रजाई की रूत गरीबी के आँगन दस्तक देती है,
जेब गर्म रखने वाले ठंड से नही मरते ।।-
कभी खुशियां, गुल्लक में कैद थी हमारी ।
आज गुल्लक का कद आसमान सी बड़ी हमारी
कभी, चीज़ें ज़रूरत हुआ करती थी हमारी ।
अब, चीज़ें नशे की शक्ल ले चुकी है हमारी ।
खुशियों ने भी, नकाब ओढ़ ली हमारी ।
जानें, कब तक टिकेगी बनावटी हस्सी हमारी !-
राहों में कांटे थे फिर भी वो चलना सीख गया
वो गरीब का बच्चा था हर दर्द में जीना सीख गया।-
हमें इकोनॉमी की फिक्र हैं
उसकी जुबाँ पर तो सिर्फ रोटी का ज़िक्र हैं
©कुँवर की क़लम से...✍️
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सहूलियतों की कमी में भी खुश है कोई
और समृद्ध को बहानो से ही फुर्सत नहीं ।-
दौलत की चमक ये तेरी बीनाई न लूटे
गुज़रे जो मुद्दई कोई तो दरगुज़र न हो।-
ये आह है ग़रीब की, ये अर्श को हिलाएगी,
गिरी जो बूँद आँख से, सैलाब लेके आएगी।-
ख़ुदा मुमकिन करे कि,
जब हमारे यार दुख में हों,
मेरी सब छीन के खुशियां,
अता कर दो उन्हें मौला।
वज़न जो तौलते पैसों से हैं,
अपनी अमीरी का,
गरीबों की तरह तुम दिल फकत,
दे दो उन्हें मौला।।
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सम्पन्न माँ ने
बच्चों से पूछा
'आज क्या बनाऊँ?'
विपन्न माँ ने
बच्चों को देख
स्वयं से पूछा
'आज क्या बनाऊँ?'
प्रश्न एक ही था
दोनों के अर्थ और
आर्थिक दशा भिन्न रहीं केवल।-