लहजा थोड़ा ठडां रखे साहब...
गर्म तो हमें
सिर्फ़ चाय पसदं है-
चुस्कियाँ चाय की आज जरा बहकी सी है,
गर्म मेरे मिजाज़ सी और नशा तेरे इश्क़ सा है !-
सर्दियों की संदली आहट,
वो घर की पुरानी संदूक
उसमे रखे गर्म कपड़ों की
गर्माहट।।।
या वो छोटे हो गए या हम
बड़े हो गए,
या वो पुराने हो गए या हम
नए हो गए।।
आज भी सूरज कोहरे को चिर
निकलने को मचलता है,
कहां सर्दियों में कहीं भी कुछ
भी बदलता है।।।-
क्या ताज़ा, क्या बासी, ठंडा हो, या गर्म
दो वक़्त की रोटी मिली, ख़ुदा का है करम-
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े-
ख़ामोश सी एक नदी का किनारा था
किनारे पर खड़ा एक हरा-भरा दरख़्त था
दरख़्त के नीचे एक चटाई बिछाई थी
चटाई पर फूलों की सेज़ भी सजाई थी
तभी एक मदमस्त हवा का झोंका आया
ज़ालिम झोंके ने मासूम पंखुड़ियों को उड़ाया
उड़ती-उड़ती पंखुड़ियां जा पहुंची उनके कऱीब
खुली थी ज़ुल्फें जिनकी, देखता रहा मैं गऱीब
बला का हुस्न था, हुस्न में ख़ुशनुमा रवानी थी
शुरू हुई यहीं से हमारी मोहब्बत की कहानी थी
आज भी बैठे हैं उसी नदी के किनारे
मगर नदी में अब उफ़ान है
दरख़्त है अभी भी वहाँ
पर वो भी अब 'हरे' से अन्ज़ान है
चटाई है, पर मटमैली सी
फ़ूल हैं, पर मुरझाये से
हवा का झोंका भी अब गर्म है
हमारी तबीयत भी कुछ नर्म है
लगता है जैसे कुछ कमी है
मौसम में घुल रखी नमी है
ना वो खुली ज़ुल्फ़ों का नज़ारा है
ना उसके हुस्न के दीदार का सहारा है
बैठा हूँ मैं अब भी वहाँ
भूल आया हूँ अपना सारा 'जहां'
इंतेज़ार है, क़रार है
ख़ुदा है, उस पर ऐतबार है
- साकेत गर्ग-
मिली भी हमें,
हम उसे मिले,
एक गर्म था,
एक ठंडी थी,
तो उन दोनों का,
मेल कहां से होवे,
दोनों अपनी अपनी,
अलग अलग ही रेलें।-