प्रिय अमोली,
आज घर के चिराग की चाह के लिए मुझे घर की रोशनी बुझानी पड़ रही हैं।
वैसे भी भूल तुम्हारी ही है...
क्यों आना चाहती हो जन्नत से जहन्नुम मे?
क्या तुझे पता नहीं अपने सम्मान का मोल?
तुम्हारा मूल्य इतना ही है कि
पोते को श्रीखंड खिलाने वाली दादी से तुम सिर्फ़ सूखी रोटी ही पा सकोगी
तुम्हारे शरीर की शुद्धि दुनिया के लिए अशुद्धि ही होगी
गुनाहगार तुम्हें घूरती वहशी आंखें नहीं तुम्हारा स्लीवलेस टॉप और फटी जीन्स होगी
पिया के आंगन में तुम्हारा प्यार, काबीलियत नहीं, दहेज दिलाएगा दिलों में जगह
पंख तो पाओगी आज़ादी के जिनका हर कोना कई चुहों ने कुतरा होगा
शायद तुझ पर भी नौबत आए ऐसे ही किसी अमोली से उसका "मूल्यहीन" जीवन छीनने का
डरती हूँ मैं तुझ पर इतना बड़ा कहर ढहाने के लिए
कि कहीं इसके लिए तू मुझे कोसे ना
दुनिया के जैसे..
माफ कर दे मुझे ए मासूम शख्स....
पर खुदाई तुम्हारी खुदा के पास ही महफूज़ हैं,इन जल्लादों मे नहीं.....
-तुम्हारी गुनहगार,
तुम्हारी कातिल,
तुम्हारी मां
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