Deepti Khanna   (deepti)
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Joined 16 June 2019


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Joined 16 June 2019
29 APR AT 13:22


अरमान बड़े थे इसलिए आराम नहीं किया
उनको पाने के खातिर कभी दर्द का नाम नही लिया

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26 APR AT 17:30

चहल-पहल वाला शिकारा आज गुमसुम परेशान है,
लहरों के भी दिल में कोई अनकही सी बात है।

कभी जो खिलखिलाता था किनारों पे हसीं सपने,
आज उन तन्हा लहरों पर उदासी बयान है।

बहारों ने जो छोड़ी हैं निशानी याद के खातिर,
हर एक गुल में बसी अब कोई टूटी दास्तान है।

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26 APR AT 0:40

चिनारों की छाँव तले मोहब्बत पनपती थी कभी,
अब वहाँ हर साया भी बेसबर लगता है।

ए मेरे वतन, ये कैसी तन्हा शामें हैं आजकल,
तेरा हर निवासी परेशान सा लगता है।

बहारों का नगर, गुलिस्तां था हमारा,
अब वहाँ का हर फूल भी दर्द में डूबा लगता है।

ए मेरे वतन, फिज़ाओं में जो पहले थी अमन की ख़ुशबू,
अब वहाँ हर कोना बिखरे मंजर का किस्सा कहता है।
Deepti — % &— % &

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19 APR AT 17:13

कि तेरी खुशी के लिए मैं दुआ कर सकती हूं,
मैं अजनबी हूँ! फिर भी तेरा दर्द समझ सकती हूॅ।

मैं कोई हकीम नहीं जो तेरी तकलीफों पर दवा दे सकूं,
मैं खुद दर्द में हूं, बस तुझे हौसला दे सकती हूं।

तेरे आंसुओं को मैं पोछ सकती हूं
तेरे ग़मों को अपनी मुस्कुराहट से कम कर सकती हूं

मैं अजनबी ही सही, लेकिन इंसानियत का रिश्ता निभा सकती हूं
बस तेरी खुशियों के लिए मैं दुआ कर सकती हैं


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18 APR AT 13:05





मौसम बदल गया ,
मुस्कुराने का अंदाज बदल गया जो मंजर कभी तुम्हारा था ,
आज वो हमारा बन गया

चिंता में मगन होकर गोगर घटाने का मौका मिल गया
व्यायाम न करने का हमे एक बहाना मिल गया ..

रांझे की हीर ना हुई तो फ़साना बन गया ,
हमारी जीवन की कमाई "गोगर" दिख गई तो सबको हमें मोटा कहना का बहाना मिल गया 🤔

Deepti







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15 APR AT 22:12


जब भीड़ में सुकून महसूस हुए
तो समझना कुछ पाने की जुनूनियत बाकी है
अगर जीत के बाद तसल्ली ना मिले
तो समझना की अभी कुछ बेहतरीन पाने का सिलसिला जारी है

जब सन्नाटे में अपना नाम सुनाई दे
तो समझना कि रूह अभी ख़ालिस है
अगर जिंदगी की ठोकरे दोस्त लगें,
तो समझना, दीवानगी दिल और जान पे भारी है

जब रिमझिम बारिश देख आंखें भर आए तो समझना की अभी उसकी कुछ यादें बाकी है
दिल टूटने पर लबों पे अल्फाज शायरी बन सज जाए
तो समझना, उससे मोहब्बत जारी है


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30 MAR AT 23:15

विक्रम संवत का शुभ आगमन

हम शुक्ल और कृष्ण पक्ष की तिथि को नव वर्ष मानते हैं,
नवदुर्गा की शक्ति को नमन कर, सतयुग सा युग रचाते हैं।

काँटों की परवाह क्यों करें, जब राम का साहस संग चले,
युधिष्ठिर की नीति से सीखें, धर्म-पथ पर आगे बढ़ें।

स्वप्न हमारे कर्म के दीप से, विक्रम संवत में साकार हों,
बारह माह, तीस दिन, सत्कर्म से उजियारे हर द्वार हों।

आओ, चैत्र से फाल्गुन तक, सुराज्य का संकल्प लें,
बसंत की खुशबू संग लेकर, भारत को सुसर्जित करें।

नव वर्ष मंगलमय हो!


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22 MAR AT 22:19

बदली सीता

कैकई सी परिस्थितियों
ने जब परखा सीता को इस बार
तब हुआ उसे एहसास
की चौखट के उसे पार ना था वनवास
परंतु था एक नया आयाम

यक्श और रावण अभी भी थे पग पग वहां
परंतु अभ वह चतुर थी और निर्णय लिया
कि पार नहीं करेगी वह लक्ष्मण रेखा इस बार
ना हुआ उसका हरण और ना दी उसने अग्नि परीक्षा इस बार

फिर भी अपनी रणनीति से छेड़ा उसने संग्राम
राम राम राम
स्वयं को राम की परछाई मे डाल समाज के रावण को किया परास्त
एक नवीन दृष्टिकोण ने किया सब का कल्याण

Deepti




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22 MAR AT 0:48

एक दीपक बुझने से पहले कितने पहर रोशन कर जाता है,
कि किसी विद्वान की संगत में रहकर अयोग्य मनुष्य भी ज्ञानी बन जाता है

बनी बनाई रोटी खा कर सब का पेट भर जाता है
परंतु फसल से लेकर रसोई के सफर के अनुभव से वह अछूता रह जाता है

तर्क के छुअन से अनुभवों का जीवन सार्थक हो जाता है
और अनुभवों को तर्क के समर्थन से उपलब्धियां का संसार मिल जाता है
Deepti






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15 MAR AT 13:52




इंद्रधनुष के रंगों से अपना जीवन सजायें
सुधार करने से बेहतर है ,हम खुद ही सुधर जाए

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