यहाँ रुख़्सार का तिल भी है बेअसर,
अच्छा काम कर रही है बुरी नज़र!!-
यहाँ तो मैं, मैं नहीं हूँ!
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अब तुम नहीं हो तो ज़िन्दगी नहीं लगती ज़िन्दगी,
इक तुम्हारी आड़ में कितना कुछ छुप जाता था!!-
मैं नहीं अब मेरे बस में, इस तरह मुँह मोड़ा क्यूँ?
बदल चुकी मैं खुद को तुझमें, ये बता दे छोड़ा क्यूँ?
लाख प्रेमी इस जगत में, कितने तेरे पास हैं!
मैं तो इकली तेरी थी मेरे भाग बिछोड़ा क्यूँ?-
लज्जा आती है मुस्कुराते भी,
किसीकी मृत्यु पर हँस रही हूँ जैसे!!
(अनुशीर्षक)
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और ज़रा बेहतर लिखने की ख़ातिर
जाने कितनी दफ़ा मैं उनसे होकर गुज़री,
मेरे शौक ने मेरे ज़ख़्म सदा हरे रखे!-
दे दी गईं निभाने को, तो समझदार हो गए,
अपनी जिम्मेदारियाँ हम खुद कहाँ चुनते हैं!!
टूटते हैं ऐसे, जैसे तोड़े हैं मकड़ी के जाले अभी,
पर अड़ियल हैं हम, फिर भी सपने बुनते हैं!!
खुद की ज़िन्दगी में संभलता नहीं कुछ,
और कहानी के किरदारों में प्रेम बुनते हैं!!
सुबह से शाम हुई, उनको आराम करते नहीं देखा,
रुई-से तो नहीं दिखते, मगर एकदम रुई-सा धुनते हैं!!
चीखो इतना कि शोर पहुँचे उन तक,
पर तुम भी जानते हो, मुर्दे कहाँ सुनते हैं!!-
अधूरा जीता इंसान नज़र नहीं आता,
अधूरी तस्वीरें तुमको खल जाती हैं!!-
प्रेम में पड़ी
सबसे अहंकारी लड़की को भी
यह ज्ञात हो जाता है कि
अब वह इस दुनिया का
केन्द्र नहीं है
उसका सम्पूर्ण संसार
रच-बस जाता है
उस लड़के के इर्द-गिर्द,
जिससे वह प्रेम करती है!!-
एक पेड़ है, बहुत-बहुत पुराना,
अनेक शाखाएं हैं नई-पुरानी,
पहले तो बहुत प्रेम रहता था सब में
फिर जाने क्या हुआ अचानक,
शाखाएं काटने लगी हैं एक दूसरे को,
खुद को बड़ा सिद्ध के लिए,
इनको ख्याल ही नहीं कि
एक ही पेड़ का हिस्सा हैं ये सब,
साथ मिलकर मुक़ाबला किया है
अनगिनत तूफानों का,
और आज ख़िलाफ़ हैं एक दूसरे के,
जाने किसका कहा मान लिया है,
अत्यंत ही भयावह दृश्य है,
सालों से जाने कितने बाहरी शत्रुओं
को परास्त करता ये पेड़,
ये पेड़ अब गिर जाएगा!!-