सब कुछ तो है तेरे पास, तुझे ये जमाना क्यूँ खलता है।
मिलेगा जो नसीब में है, खुदा का लिखा कहाँ टलता है।
जिंदगी की चुनौतियों से, मुकाबला करो डट कर
खरा होता है वो सोना, जितना आग में जलता है।
ढाल अपने किरदार को जीवन में, कि गूंजे तालियाँ
खोटा सिक्का इस दुनियां में, अब कहाँ चलता है।
थक हार कर यूँ खांमोश, मत बैठ मेरे ए दोस्त
इन अंधेरों के बाद तो, दिन नया निकलता है।
दूध-दही काजू-बादाम, क्या पता उसे "नवनीत"
वो एक गरीब का बच्चा है, मिट्टी में पलता है।
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