औरों की सोच कर मै क्योँ घबराऊ,
जब हर सवेरा कहे — कि वो है मेरा
रिज़्क मेरा है, माँगू क्या किसी से,
अपने हाथो की मेहनत को ही - मै दुआ मे मांगू
मुझे उस हुनर पर भरोसा है - जो रब ने muha दिया है
उसी हुनर से maa भीड़ में -- अपनी अलग पहचान बनाना चाहूं
अपने काफ़िले में - मैं अकेली सही,
पर हर मोड़ पे- खुद को- सच्चाई की राह पर चलना सिखाऊ
झूठ की चादर से ठंड नहीं जाती,
सच पहन के ही गर्मी मैं पाउं
तालियों की गूंज जरूरी नहीं, मेरे लिए
कभी ख़ामोशी से भरा सच मै भी समझना चाहूं
मंज़िलों तक पहुंचने की जिद है मेरी
हर ठोकर से भी सबक मैं सीखना चाहूं
जो आईना भी न दिखा सके पाक नजरिया - मैं रब सा चाहूं
मैं अपनी रूह से नज़र मिलाना चाहूँ।
-
My new Instagram account:- @deeptisdiary
Backup account @deeptdiary1
I am... read more
‘दीप्ति’, सलाम कर उन रूहों को जो लौटे नहीं,
उन्हीं के दम से आज वतन में उजाला है।
ये देश किसका है — ये सवाल बाकी है,
हर दिल में जज़्बातों का जवाब बाकी है।
जो खड़े हैं सरहदों पे जान हथेली पर,
हक़ से कहें — ये कमल-सा देश उन्हीं का है।
वो कारगिल की सर्द रातें गवाह हैं इस बात की,
जहाँ लहू में तपिश थी, जहाँ मशाल जली थी।
हर चोटी पर हौसलों की लौ जब जलाई थी,
तब जाकर ये सरहद साँसों से बचाई थी।
बर्फ़ में लिपटी मिट्टी ने जब जवान से कहा,
"जब तक साँसें हैं, मेरी ढाल तू ही बना रहा।"
तोपों की गूंज में भी गूंजा नाम वतन का,
कफ़न भी तिरंगे में, उनकी शान बना रहा।
वो माँ, जो चुपचाप बेटे को विदा कर आई थी,
उसकी पलकों में आज भी जय हिंद समाई थी।
हर गोली के पीछे एक सपना अधूरा था,
शहादत ने जिसे अपने लहू से सजाया था।
ये देश उन्हीं का है जो लौटे नहीं,
ये देश उन्हीं का है जो लौटे नहीं l-
मेरे हर हरफ़ को माफ़ कर देना,
जिस लफ़्ज़ ने तेरा दिल दुखाया है।
मैंने चाहा तुझे दुआओं सा,
पर मेरे अंदाज़ ने सब गंवाया है।
हर बात में तेरा ज़िक्र किया,
मगर मेरे लहजे ने छल दिखाया है।
नीर आंखों में, मुस्कान लबों पे,
दर्द मैंने ही तो अपना छुपाया है।
मोहब्बत थी या मेरी नादानी,
जो भी था, मैंने तुझसे ही निभाया है।
अब जो भी हूँ, बस तेरी हूँ,
मैंने अपने "मैं" को तुझमें ही मिटाया है।-
तुमसे मिलकर ही तो सब पाया है,
जैसे अधूरी रूह को साया है।
हर ख्वाहिश को ताबीर मिल गई,
तेरे प्यार में खुदा भी पाया है।
जो लफ़्ज़ अधूरे थे दिल में कहीं,
तेरी आँखों ने वो समझाया है।
अब ना शिकवा, ना कोई गिला,
इश्क़ ने हर ज़ख्म को महकाया है।
-
तेरी रूह से मोहब्बत हुई लेकिन तुझे नहीं,
तेरे हर लफ़्ज़ से मोहब्बत हुई, पर तेरे लबों से नहीं
नज़रों में नहीं था कोई ख्वाब जिस्मानी,
दिल ने बस चुनी एक राह रूहानी।
तेरे साए से भी एक नूर बरसता रहा,
पर तुझसे मिलने की कभी आरज़ू नहीं रही।
तेरी रूह से मोहब्बत हुई लेकिन तुझे नहीं,
तेरे हर लफ़्ज़ से मोहब्बत हुई, पर तेरे लबों से नहीं।
तेरी ख़ामोशी भी साज़ सी बजती रही,
हर बात तेरे बिना भी समझ आती रही।
इश्क़ वो था जो छू के भी ना छू सका,
बस महसूस हुआ, बेवजह, बेनाम सही।
ना कोई मिलन, ना कोई दूरी रही,
बस एक रूह थी, जो तेरी दस्तक बनी।
तेरी हँसी में भी कहीं दर्द था छुपा,
मुझे उस दर्द से भी मोहब्बत हुई।
तेरी रूह से मोहब्बत हुई लेकिन तुझे नहीं,
तेरे हर लफ़्ज़ से मोहब्बत हुई, पर तेरे लबों से नहीं...-
तेरी रूह से मोहब्बत हुई लेकिन तुझे नहीं,
तेरे हर लफ़्ज़ से मोहब्बत हुई, पर तेरे लबों से नहीं
नज़रों में नहीं था कोई ख्वाब जिस्मानी,
दिल ने बस चुनी एक राह रूहानी।
तेरे साए से भी एक नूर बरसता रहा,
पर तुझसे मिलने की कभी आरज़ू नहीं रही।
तेरी रूह से मोहब्बत हुई लेकिन तुझे नहीं,
तेरे हर लफ़्ज़ से मोहब्बत हुई, पर तेरे लबों से नहीं।
तेरी ख़ामोशी भी साज़ सी बजती रही,
हर बात तेरे बिना भी समझ आती रही।
इश्क़ वो था जो छू के भी ना छू सका,
बस महसूस हुआ, बेवजह, बेनाम सही।
ना कोई मिलन, ना कोई दूरी रही,
बस एक रूह थी, जो तेरी दस्तक बनी।
तेरी हँसी में भी कहीं दर्द था छुपा,
मुझे उस दर्द से भी मोहब्बत हुई।
तेरी रूह से मोहब्बत हुई लेकिन तुझे नहीं,
तेरे हर लफ़्ज़ से मोहब्बत हुई, पर तेरे लबों से नहीं...-
इश्क मिक्स है ...इश्क मिक्स है
कभी चाय कभी कॉफी मेरी उसके साथ फिक्स है फिक्स है
ये बात दिलचस्प है.. ये बात दिलचस्प है
वो ख़ामोश रहते है और मै चुप,
यही हमारी मोहब्बत में twist है twist है
वह व्यस्त है और मैं मसरूफ हूं
पर एक-दूजे को कभी अनदेखा नहीं किया
यही तो हमारे प्यार का रूप है रूप है
इश्क़ अब नहीं करता सवाल जवाब से,
ना इस मोहब्बत में अल्फ़ाज़ है ... ना इकरार ..
हर एक दूसरे का साथ दिया है दिया है
-
जब मैं मिटता है
तब भी हम मुकम्मल होता है
यही तो इश्क है
यही तो इश्क है
और यही इश्क है
हम से शुरू होकर हम पर सफ़र खत्म हो गया
मैं का नाम और निशान ही -खत्म हो गया
हर एहसास में तेरे - खुद को गुम पाया
जैसे मेरा अधूरा जहान भी -खत्म हो गया
हर सूर तुझसे जुड़ता चला गया
एक तन्हा दिल का कारवां -खत्म हो गया
ना कोई शिकवा, ना कोई इल्तिज़ा रही,
तेरे मिल जाने से हर ग़म ही -खत्म हो गया।
अब ये आलम कुछ ऐसा हो गया
मेरा हर ख्वाब तुझसे शुरु होकर तुझ पर खत्म हो गया
मैं का वजूद ही तुझ से मिलकर खत्म हो गया
-
सबको पता है सफ़र का अंजाम क्या है,
फिर भी हर मोड़ पैर जोड़ते हैं हम खुद से अहम।
कभी हँसी की चादर ओढ़े लम्हे मिले,
कभी दर्द की बारिश में भीगे हुए हम।
कभी तन्हा सी शामों का साथ मिला,
कभी उसकी मोहब्बत में डूबे हम
न रहा कोई अपना, न कोई पराया,
हर रिश्ता था रूह का, उससे मिलना था कर्म
मंज़िल भले ही मिट्टी की चादर हो,
मगर सफ़र का हर रंग... है सबसे नर्म।
-
वक़्त ना दो तो दोस्त रूठ जाते हैं,
हक़ ना दो तो रिश्ते टूट जाते हैं।
शर्तों की ज़ंजीरों में न बंध सके,
तो अपने भी अक्सर दूर हो जाते हैं।
सहूलियत की छाँव में सब साथ हैं,
बेवजह कोई हाथ नहीं बढ़ाता हैं।
जो बिना मांगे तेरा हाल पूछे कभी,
बस वही हैं जो दिल से निभाते हैं।
रिश्ते वो नहीं जो नामों में दर्ज हों,
वो हैं जो खामोशी में साथ निभाते हैं।
-