किस तरह तुम पर इलज़ाम लगा कर
अपनी मोहब्बत की तौहीन कर ले,इतने बुरे भी नहीं हम।-
गुनाह तो बहुत किए नेकी का पता नहीं
तस्लीम हम तस्लीम करते है औरो का पता नहीं-
गुनाह आपका का नहीं , जनाब उस मज़ार का है ।
जहां पहली दफा मुलाक़ात हुईं , उस दीदार का है ।-
ख़ता-ए-उल्फ़त के गुनाह में,
मुकदमा-ए-इश्क़ के तहत,
ताउम्र तुम मेरे दिल में कैद हो...-
मत कर गुनाह-ए- इश्क़, सुकून पाने के लिए
शिकस्त-ए-मोहब्बत में, मुस्कुराना होगा दर्द छुपाने के लिए-
तेरे करम की बारिश मे खुदा भीगना चाहता हूँ
अपने सारे गुनाह की तौबा कर रोना चाहता हूँ
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मुझे तेरा ये अंदाज देखकर
क्युकी तेरी आदतों से वाकिफ थे हम
ये तो हमारी सादगी थी
जो सहते रहे तेरे सारे सितम
शायद बेगुनाह होकर भी
कर रहे थे ये गुनाह हम-
अकेला नाम ले जन्नत का वहाँ जाने की मत सोच
ऐ-बन्दे
तुझसे ज्यादा कौन जानता है गुनाह तेरे-
जाना नही गुनाह जिसे
उसी की सज़ा काट रहे है,
है ये इश्क़ क्या पता नही
कभी सोच कभी समझ रहे है ।-
गुनाहों को तुम कल और आज में न बाँटो
हो गए और होने वालों की सज़ा बराबर है-