Rishabh Divyendra  
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Joined 8 February 2019


Joined 8 February 2019
16 AUG AT 13:38

केशव कान्हा कृष्ण कन्हैया, मुरलीधर बनवारी।
मधुसूदन मनमोहन माधव, तेरी जय गिरिधारी।।

अच्युत अपराजित अरिकेशी, अजित अनन्त अधाता।
अनगिन अगणित नाम तुम्हारे, प्रभुवर विपिन विहारी।।

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3 AUG AT 13:47

परम दयालु स्वामी, आप प्रभु अंतर्यामी,
‎सघन निराशा मिटे, विपदा को टारिये।

‎मूढ़ मंद मति हीन, दास हम अति दीन,
‎शरण में आए नाथ, हमको उबारिये।

‎हम पापों के आगर, आप दया के सागर,
‎कृपानिधि कृपा कीजै, पतित को तारिये।

‎नारायण चक्रधारी, 'ऋषभ' है दुखियारी,
‎विनती हमारी सुन, हमें न बिसारिये।

‎*– – ऋषभ दिव्येन्द्र*

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27 JUL AT 13:49

प्रकृति ने है दिया हमको नवल उपहार सावन में।
‎ पहन नव शाटिका वसुधा करे शृङ्गार सावन में।।

‎ सुगंधित-सी महक उठती हृदय आमोद भर जाता,
‎ उमङ्गों से भरी  मधुरिम  पड़ी  बौछार  सावन  में।

‎‎*--ऋषभ दिव्येन्द्र*

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20 JUL AT 13:25

‎सुगीत मेघ गा रहे!!

‎ सुगन्ध मन्द वृष्टि में,
‎ सुरम्य भाव दृष्टि में,
‎ नवीन रूप सृष्टि के, दिगन्त को लुभा रहे!
‎ सुगीत मेघ गा रहे!!


‎– – ऋषभ दिव्येन्द्र

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13 JUL AT 13:58

प्रिये_प्रतीक्षा

सुहानी  दिख  रही, मधुरात्रि  बेला।
‎निहारो तो गगन में, शशि अकेला।।
‎सुनहरी     सेज-शैय्या,     तानपूरे।
‎तुम्हारे स्पर्श के बिन,  सब  अधूरे।।

‎सुनयने! एक तुम ही,  सृष्टि  मेरी।
‎तुम्हारी   राह   देखे,   दृष्टि   मेरी।।
‎चिरन्तन  वेदना,  सहता  रहा  हूँ।
‎वियोगी बन सतत, बहता रहा हूँ।।

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6 JUL AT 12:52

क्षणिकाएँ

रिमझिम बूँदें क्या पड़ीं
‎मन का सावन जाग उठा
‎तुम भी आओ न
‎मीठी-सी फुहार बनकर....

‎बूँदों की मधुमय सरगम से
‎महक उठी है मिट्टी
‎झूम रही हैं डालियाँ
‎जाग-सी गई है तरुणाई....

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28 JUN AT 13:37

तप्त धरा पर बनकर आँचल,
भरें चौकड़ी ये दल-के-दल,
मानो कोई हिरणी चलती, चाल चपल चंचल मतवाली!
घिरी बदरिया काली-काली!

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28 MAY AT 12:56

जीवन जितना ताप, ग्रीष्म क्या देगा।
अन्तस हिमनद घोर, कहाँ पिघलेगा।।

बासन्ती-सी उम्र, पड़ी मुरझाई।
सुन्दर सौम्य सुकांत, कली कुम्हलाई।।
आशाओं का बोझ, सदा मन ढोता।
सहता प्रतिपल पीर, स्वयं को खोता।।
अग्नि बाण से और, हृदय सुलगेगा।
जीवन जितना ताप, ग्रीष्म क्या देगा।।

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6 MAY AT 12:28

सुमङ्गला भूमि सुता दुलारी।
विदेह पुत्री छवि चित्त हारी।।
अयोनिजा हे प्रभु प्राण प्यारी।
नमामि माता शुभ स्वस्ति कारी।।

ललाट उद्दीपित ज्योति धारे।
लगे घने कुन्तल मेघ कारे।।
सुमोहिनी रूप सुसौम्य बोली।
सुकण्ठ हो स्यात सुधा सुघोली।।

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6 APR AT 12:37

*आवाहन राम तुम्हारा*

रघुनायक रघुनन्दन के बिन, जगती का कौन सहारा।
कलियुग का कलुष मिटाने को, आवाहन राम तुम्हारा।।

आतंकों से आतंकित है, यह धरा तुम्हारी पावन।
छल का बल का जोर चले है, जग लगे नहीं मनभावन।।
सत्य सनातन आहत निशिदिन, लगें असत के जयकारे।
भेंट चढ़े हैं पाखण्डों के, देवालय के गलियारे।।
देख दानवी उत्पातों को, हिय ने फिर तुझे पुकारा।
कलियुग का कलुष मिटाने को, आवाहन राम तुम्हारा।।

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