Harshita Panchariya   (व्योमांजलि)
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Joined 15 June 2017


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Joined 15 June 2017
17 JUL 2018 AT 19:21

फ़क़त, ज़हर जिनके कानो में है,
ऐसे वैसो की जगह पीक़दानो में है

ज़रा सा हुनर, क्या बक्शा ख़ुदा ने,
भाव ग़ुरूर का अब आसमानो में है

ग़लीच बनी सोच, लिबासों में इस क़दर,
क्या, आबरू लिबास की दुकानो में है ?

जागीर नहीं ये मुल्क, किसी परिवार का,
फिर क्यूँ सियासत, यहाँ खानदानो में है ?

सकून मिल जाता, लोगों की मोहब्बत से,
यूँ महफ़िल लूटने का ख़िताब,नादानो में है

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12 MAY 2018 AT 20:09

चंद्र बिंदु “माँ” का ज़रा “सास” में लगा दीजिए,
वृद्धाश्रमो का “साँस” लेना मुश्किल हो जाएगा

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16 MAR 2018 AT 20:24

मोअल्लिम बने है ज़ख़्म, मुक़ाम कहाँ तक ले जाएँगे,
अदा करी है हर किश्त, मेरा जहाँ थोड़ी ना ले जाएँगे


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6 MAR 2018 AT 13:06

तिलिस्म कहूँ या कोई राज़ कहूँ,
चन्द शब्दों में अब क्या बात कहूँ,

नूर ऐसा कि सितारे भी लगे फीके,
क़लम ऐसी कि ख़ामोशी में चीखे,

चाहे हर कोई उस महताब का दीदार,
ख़ुशनसीबी मेरी जो मिला ऐसा यार




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26 JAN 2018 AT 10:00

कंधा हूँ घर का ,ये सोच अंधा बन जाता हूँ,
“मुझे क्या पड़ी” सोच, धंधे में लग जाता हूँ

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14 JAN 2018 AT 9:39

जानती नहीं, हुनर ऊँचाई नापने का आया कहाँ से ,
पर ताल्लुक़ात ज़रूर रखे है मैंने,गिरने के गणित से ...

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12 JAN 2018 AT 16:51

स्वेद शोणित के साथ, कर्म का मैं श्रृंगार करूँ,
ना बनूँ अर्जुन यदि, केशव की क्या आस करूँ

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21 NOV 2017 AT 19:00

"याद आता है"
(अनुशीर्षक में पढ़ें👇👇)

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14 SEP 2017 AT 12:04

एक आकुल सी,
थोड़ी आक्लन्त सी,
स्त्री के आक्रन्दन ने,
भौहें तना दी वक्र सी,
बांधा मुझे प्रश्नों के साँखल में,
चित्त डूबा था नैराश्य सागर में,

(पूरी कविता पढ़िए अनुशीर्षक में 👇👇👇)

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30 JUL 2017 AT 23:47

अधूरी सी ज़िंदगी में,
एक और पूरी हुई कहानी....

किरदार जिसमे हम दो थे ,
वो समा था बड़ा रूमानी .......

फुर्सत मिले तो कभी सुन लेना,
अधूरे ख्वाबों से हकीकत की जिन्दगानी....

क्या खोया ये हम नहीं जानते,
जो भी पाया वह है ऊपर वाले की मेहरबानी....

जब भी मिलोगे सुनाएंगे तब,
आप सबको हमारी प्रेम कहानी....

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