उसकी शायरियों मे
वो बात नहीं होगी
जिसने तुझे
देखा नहीं होगा अब तक |-
लोग यूँ ही पागल हैं महताब देखकर
हमने आँखें सँवारी हैं ख़्वाब देखकर |
जिससे बच बचकर निकलता था मैं
फिर तुम्हारी याद आयी गुलाब देखकर |
हमने गुजारी इक उम्र मुफ़लसी में
फिर अमीर होते गए ईमान बेचकर |
दो दिन ही सही दिखावा तो करते
परेशां तुम लगते नहीं मिज़ाज़ देखकर |
तुम थे की तुमसा कोई और था
मैं हैरान हूँ तुम्हारे जवाब देखकर |
उसने भी तो चाहा था बेइंतेहा मुझे
लौट आएगा किसी दिन शाम देखकर |
इश्क़ भी कोई सिद्दत ही हैं "जहान "
मुझे समझ आया हैं नमाज़ देखकर |-
मत देना तुम अब दोष कभी खुदको
तेरी मजबूरियां ये शख्श समझता हैं |-
ऐसे कहां तेरा ये रंग निकलता हैं
यक़ी तो मुश्किलों में बिखरता हैं |-
ख़ूबसूरत हो ,
सीसे लगाते घरों में
आपने भी क्या
ये दीवारे बनवा दी |-
कुछ रिश्ते
जैसे सदियों से
चले आ रहे हैं ,
कुछ रिश्ते
जैसे सदियों चलेंगे |-
दोनों तरफ़
खामोशियाँ हैं
तो आदतन
ये कोई किस्सा हैं ,
ग़र दरमियां
था ही नहीं कुछ अपने
तो ये नफ़रत किसका हिस्सा हैं |-