तेरी ही नगरी है,
तेरी ही माया है,
कण-कण में समाया है,
शेष की छाया है..
तू ही आदि है,
तू ही अनंत है,
पतझड़ भी तू है,
तू ही तो बसंत है..
ॐ की ओंकार है,
गीता का सार है,
भीष्म की प्रतिज्ञा है,
गंगा का विस्तार है..
तू ही साहित्य है,
तू ही लालित्य है,
क़ुरान भी तू है,
तू ही पाण्डित्य है..
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