मेरी
दिल या खंज़र जिसमें हो रज़ा तेरी-
बेमौत आखिर मार ही डाला उसने...
...गुनाह सिर्फ 'मोहब्बत' का किया हमनें......-
ना जाने कितने ही समंदर, पाले बैठी हूँ मैं अपने अंदर,
तलाशने लगी जब गौहर, तो निकले कितने ही ख़ंज़र-
ख़ामोश लोगों का इक शहर देखा है
भीड़ में भी सुनसान मंज़र देखा है
हैवान का डर नहीं लगता अब मुझे
कुछ रोज़ मैंने इंसानी कहर देखा है
बेइंतहा नफ़रत, नापाक इरादे लिए
रूह तक फैलता इक जहर देखा है
महज़ कौम के नाम गले काट दे जो
बाज़ार में मुफ़्त है, वो खंज़र देखा है
जिसे दरीचों के लुत्फ़ का शौक है
उस शख्श को फेंकते पत्थर देखा है
बहोत तड़पती हैं राख होके रूहें
मैंने लाशों के गले लग कर देखा है
मेरा ज़मीर अब चिल्ला के रोता है
हां मैंने झांक के अपने अंदर देखा है।।-
हक़ीम को पता है के मैं बीमार हूं
पर उसका नहीं तेरा तलबगार हूं
तू भी मत बताना ये राज़ अब कभी
किसी से नहीं कहा के गुनाहगार हूं
कोई पूछता नहीं अब ख्वाइशें मेरी
के तू ही पूछ ले कुछ, मैं बेकरार हूं
मुझसे दूर ही रहना ए खंज़र वालो
टूटती ही सही , अभी भी तलवार हूं
जिंदगी इतरा, तुझे जितना शौक है
के हर फ़न में साथ देने को तय्यार हूं
तू है बने, संवरे, ख़ूबसूरत से घर जैसा
मैं बिखरा, उजड़ा, लुटा सा बाज़ार हूं
आओ सब मिल कर मेरा क़त्ल कर दो
जान जो गये हो के लिखता अख़बार हूं-
हर तरफ अजीब सा मंज़र नज़र आता है 💞
हर एक आँसू समंदर नज़र आता है
कहाँ रखू मैं शीशे सा दिल अपना
हर किसी के हाथ में खंजर नजर आता है। 💞-
खंजर से किये हुए क़त्ल तो, एक बार ही दम निकलता हैं,
जो क़त्ल निगाहों से किये जाए, मज़ा तो उनमें आता हैं....!-
खंज़र की क्या मज़ाल... की एक ज़ख़्म कर सके ,,
बस तेरे ही ख़याल से बार-बार... घायल हुए हम..!!
- शशांक भारद्वाज...— % &-