तू शर्मा के मुझसे जब लिपटती है,
दिल की किताब पे कलम चलती है,
फिर ये आँखे तेरी जब उठती है,
जैसे कोई दुआ इश्क़ में पढ़ती है..-
मेरी गलियों में आये हो, अभी तो गीत बाकी है..
वक़्त को थाम कर बैठो, अभी तो रात बाकी है,
नही है इम्तेहां कोई, ना कोई साजिशें ये है,
सुर्ख़ अधरों से गुज़रा जो, उसी की बात बाकी है..
जो कह के रुक गए थे तुम, जो सुन के मुड़ गया था मैं,
अश्क़ आँखों से उतरा जो, वही जज़्बात बाकी है..
अगर तुम गौर से देखो, ज़िक्र तेरा ही तेरा है,
निगाहों से निगाहों की, अभी फ़रियाद बाकी है..-
तेरी ही नगरी है,
तेरी ही माया है,
कण-कण में समाया है,
शेष की छाया है..
तू ही आदि है,
तू ही अनंत है,
पतझड़ भी तू है,
तू ही तो बसंत है..
ॐ की ओंकार है,
गीता का सार है,
भीष्म की प्रतिज्ञा है,
गंगा का विस्तार है..
तू ही साहित्य है,
तू ही लालित्य है,
क़ुरान भी तू है,
तू ही पाण्डित्य है..-
Clothes - check
Sweets - check
Gifts - pack
Dry fruits - pack
"Eid mubarak." a man with red teeka handed him and hugged him.
Sweeper's eyes shed tears as he knew it was all for him.-
मैं चंद शब्दों में तुम्हें क्या निखारूँ,
तुम तो साज़ हो तुम्हें क्या सवारूं,
जो रिश्ता शब्दों में सिमट नहीं सकता,
फिर कैसे मैं उनको पन्नों पे उतारूँ,
कलम और कागज़ का सहारा लेते हुए,
चलो एक शाम यादों के समंदर में गुजारूं,
एक असमंजस में वो पल बीत गया,
तुम्हें चाँद कहूँ या उसे 'तेरा नाम' पुकारूँ..-
कामयाबी की दौड़ में,बेटियाँ ही ख़ास है,
फिर भी कुछ घरों में,बेटों से ही आस है..
तपती धूप में अब तो पिता हताश है,
घर में बेटी देख कर,दादी माँ निराश है..-
तुझे ढूँढा तो मैं खो गया,
जो मेरा था,तेरा हो गया,
ना जाने कब वो रात ढली,
ना जाने कब सवेरा हो गया..
चंद शब्दों को समेटा ही था,
लेकिन वो पल लुटेरा हो गया..
एक रात फिर ऐसे बीत गयी,
घनी रौशनी में अँधेरा हो गया..-
इश्क़ मैं तुमसे ऐसे कर लूँ,ज़ुबाँ तो बस सहारा हो,
नज़र उठा के जहाँ तू देखे,सजदे में सर हमारा हो..
यूँ तो ऐतबार नहीं,
या मैं हकदार नहीं,
इश्क़ असरदार नहीं,
तू जो गर यार नहीं..
आँखें तेरी ऐसे पढ़ लूँ,हया पे हक हमारा हो,
नज़र उठा के जहाँ तू देखे,सजदे में सर हमारा हो..
इन हवाओं में भी अब,
तेरा एहसास नहीं,
पास तो है तू फिर भी,
उस तरह पास नहीं..
बातें मेरी तुमसे शुरू हो,हर बहाना बस तुम्हारा हो,
नज़र उठा के जहां तू देखे,सजदे में सर हमारा हो..-
क्यूँ ना रात को सँवार लूँ,
चाँद को ज़मीं पे उतार लूँ..
तू कोई ग़ज़ल बन जा,
मैं पन्ने को निखार लूँ..
तू मेरी पलकों में थम जा,
मैं तुझमें शब गुज़ार लूँ..
आहिस्ता आहिस्ता ही सही,
कुछ गलतियां सुधार लूँ..-
तू सब में दिखता है,तू सबको माने,
फिर चाहे गीता हो,या हो अज़ाने..
जब तुमको पाया तो,खुद को मैं जीता,
तुम मेरे कर्ता हो, तुम ही सुभीता..
तुमसे शुरू होता,तुम पे ही खोता,
'रस' दोनों 'भक्ति' है,तुम हो विजेता,
तुम नभ के स्वामी हो,संसार तुमसे,
मैं तुच्छ प्राणी हूँ, फिर भी हूँ तुमसे..
ये तेरी महिमा है,तुमको ही अर्पण,
तू सबका यौवन है,तू सबका दर्पण..-