Manav   (मानव ✍️)
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Joined 1 April 2020


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31 DEC 2021 AT 0:28

बस इतना चाहिए, ए ज़िन्दगी
जब ज़मीन पे बैठू, तो लोग उसे
बड़प्पन कहे, औकात नहीं।

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20 JUN 2021 AT 22:31

जिस तरह गरीब के लिए छत ज़रूरी है
उसी तरह बाप का साया ज़रूरी है
अगर ये दोनों आपके पास है तो खुदको खुशकिस्मत समझिए।

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20 MAY 2021 AT 10:04

तृष्णा, माया और लोभ में भटक रहा इंसान
नज़रों से अब खोने लगी अपनों की पहचान।

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20 MAY 2021 AT 9:18

नित जीवन के संघर्षों से
जब टूट चुका हो अन्तर्मन,
तब सुख के मिले समन्दर का
रह जाता कोई अर्थ नहीं !!

सम्बन्ध कोई भी हों लेकिन
यदि दुःख में साथ न दें अपना,
फिर सुख में उन सम्बन्धों का
रह जाता कोई अर्थ नहीं !!

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18 MAY 2021 AT 10:50

ऋणी हूं हरि जी तुम्हारा, जो बुरा वक़्त दिखाया है
और जो मेरे सगे बनते थे, उनका मुखौटा गिराया है।

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26 MAR 2021 AT 22:34

सपने के लिए हम अपने शहर से ही मुहँ मोड़ लेते हैं
हम लड़के घर बनाने के लिए अपना घर ही छोड़ देते हैं।

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22 MAR 2021 AT 20:54

इस चाँद की उम्र भला कौन जान पाया है
देखते तो सभी हैं उसे पर छू कौन पाया है।

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22 MAR 2021 AT 17:37

मुझसे पूछ तो लेते एक बार जानें से पहले
जो ग़लतफ़हमियां थी उन्हें मानने से पहले।

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21 MAR 2021 AT 21:55

ये जो तुम चेहरा पढ़ने का हुनर रखते हों
इससे माँ बाप का चेहरा क्यों नहीं पढ़ पाते हो
और जिनसे आज वज़ूद है तुम्हारा
अफ़सोस उन्हीं के अश्कों को नहीं देख पाते हो।

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21 MAR 2021 AT 20:57

जो निकली थी एक पुराने गुल्लक से
जिसमें क़ैद थे किस्से खट्टे-मीठे से
फ़िर पुरानी यादें ताजा होने लगी थी
जो जिंदगी की भाग-दौड़ में सो गई थी
गुल्लक ने आज मुझे फ़िर से जगा दिया
मुझे मेरे बचपन से मिला दिया।

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