Anuradha Sharma   (Anuradha Sharma)
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Joined 8 December 2017


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Joined 8 December 2017
9 SEP AT 20:25

लोगों की भीड़ से अच्छा ,इन पन्नों की महफ़िल है l
आलिंगन कर ,बाटें अपने एहसास ए दिल ।

करीब तेरे, बैठ के तस्सवुर के पल ।
काग़ज़ पर उतरना भी नसीब है l

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16 AUG AT 12:31

तेरे अक्स ढूँड़ता ,ख़ाक की तरह बिखरा रहा ।
मिलने से तेरे सुकूँ हो , चाहे मैं बिखरा रहा ।

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25 JUL AT 22:32

ख़ुद को पाती लिख लेना ।
ख़ाली सीरें तुम भर लेना ।

ख़ुद से बातें केह लेना ।
चोट के दर्द बाँध लेना ।

आसूँ ख़ुद पोंछ लेना ।
नैनों में चमक पा लेना ।

ख़ुद के सपने देख लेना ।
दिल बगिया सजा लेना ।

ख़ुद को पाती लिख लेना ।
ख़ाली सीरें तुम भर लेना ।

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22 JUL AT 21:54

कथित-अकथित ,स्वरों से पिता ।
जिगर के अनकहे , सपनें सीता ।

सोए तकिये सिरे ,पैग़ाम रखता ।
रफ्ता-रफ्ता हर पूँजी कमाता ।

वृक्ष भाती ,एक स्थान खड़ा ।
हर श्वांस , छाया बरसाता ।

न वक्त कि किल्लत ,जताता ।
लम्हा-लम्हा ,हमपे लुटाता ।

अलंकार ,अनलंकृती चाहता ।
सादगी ,पिता को गले लगाता ।

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17 JUL AT 23:20

कोई बात होगी ,क़लम की स्याही में ।
हर दफ़ा ,इसकी कस्तूरी मन मोहे ।

क़लम ,हाथ का आलिंगन करे।
फिर, ये स्याही हिय लग जाए।

काग़ज़ भी ,रंगरेज़ी ग़ज़ब करें ।
इंद्रधनुष भी ,राज़दार होना चाहे।

बहुत अरसे हुए ,इस गली आए।
इनकी जादूगरी देखें ,नैन मिलाये ।

कुछ दिनों से नींद कच्ची जाए ।
जिया तो ,पर बिन जिया के।

कोई बात होगी ,क़लम की स्याही में ।
हर दफ़ा ,इसकी कस्तूरी मन मोहे ।

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21 DEC 2024 AT 22:29

रात की रेल यात्रा -
या तो कोई सुलझा हुआ व्यक्ति करता है।
या तो कोई उलझा हुआ व्यक्ति करता है।

और ये रेल यात्रा आख़िर क्यूँ?

शहर की धूप से बचने के लिए,
शहर की धूप को पाने के लिए ।
सोच को ठहराने के लिए,
सोच को तैराने के लिए।
पीछे भागने के लिए,
पीछे भगाने के लिए।
भीड़ से भागने के लिए ,
भीड़ में खोने के लिए।

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13 OCT 2024 AT 1:03

मशरूफ ,दुनिया की भीड़ में ही सही ।
अब जनाब, हम देते है आपको भुला ।
यहां आपकी यादें, भी भाप बन गई ।
पर नमी आंखों की, गवाही नहीं देता।
विज्ञान भी, साथ देती है आपका?

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29 SEP 2024 AT 17:27

पग-पग घूंघट , डलवाती दुनियां l
पल-पल संकट, टलवाती तिरिया l

(Read in caption)

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25 AUG 2024 AT 10:58

धागे कच्चे से!
जिस पर चढ़े ,
प्रीत रंग पक्के से।
नाते ये सच्चे से,
रीत ये प्यारे से ।
नोक झोंक भरे!
दिल को संभाले ,
बातें करे मीठे से ।
नज़र न लगे !
धागे खास से !
धागे कच्चे से!
जिस पर चढ़े ,
प्रीत रंग पक्के से।

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6 AUG 2024 AT 22:19

मैं नहीं लिखती , बेदम भीड़ के लिए ।
मैं लिखती हूं , उस एक शख्स के लिए ।
जो , बिना थके मेरे ।
लेख का इंतजार किया करता है ।
बड़े इत्मीनान, से मेरे ।
शब्द के सागर में गोते लगाता है ।
ख्यालों , को आंखों से लगाता है ।
मेरे प्रतिबिंब बनाता , बारिश के बूंद।
फिर मेरे एहसासों को , लेता है चूम।
मेरे कलम के आगे , कुछ न आके ।
फिर चाहे उसका मन , कही भागे ।
बहाने अच्छे है, मुझसे मिलने के ।
फिर कहता है , तुम हो मेरी प्रिए ।
मेने भी जवाब , लिख दिया आगे ।
हां हो तुम भी , अज़ीज़ मेरे प्रिए ।
इस जहां में , कोई बात नही समझता ।
तुम्हे मेरे , लेख का लहज़ा कैसे भाता ।
मैं नहीं लिखती , बेदम भीड़ के लिए ।
मैं लिखती हूं , उस एक शख्स के लिए ।
जो ,बिना थके मेरे।
लेख का इंतजार , किया करता है।


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