कविता , बस तुम मार्गदर्शन करते रहना मेरा हर सवेरा l
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इतिहास गवाह है नहीं रही है गुरु की कभी मृगतृष्णा...
शिष्य का भविष्य हो उज्ज्वल बस यही उसकी गुरु- दक्षिणा...
यही उसकी गुरु दक्षिणा संस्कारवान और सफल बन नाम कमाये...
करे मात पिता और जगत की सेवा बस यही गुरु की गुरु -दक्षिणा हो जाये...-