मैं खामोश थी और खामोश ही रहूँगी,
तू अपने सवालात मेरी निगाहों से कर!!-
ख़ामोश तू था , ख़ामोश मैं थी ,
पर अश्कों ने सब बयां कर दिया ।।-
_होश_
दोनो की कुंड़ली मे
अलग-अलगसा दोष है
वो गम-ए-दर्द मे खामोश है
और हम...
दर्द-ए-गम से मदहोश है
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नहीं समेटना एहसासों को शब्दों में,
आज कलम को खामोश रहने दो।
बिखर रहे जर्द पत्तों से जज़्बात हमारे
पर आज सोच को सोच रहने दो।
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जैसा चाहो व्यवहार कर लो,
अब फर्क कहां पड़ता है,
क्योंकि इंसानों की बस्ती में,
ख़ुद को मुर्दा समझ लिया मैंने।
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जिंदगी खूबसूरत है
जब तक एक खामोश मूरत है
सुननी हो गर दिल की बात
तो मौन की जरूरत है-
भरी महफ़िल है, फिर भी वो अकेला कोने में बैठा है।
खामोश है, पर शायद मन में लिए एक 'शोर' बैठा है।-
हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना हैं,
ख़ुदा जाने "गुरूर-ए-हुस्न" में मदहोश कितना है,
किसी ने पूछा है सबब मय का
जो खुद बेहोश हो ओ क्या बताए
होश कितना है-
हाँ हम कुछ सोचकर चुप रहे
हर दुख हँस कर सह लिया
उफ्फ तक ना किया
अपनी किस्मत समझ कर
ज़िन्दगी के हर दर्द को सह लिया
बस हम ख़ामोश रहे
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