बंसी सब सुर त्यागे है, एक ही सुर में बाजे है
हाल न पूछो मोहन का, सब कुछ राधे राधे है-
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
शब्दकोश में प्रिये, और भी
बहुत गालियां मिल जाएंगी
जो चाहे सो कहो, मगर तुम
मेरी उमर की डोर गहो तुम!
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
वर्ष हजारों हुए राम के , अब तक शेव नहीं आई है!
कृष्णचंद्र की किसी मूर्ति में, तुमने मूंछ कहीं पाई है?
वर्ष चौहत्तर के होकर भी, नेहरू कल तक तने हुए थे,
साठ साल के लालबहादुर, देखा गुटका बने हुए थे।
मैं तो इन सबसे छोटा हूँ, क्यों मुझको बूढ़ा बतलातीं?
तुम करतीं परिहास, मगर मेरी छाती तो बैठी जाती।-
गोवर्धन गिरी पूजा आज कृष्ण अंङ्गल तुंग-सुसाज
अतिवृष्टि अत विपदा बाधा हरो हमारे हरि-सुकाज
ब्रजरज कण-कण पावन कर दो राधारानी-धिराज
भक्तबत्सल भक्तदास श्यामलवरण चित्त-महाराज
अंत:करण अनंत-भगवान जय सुमधुर बंसी-बाज
हरि अनंत हरि कथा अनंता राधिका पग-पग पाज-
तेरी ही नगरी है,
तेरी ही माया है,
कण-कण में समाया है,
शेष की छाया है..
तू ही आदि है,
तू ही अनंत है,
पतझड़ भी तू है,
तू ही तो बसंत है..
ॐ की ओंकार है,
गीता का सार है,
भीष्म की प्रतिज्ञा है,
गंगा का विस्तार है..
तू ही साहित्य है,
तू ही लालित्य है,
क़ुरान भी तू है,
तू ही पाण्डित्य है..-
वस्ल की रात लिखती,हिज़्र का इज़हार
लिखती हूँ।
लिखी मैंने मोहब्बत है,हाँ मैं तो प्यार
लिखती हूँ।
कलम नन्ही हूँ तो हल्के में मत लेना मुझे क्योंकि...
कृष्ण की राधिका हूँ मैं तो बस श्रृंगार
लिखती हूँ।।
✍️राधा_राठौर♂-
प्रियतम तुम बिन प्रीति तो, हमैं लगत है आधा
हम भी वैसै लगत हैं,जैसै कृष्ण बिन राधा-
तेरी मीरा तो मैं बन गई
तुम भी कृष्ण बनो ना
अपनी बांसुरी की धुन में
मेरे प्यार का ज़िक्र करो ना-
आज की मीरा
आज की मीरा प्रैक्टिकल, हकीक़त में जीती है।
विष न राणा देता है, न ही मीरा पीती है।।
न वो माथा पटकती है न दर दर भटकती है।
ससुराल या नैहर सब का मान रखती है।।
मीरा और राणा दोनों अब संग घर में रहते हैं।
कान्हे को उनके बच्चे प्यार से मामा कहते हैं।।
हर राणे में कान्हा है, हर कान्हे में राणा है।
मीरा भी समझती है मूव ऑन का जमाना है।।
कुछ मीरा और कान्हा की बात बन भी जाती है।
कुछ घर से भाग जाते हैं, कुछ की शादी हो जाती है।।
बैकुंठ धाम में कान्हा चैन से बांसुरी पकड़ता हैं।
किसी पागल के लिए अब न वो धरती पे उतरता है।-