रात की रेल यात्रा -
या तो कोई सुलझा हुआ व्यक्ति करता है।
या तो कोई उलझा हुआ व्यक्ति करता है।
और ये रेल यात्रा आख़िर क्यूँ?
शहर की धूप से बचने के लिए,
शहर की धूप को पाने के लिए ।
सोच को ठहराने के लिए,
सोच को तैराने के लिए।
पीछे भागने के लिए,
पीछे भगाने के लिए।
भीड़ से भागने के लिए ,
भीड़ में खोने के लिए।
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Koo I'd - @asharma835
Nojoto - Anuradha Sharma
Miraquill - http://w... read more
मशरूफ ,दुनिया की भीड़ में ही सही ।
अब जनाब, हम देते है आपको भुला ।
यहां आपकी यादें, भी भाप बन गई ।
पर नमी आंखों की, गवाही नहीं देता।
विज्ञान भी, साथ देती है आपका?-
पग-पग घूंघट , डलवाती दुनियां l
पल-पल संकट, टलवाती तिरिया l
(Read in caption)-
धागे कच्चे से!
जिस पर चढ़े ,
प्रीत रंग पक्के से।
नाते ये सच्चे से,
रीत ये प्यारे से ।
नोक झोंक भरे!
दिल को संभाले ,
बातें करे मीठे से ।
नज़र न लगे !
धागे खास से !
धागे कच्चे से!
जिस पर चढ़े ,
प्रीत रंग पक्के से।-
मैं नहीं लिखती , बेदम भीड़ के लिए ।
मैं लिखती हूं , उस एक शख्स के लिए ।
जो , बिना थके मेरे ।
लेख का इंतजार किया करता है ।
बड़े इत्मीनान, से मेरे ।
शब्द के सागर में गोते लगाता है ।
ख्यालों , को आंखों से लगाता है ।
मेरे प्रतिबिंब बनाता , बारिश के बूंद।
फिर मेरे एहसासों को , लेता है चूम।
मेरे कलम के आगे , कुछ न आके ।
फिर चाहे उसका मन , कही भागे ।
बहाने अच्छे है, मुझसे मिलने के ।
फिर कहता है , तुम हो मेरी प्रिए ।
मेने भी जवाब , लिख दिया आगे ।
हां हो तुम भी , अज़ीज़ मेरे प्रिए ।
इस जहां में , कोई बात नही समझता ।
तुम्हे मेरे , लेख का लहज़ा कैसे भाता ।
मैं नहीं लिखती , बेदम भीड़ के लिए ।
मैं लिखती हूं , उस एक शख्स के लिए ।
जो ,बिना थके मेरे।
लेख का इंतजार , किया करता है।
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अनुराग भर अनुराग सी, सुराही छलकत जाएं ।
हिय प्यास बुझे धीरे धीरे , धीरे मन भरमाएं ।-
हर नुस्खे में अपनी छाप छोड़ जाती हो ।
फिर खुद के बनाये नुश्खे संवारती हो ।
इसी तरह तुम एक संसार बनाती हो ।
ये काबिलियत तो तुम ही रखती हो ।
ए संसार की शक्ति तुम अपार हो !
तेरे चलने से संसार चल पड़ता हो ।
फिर नियति की क्या मजाल हो ?-
मेरे न लिखने पे ये जहान ,इस क़दर परेशान हैं l
जैसे रजनीगंधा की ख़ुशबू ,रात को न मिली हो l
लिखा करो कि तेरे ,दीदार का दीदार नायाब हैं l
चिंतन मनन की लौ से ,दिल का कोना रौशन हो l
स्पर्श मात्र और फिर, स्याही की तक़दीर स्वर्ण हैं l
कितने कागज़ों को तुमने ,फलक से मिलाया हो l
मेरे नज़रिए के कायल ,लेखनी की राह तकते हैं l
कैसे कहूं मेरे दीवानों ,मेरी नसिहत आप ही हो l
लेखनी रहेंगी बरक़रार ,गर हमें पढ़ना ज़ारी है l
कभी दिन कभी रात ,कभी बेवक्त स लम्हा हैं l
बेधड़क लिखीं जाएगी ,अब कोई एहसास हो l-
कुछ छूट रहा पिछे ,शूल सी चुभे है ।
कुछ बेताब करे , जी भी मसले है।
कुछ खाती मुझे ,निशा गुम से है ।
कुछ खाली मुझमे ,दिल भर आए है।
कुछ आगे भागे ,मेरी ज़िंदगी पीछे हैं।-
कल से थोड़ा और तपकर , निकली वह धूप में ।
आज थोड़ा और तपकर , निखरेगी वह धूप में !-