हर रोज उलझती ज़िन्दगी को सुलझ जाने दो
मुद्दतों बाद खिली हूँ, हवाओं में महक जाने दो ।
जंज़ीरों से जकड़ी हूँ पर निगाहें फलक पर रखती हूँ
दिल में ही सही पर तेवर "बला" के रखती हूँ
अरसे बाद नींद से उठी हूँ हकीकत से रूबरू हो जाने दो
मुद्दतों बाद खिली हूँ, हवाओं में महक जाने दो ।
उलझती धड़कनों को थोड़ा और उलझ जाने दो
सुलझ भी जाऊँगी एक दिन अभी गाँठो से लिपट जाने दो
संजोए रखी थी जिन अंगारों को आज ज़मी पर बरस जाने दो।
मुद्दतों बाद खिली हूँ, हवाओं में महक जाने दो ।
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