Kavita Kumar   (Kavita kumar)
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Joined 9 December 2019


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12 MAR 2023 AT 10:20

कर्म की धारा में बहता जा परिंदे
एक दिन तुझे ऊंचा मुकाम मिलेगा
तपा ख़ुद को आग में और बन जा सोना
उस दिन तुझे जीत का इनाम मिलेगा।

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11 MAR 2023 AT 10:30

When you leave people

हम खुश है दूर रहके शान से कहते है
पर फिर मिले उनसे अरमान से रहते है
कहने को सब अपना है फिर जाने क्यूं
हम अपने ही घर में मेहमान से रहते है
यूं तो बरसती है खुदा की नियामतें भी
फिर भी हम काफ़ी परेशान से रहते है
छलकते रहते है हाथों में प्याले भी
पर फिर भी मैखाने वीरान से रहते है
मिलते है सबसे हंसकर नैनों में चमक लेके
पर फिर भी सबसे अनजान से रहते है
मुस्कुराहटें खिलती दिन की रोशनी में
पर रातों में आंसू इत्मीनान से बहते है।
Kavita Kumar












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3 MAR 2023 AT 22:13

आस की एक धारा
धड़कनों में बहती है
तू आसपास है कहीं
नैनों की थकन कहती है
चला आएगा एक दिन
लौटकर पास मेरे
यही सोच रूह मेरी
हर सितम सहती है।

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17 JAN 2023 AT 22:52

जो बंद थी दिल के तहखानों में
सुना है फिर से मौसम का मिजाज़ बदला है
मुस्कुरा उठी है वो गलियां जो वीरान थी कभी
किसी आशिक ने जीने का फिर अंदाज बदला है।

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17 JAN 2023 AT 22:41

फिर मिले ही क्यूं थे
घाव ही देना तो फिर
ज़ख्म सिले ही क्यूं थे
हम खुश थे बहारों की
चाह थी ना परवाह
गर मुरझाना ही था
तो फूल खिले ही क्यूं थे
गर ये सच था की हम
तेरे अपने है तो
तेरे होठों पे शिकायत
और आंखों में गीले ही क्यूं थे।

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11 JAN 2023 AT 13:33

हम वो हमें पहचान न सका
लाख बोला हम उनके है
पर वो मान ना सका
हम उसके लिए देते रहे कुर्बानी
सामने होकर भी वो जान ना सका।

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11 JAN 2023 AT 13:00

करके ले गया वो जान मेरी
शब्द ख़ामोश है मिट गई पहचान मेरी
खोई सुधबुध है अब
खुद का भी पता नहीं
आंखों से बात करूं
बंद है ज़बान मेरी।

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11 JAN 2023 AT 12:46

नदी की मीठी धारा हूं मेरे मालिक
फिर मेरी आंखों में समंदर क्यूं है
सीचा बड़े प्यार से जिसे अपना मान
आज उसी के हाथ में खंजर क्यूं है
कोमल मन मेरा न सह सके तेज हवा
फिर मेरे सामने तेज़ बवंडर क्यूं है
सुना है देखता सुनता है वो सब
मोन है फिर भी इतना मस्त कलंदर
क्यूं है?

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16 AUG 2022 AT 21:42

चाहतें मर जाती है
मगर ख्वाइशें कहां मरती है
बनते बिगड़ते रहते है रिश्ते
आज़माइशें कहां मरती है
राह चलते मुसाफिर के लिए
ख़ुद को ना कर कुर्बान
पल पल बदलने वालों की
फरमाइशें कहां मरती हैं?

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18 JUL 2022 AT 23:12

मैं तो दरिया हूं बहकर के चला जाऊंगा
दर्द सीने में देकर के चला जाऊंगा।

मैं जहां चाहूं वहां जाकर के बसा लूं बस्ती
तेरी आंखों में भी रहकर के चला जाऊंगा।

मिटाने से भी नहीं मिटती हस्ती मेरी
हर सितम दिल पे लेकर के चला जाऊंगा।

बहती धारा हूं रुकना नहीं सीखा मैने
लाख जतन कर जिरह करके चला जाऊंगा।।

जब तलक संग हूं जी भर के जी ले जानां
मैं किसी का नहीं कहकर के चला जाऊंगा ।

Kavita Kumar



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