बसंत पतझड़ की सभी
तथ्यात्मक सैद्धांतिक विवेचना का
खंडन किये बगैर
असहज परिस्थितिन्य विषमताओं को
सोखकर
सर्वग्राह्य उत्पाकदता
प्रेषित करना ही
एकमात्र लक्ष्य ..
शीत ताप के निर्मम
कुठाराघात सहकर
पीले हुए पत्तों की जीर्णता को
पतझड़ मान लेना
सहज नहीं... है
जीवन मूल्यों का आदर्श
स्थापित कर
आज भी चिर प्रतीक्षा में खड़े
उन नन्हीं कोंपलों के....
ताकि अंतस के वातायन से
निसृत हो पाए
सुखद प्राणपायु
और
एक बार फिर
विष सोखकर
पीले होकर झरने तक
की प्रतिबद्धता का
निश्छल प्रयास।।
प्रीति
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20 JAN 2019 AT 22:11
22 AUG 2020 AT 22:43
सपने और अपने से
मेरा बहुत गहरा रिश्ता है
पहले अपनो में सपने
को देखती थी अब सपनो
में अपने को देखती हूं ....!-
20 APR 2021 AT 13:47
कब्र को कितना भी संवार लो जनाब..!
मरा हुआ इंसान कभी जिंदा नहीं होता..!!
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24 AUG 2021 AT 21:53
कितना छुपाओ प्यार को, आंखो में नजर आ जाता है! (2) किसी अंजान के प्रति, दिल इतने प्यार से भर जाता है! (3) कभी अश्क की बारिश, कभी दिल पे सकूं छा जाता है! (4) कितना छुपाओ प्यार को, आंखो में नजर आ जाता है!
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12 MAY 2021 AT 0:05
कितना खुशनुमा होगा वो,
मेरे इंतजार का मंजर भी,
जब ठुकराने वाले मुझे,
फिर से पाने के लिए आंसू बहाएंगे,,-