मैं कारीगर हूँ साहब
उंगलियों से उसे गढ़ता हूँ
मिट्टी के हम पुतलों को बनाया उसने
उसे खुद की तरह मढ़ता हूँ,
क्या जाने कब उसकी आंँख खुले
वो एक बार मुझको देखेगा
यही सोचता हूंँ हर दिन मैं
और हर रात उससे लड़ता हूँ,
तन मेरा जो पिंजर हो गया
उसकी बाट जोहते हुए
ना हार फिर भी माना मैं
आज फिर बात पर अड़ता हूँ !
- दीप शिखा
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हाथों की चंद लकीरें संदर्भित हैं प्रासंगिक नहीं "तृषित "
लकीरों के गांव में ,संघर्षों से हारे हुओं को ही बैठे देखा है.-
😭🌹हर रोज इस
कदर तोड़ते हैं💘
🌹 मेरे हालात मुझे
मेरे हौसलों का🌹
🌹कारीगर भी
देखकर हैरान है🌹
💘 मुझे🌹-
खुदा तू भी कारीगर निकला,
खींच दी तुने दो -तीन लकीरें हाथों में,
और ये भोला आदमी
उसे तकदीर समझ बैठा।-
कारीगर की कारीगरी
जब मशीनों से रची गयी
सब कुछ मिला
मगर ममता नहीं मिली
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गजब के
कारीगर थें वो भी...
कमाल के मुखौंटे
बनाते थें....
पर इंन्सानी मुखौटे
ना पहचान पाये !!!!!-
जरा सलीके से तोड़ना हमें दुनिया वालों
एक उम्दा कारीगर खुद में बिठा रखा है हमने-
मजहबी दीवारों से मजबूत वो दीवार बनाता है,
कभी मंदिर बनाता है तो कभी मस्जिद बनाता है।
कृष्ण की बंसी हो या फ़िर शिव का त्रिशूल,
राधा की मुस्कान तो कभी मीरा का सितार बनाता है।
ताजमहल कुतुबमीनार या फ़िर हवा महल,
गौरव पथ पर लाल किला वो वीरों का स्मारक बनाता है।
इतिहास भी गवाह है कि एक ' कारीगर ' कच्ची माटी से,
हर युग में सृष्टि के स्वरूप को तराश कर दर्पण बनाता है।-
शब्दो की कारीगर हूँ दर्द को आकार देती हूँ ,
चीख़ भी निकल जाती है और आवाज़ भी नहीं आता ।-
कद्र यहां हर हुनर की है
पर मन की बुलंदियों पर, निश्चल कारीगर ही है।-