रण रमण में दर्प को मेरे,क्षण में विजित कर दिया
बन मोहिनी मंद-स्मित से, मुझे सम्मोहित कर दिया
इतराता रह गया मैं जवानी पर अपनी
होंठ रखकर होंठों पर उसने,मुझे मदमस्त कर दिया
सोचा था मोहब्बत की असीरी में लेकर उसको करूँगा मनचाही
चला कर जादू हुस्न का उसने,मुझे ही आजिज़ कर दिया
चलाता ही रह गया मैं उंगलियां उसके लिबास पर
खोलकर अँगिया को उसने,मुझे विस्मित कर दिया
गर्माहट का एहसास ,सिसकियों के मधुर ध्वनि में,
उरोजों को अपने ,मेरे लबो के हवाले कर दिया
हसरत बताकर कान में उसके,बरबस उसे झुका दिया
नरम होंठों से चूस के अंग को मेरे,मुझमें जोश का संचार कर दिया
आग लगाने की हसरत थी तन बदन में उसके
खुद में डुबोकर उसने मुझे ही पानी-पानी कर दिया
कठोर अंग मेरा दम तोड़ गया,नाज़ुक कोमल अंगों के आगे
ज्वालामुखी से गर्म जिस्म ने,मुझे जला जला कर ठंडा कर दिया
तृप्त कर मेरी तनमन की क्षुधा को,अपना त्याग,ताकत का रूप दिखाया
काम से परिपूर्ण कामिनी सी उस रमणी ने अविजित को विजित कर दिया।-
चन्द्र शोभे गगन में , पले स्वप्न नयन में ।
फैली इस धरा पर , सुन्दर है यामिनी ।।
उर की असीम पीर , हाय दूर नीर तीर ।
भाव हिय के विषम , निष्ठुर सी कामिनी ।।
शशि ने बिखेरा हास , व्याप्त मही पे प्रकाश ।
अम्बर है शुभ्र शुभ्र , सज्जित ज्यों भामिनी।।
चतुर्दिक प्रेम गन्ध , प्रिय डोले संग संग।
उनके ही रंग रंग , सुखद है जामिनी ।।-
रात की वो घनी चाँदनी
वो पर्वत के बींच से बहती तटिनी
हो जैसे कोई मनमोहक कामिनी-
कामिनी
अवनि
जननी
💞💞💞💞💞
फिर लिखा,फिर लिखा,कम ही लगा
हर बार लिखा,अधूरा रहा,लगा कुछ न लिखा
तब मैंने कहा,क्षमा करो.......
....🙏माँ🙏-
मानव जीवन में कंचन-कामिनी वो अड़चन है
जो अध्यात्म की ओर जाने से रोकती हैं।-
"तुम्हें देखा!"
ख़्वाब में देखा शायद
क्योंकि मुमकिन न था
कोई मंजर समक्ष देखना
न जाने कब से नहीं देखा
मैंने शायद तुम्हें देखा!
यहीं थे, दिल की जगह पर
फिर से यहीं देखा
मैंने तुम्हें, तुम्हीं में देखा!
मैंने शायद तुम्हें देखा!
ख़्वाबों में ख़्यालों में
किताब के सुर्ख़ गुलाबों में
मृगमरीचिका के उजालों में
बिछड़ते देखा
मैंने शायद तुम्हें देखा!
-काव्यस्यात्मा-
नवरात्रि की मोहक यामिनी
घन बिच चमके दामिनी
घटा बरसे बन कामिनी
ऋतु लगे अति मन भावनी
©®-
तन और मन
#कामिनी मोहन पाण्डेय
मन का घरौंदा चलता जाए,
एक सा यह रह ना पाए।
मन की चाहत अनंत हो जाए,
तन भी मन को बांध न पाए।
चाहत, दोनों एक हो जाए,
नैराश्य इन्हें छू न पाए।
मन के हारे हार है जग में,
मन के जीते जीत।
तन से तू हार भी जाए,
मन का दीपक बुझ न पाए।
मन की ध्वनि को सुनता जाए,
तन घुल-मिल सुकून पाए।
हे प्रभु! यह तेरा-पथ है,
कर दो तुम कुछ एक विशेष,
ना तन पिघले, ना मन फिसले।
तन-मन की धूरी बने हैं एक
#काव्यस्यात्मा
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रंगाळ रंगीत रंगात रंगली रजनी
अजित अमृत ओंजरे आसुसली अवनी,
चमचम चांदणे चंदेरी चंद्र चाक्षू चोहीकडे
काळोख कापला काया कोवळी कामिनी...-
संघर्ष
#कामिनी मोहन पाण्डेय
इस पार है गुलशन
उस पार चमन है।
हर सिम्त है शबनम
हर बूंद ख़बर है।
जमीं से आसमां तक
घुप्प अंधेरा है।
सूरज भी डरके
बर्फ हो गया है।
ईमान बिका
सच्चाई टूटी है।
आईने का अक्स भी
आवारा हुआ है।
मतभेदों के खंडहर में
खींचातानी सी है।
तूफानों के समंदर में,
टूटे हैं पंख...
तो क्या हुआ?
परिंदों ने उड़ान भरी,
दूर तक जाना है।
संघर्ष अभी बाकी है,
अंजाम को पाना है।
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