अमृत भूमि प्रयागराज जन चेतन आध्यात्मिक का संगम,
छलका अमृत, हुआ देवत्व, हुआ तब यह दुर्लभ संगम।
देश विदेश में हुआ चर्चित, खींचे चले आए जैसे चुंबक
उमड़ पड़ा अथाह जन सैलाब मनभावन दृश्य विहंगम।
रज पद स्पंदन सनातन गौरव स्वर्ग सम त्रिवेणी परिवेश,
आस्था की डुबकी, तन मन प्रफुल्लित, आत्मिक जंगम।
पुण्य सलिला तीर पर, यज्ञ अनुष्ठान की प्रज्वलित लौ,
जैसे देव स्वर्ग से अनुभूदित हर क्षण आशीर्वाद हृदयंगम।
वैचारिक नैतिक सात्विक से ओतप्रोत सर्वस्व सर्वत्र ओर,
जो बने हिस्सा भाग्यशाली, आधि व्याधि तज हुए सुहंगम।
हर एक के जीवन में होता यह प्रथम और अंतिम अवसर,
जीवन सुफल, दुःख दर्द निष्फल, जैसे यह मोक्ष आरंगम।
आत्मशुद्धि, वैचारिक मन मंथन का सुव्यस्थित आश्रय,
नश्वर तन का अटल अंतिम सत्य, यही संगम यही मोक्षम
सदियों से बना यह अति उत्तम दुर्लभ खगोलीय संयोग,
बहुचर्चित, दिव्य, अलौकिक इस महाकुंभ का शुभारंभ।
_राज सोनी-
फिर संगम के घाट पे, भई भक्तन की भारी भीड़,
सन्यासी डुबकी भरै, कुंभ लगे नदियां के तीर।-
इश्क़ को उद्धार का एकमेव मार्ग समझ उसमे डुबकी लगाने वालों का प्रेम मात्र एक समय तक सीमित रह जाता है।
प्रेम के अनंतकाल तक अमरता के लिए आवश्यक है उसमे डूब जाना। या तो प्रेम आपको अपने बहाव में बहा ले जाए या आप स्वयं तत्पर हो दुनिया में सब छोड़ बह जाने के लिए।
डुबकी ले कर घाट पर पुनः आने वाले साधु हो सकते हैं, प्रेमी नहीं।
- सुप्रिया मिश्रा-
सर रखकर तेरी गोद में माँ
जब भी सो जाती हूँ ...
झलक जाती हैं आँखे तेरी
अलकनंदा और भागीरथी सी ...
गिरती है कुछ बूंदें मुझ पर और
पुरा हो जाता है कुंभ का शाही स्नान ....-
फिर संगम के घाट पे, भई भक्तन की भारी भीड़,
सन्यासी डुबकी भरै, कुंभ लगे नदियां के तीर।-
आब-ए-हयात की जुस्तजु ने क्या गज़ब रंग दिखाया है,
आज दरिया से मिलने ख़ुद समंदर चला आया है।-
एक विश्वास ही तो है जो नदी की धारा को अमृत का कुंभ बना देता है, और जमीन के एक टुकड़े को प्रयागराज कहा देता है।।
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ठंड के जोर का सबसे विकट महीना
गंगा किनारे
फिर.. उतर रहा है माघ का महीना
आस्था की डुबकी लगाएगा संगम
अहा ! दृश्य होगा कितना विहंगम
तंबूओं की होंगी लंबी-लंबी कतारें
नागाओं किन्नर महंतो के अखाड़े
नर-नार साधु-संत और पंडों का रेला
कुम्भ में लगेगा..... खिचड़ी का मेला
अमृत के स्नान का, हो रहा है आगाज़
कुंभ के रंग में, रंगा जा रहा है प्रयागराज
गंगा की सौंधी खूशबू... होगी आत्मसात
आओ विचरण करें प्रयाग की एक प्रभात । कविता
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