ख़ुद को पाती लिख लेना ।
ख़ाली सीरें तुम भर लेना ।
ख़ुद से बातें केह लेना ।
चोट के दर्द बाँध लेना ।
आसूँ ख़ुद पोंछ लेना ।
नैनों में चमक पा लेना ।
ख़ुद के सपने देख लेना ।
दिल बगिया सजा लेना ।
ख़ुद को पाती लिख लेना ।
ख़ाली सीरें तुम भर लेना ।-
Koo I'd - @asharma835
Nojoto - Anuradha Sharma
Miraquill - http://w... read more
कथित-अकथित ,स्वरों से पिता ।
जिगर के अनकहे , सपनें सीता ।
सोए तकिये सिरे ,पैग़ाम रखता ।
रफ्ता-रफ्ता हर पूँजी कमाता ।
वृक्ष भाती ,एक स्थान खड़ा ।
हर श्वांस , छाया बरसाता ।
न वक्त कि किल्लत ,जताता ।
लम्हा-लम्हा ,हमपे लुटाता ।
अलंकार ,अनलंकृती चाहता ।
सादगी ,पिता को गले लगाता ।-
कोई बात होगी ,क़लम की स्याही में ।
हर दफ़ा ,इसकी कस्तूरी मन मोहे ।
क़लम ,हाथ का आलिंगन करे।
फिर, ये स्याही हिय लग जाए।
काग़ज़ भी ,रंगरेज़ी ग़ज़ब करें ।
इंद्रधनुष भी ,राज़दार होना चाहे।
बहुत अरसे हुए ,इस गली आए।
इनकी जादूगरी देखें ,नैन मिलाये ।
कुछ दिनों से नींद कच्ची जाए ।
जिया तो ,पर बिन जिया के।
कोई बात होगी ,क़लम की स्याही में ।
हर दफ़ा ,इसकी कस्तूरी मन मोहे ।
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रात की रेल यात्रा -
या तो कोई सुलझा हुआ व्यक्ति करता है।
या तो कोई उलझा हुआ व्यक्ति करता है।
और ये रेल यात्रा आख़िर क्यूँ?
शहर की धूप से बचने के लिए,
शहर की धूप को पाने के लिए ।
सोच को ठहराने के लिए,
सोच को तैराने के लिए।
पीछे भागने के लिए,
पीछे भगाने के लिए।
भीड़ से भागने के लिए ,
भीड़ में खोने के लिए।
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मशरूफ ,दुनिया की भीड़ में ही सही ।
अब जनाब, हम देते है आपको भुला ।
यहां आपकी यादें, भी भाप बन गई ।
पर नमी आंखों की, गवाही नहीं देता।
विज्ञान भी, साथ देती है आपका?-
पग-पग घूंघट , डलवाती दुनियां l
पल-पल संकट, टलवाती तिरिया l
(Read in caption)-
धागे कच्चे से!
जिस पर चढ़े ,
प्रीत रंग पक्के से।
नाते ये सच्चे से,
रीत ये प्यारे से ।
नोक झोंक भरे!
दिल को संभाले ,
बातें करे मीठे से ।
नज़र न लगे !
धागे खास से !
धागे कच्चे से!
जिस पर चढ़े ,
प्रीत रंग पक्के से।-
मैं नहीं लिखती , बेदम भीड़ के लिए ।
मैं लिखती हूं , उस एक शख्स के लिए ।
जो , बिना थके मेरे ।
लेख का इंतजार किया करता है ।
बड़े इत्मीनान, से मेरे ।
शब्द के सागर में गोते लगाता है ।
ख्यालों , को आंखों से लगाता है ।
मेरे प्रतिबिंब बनाता , बारिश के बूंद।
फिर मेरे एहसासों को , लेता है चूम।
मेरे कलम के आगे , कुछ न आके ।
फिर चाहे उसका मन , कही भागे ।
बहाने अच्छे है, मुझसे मिलने के ।
फिर कहता है , तुम हो मेरी प्रिए ।
मेने भी जवाब , लिख दिया आगे ।
हां हो तुम भी , अज़ीज़ मेरे प्रिए ।
इस जहां में , कोई बात नही समझता ।
तुम्हे मेरे , लेख का लहज़ा कैसे भाता ।
मैं नहीं लिखती , बेदम भीड़ के लिए ।
मैं लिखती हूं , उस एक शख्स के लिए ।
जो ,बिना थके मेरे।
लेख का इंतजार , किया करता है।
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अनुराग भर अनुराग सी, सुराही छलकत जाएं ।
हिय प्यास बुझे धीरे धीरे , धीरे मन भरमाएं ।-
हर नुस्खे में अपनी छाप छोड़ जाती हो ।
फिर खुद के बनाये नुश्खे संवारती हो ।
इसी तरह तुम एक संसार बनाती हो ।
ये काबिलियत तो तुम ही रखती हो ।
ए संसार की शक्ति तुम अपार हो !
तेरे चलने से संसार चल पड़ता हो ।
फिर नियति की क्या मजाल हो ?-